चिंगारी से भड़केंगी ज्वालाएँ
रूसी क्रान्ति के नेता लेनिन के कुछ रोचक संस्मरण, मज़दूर संघर्षों को एक सूत्र में पिरोने वाले इन्क़लाबी अख़बार ‘ईस्क्रा’ की तैयारी के सम्बन्ध में

– ज़ोया वोस्क्रेसेंस्काया

व्लादीमिर इल्यीच ने अपनी माँ को आहिस्ता से खींचकर अपने पास सोफ़े पर बैठा लिया।
“घर पर होना कितनी शानदार बात है! मैं कल्पना कर सकता हूँ कि धूपदार दिनों में यह जगह कितनी सुन्दर लगती होगी।”
“बरसाती दिनों में भी यह बुरी नहीं लगती,” उल्लसित माँ ने कहा। “देखते नहीं, बारिश कितनी ताज़गी देती है।”
“अच्छा, व्लादीमिर, यह बताओ, तुम कैसे पकड़े गये थे और फिर तुमने किस तरह रिहाई हासिल की?” आन्ना बोलीं।
मरीया अलेक्सान्द्रोव्ना समोवार के पास बैठ गयीं और चाय डालने लगीं।
“जैसे ही मैं पीटर्सबर्ग पहुँचा, मैंने देखा कि मेरा पीछा किया जा रहा है,” व्लादीमिर इल्यीच हंसे। “जब मुझे पुलिसवालों ने दबोच ही लिया, तो मुझे बस अपनी जेबें ख़ाली करने की बात ही सूझ रही थी, मगर यह ख़्याल ही बेकार था। दो भारी-भरकम शैतानों ने मेरी एक-एक बाँह को जकड़ लिया और उन्हें पीछे की तरफ़ मोड़ दिया, जबकि तीसरा यह देख रहा था कि मैं किसी चीज़ को निगल न जाऊँ। और मालूम है, मेरी जेबों में क्या था? अख़बार के लिए जमा किये गये दो हज़ार रूबल, प्लेखानोव (गेओर्गी प्लेखानोव (1856-1918) – रूसी क्रान्तिकारी और विचारक, प्रख्यात मार्क्सवादी सिद्धान्तकार।) के नाम एक लम्बा ख़त, जिसमें इस बात की विस्तृत रूपरेखा थी कि अख़बार को कैसे संगठित किया जायेगा, गुप्त पते और संकेत शब्द।”
“मुझे तो इसकी बात सोचकर ही कंपकंपी आ रही है,” मरीया बोली।
“लेकिन बात यह है,” एक उंगली उठाते हुए व्लादीमिर इल्यीच ने कहा, “ये सभी बातें दूध, नींबू के रस और दूसरी खाने की चीज़ों से लिखी हुई थीं और सो भी पुराने बिलों और रसीदों की लकीरों के बीच। मैं हवालात में पड़ा-पड़ा यही सोच रहा था कि पुलिस को काग़ज़ों पर गरम इस्तरी फेरने का ख़्याल आयेगा या नहीं।”
“फिर क्या हुआ?” मरीया ने बेसब्री के साथ पूछा।
“दस दिन बाद मुझे जेलर के कार्यालय में बुलाया गया और यह चेतावनी दी गयी कि मैं पीटर्सबर्ग तथा साठ और शहरों में नहीं जा सकता और यह कि मैं किसी भी कारण से प्स्कोव छोड़कर नहीं जा सकता। उन्होंने मेरे सारे काग़ज़, रसीदें और पैसे लौटाये, तो मैं अपनी आँखों पर विश्वास नहीं कर सका। सचमुच वे सभी पूरे काठ के उल्लू हैं। इसलिए मैंने उनसे विनयपूर्वक प्रार्थना की कि वे मुझे तुम लोगों से मिलने के लिए आने दें।”
तथापि पुलिस को इतना भरोसा नहीं था कि व्लादीमिर इल्यीच को अकेले सफ़र करने दिया जाये। एक पुलिसवाला उनके साथ पोदोल्स्क तक आया और उसने उन्हें स्थानीय पुलिस के प्रमुख के सुपुर्द कर दिया।
यहाँ उन्हें बुद्धि की एक नयी परीक्षा से गुज़रना था। पुलिस के प्रमुख ने व्लादीमिर इल्यीच का वैदेशिक पासपोर्ट देखने के लिए माँगा और उसके पन्ने पलटने के बाद उसने उसे अचानक अपनी मेज़ की दराज़ में रख लिया। “आपको विदेश जाने की ज़रूरत नहीं है,” वह बोला, “इसलिए आपका पासपोर्ट मैं रख लेता हूँ, यहाँ वह सुरक्षित रहेगा।”
व्लादीमिर इल्यीच ने अपनी बात जारी रखी, “मैं बेहद ग़ुस्से में भर गया। उस बूढ़े मक्कार ने तो अख़बार की हमारी सारी योजनाओं को ही अपनी दराज़ में बन्द कर दिया था। मैं सचमुच बेहद नाराज़ हो गया था और मैंने कहा कि मैं आपकी ग़ैर-क़ानूनी कार्रवाई की आपके अधिकारियों से शिकायत करूँगा। मैं ज़रूर काफ़ी ज़ोर से बोला होऊँगा, क्योंकि बूढ़ा मुझसे डर गया। उसने जल्दी से दराज़ को खोला और जब उसने देखा कि मैं पलटकर जाने ही वाला हूँ, तो वह ख़ुशामद करने लगा कि मैं पासपोर्ट वापस ले लूँ और उसकी शिकायत न करूँ।”
अपनी कहानी के इस हिस्से पर पहुँचते-पहुँचते व्लादीमिर इल्यीच अपने सिर को पीछे सोफ़े पर डालकर ख़ुशी के साथ हँसने लगे थे।
मरीया भी उनके साथ-साथ हँसने लगीं।
“तो तुम्हें वैदेशिक पासपोर्ट मिल गया है,” उनकी माँ अपनी निराशा को न प्रकट करने का प्रयास करते हुए बोलीं।
“हाँ, मुझे जर्मनी जाना होगा,” व्लादीमिर इल्यीच उठे। वर्षों की आदत से उन्होंने दरवाज़े का कुण्डा लगाया, खिड़कियाँ कसकर बन्द कीं और दबी हुई आवाज़ में बोलते रहे, “हम एक बहुत बड़ी चीज़ की योजना बना रहे हैं – हम एक अख़बार निकालने वाले हैं।”
वह अपनी संजोयी हुई योजनाओं के बारे में बड़े जोश के साथ बताने लगे। हर जगह मज़दूर अधिकाधिक लड़ाकू होते जा रहे हैं। जिस चीज़ की ज़रूरत है, वह है एक केन्द्रीय अख़बार, जो स्वतंत्रता के लिए और ज़ार के ख़िलाफ़ संघर्ष का पथ-प्रदर्शन करे। ज़रूरत है एक ऐसे अखिल-रूसी अख़बार की, जो लाखों मज़दूरों और किसानों को समझाये कि उनके आगे कौन-से कार्यभार हैं, जो काम का एकीकृत कार्यक्रम तैयार करे। उन्होंने और उनके साथी क्रान्तिकारियों ने साइबेरिया में निर्वासन के समय इस तरह के अख़बार की स्थापना की योजनाओं पर विचार-विमर्श किया था। रूस में पुलिस के दमन के कारण उसके प्रकाशन की कोई सम्भावना नहीं है। इसीलिए यह तय किया गया कि उसे विदेश से प्रकाशित किया जाये। फिर अख़बार की प्रतियों को गुप्त रूप से रूस पहुँचाया जायेगा, जहाँ विश्वसनीय लोग उसका मज़दूरों में वितरण करेंगे।
व्लादीमिर इल्यीच रीगा, स्मोलेन्स्क, पीटर्सबर्ग और मास्को हो भी आये थे, भावी वितरण केन्द्रों की स्थापना कर चुके थे और विभिन्न साथियों से सम्पर्क क़ायम करके इस बात की व्यवस्था कर आये थे कि वे अख़बार के लिए लेख भेजते रहें।
“अख़बार का नाम क्या रहेगा?” आन्ना ने पूछा।
“‘ईस्क्रा’ [रूसी में चिंगारी]। याद है, ‘चिंगारी से भड़केंगी ज्वालाएँ’?”
“हाँ, याद है,” मरीया ने जवाब दिया। “यह पुश्किन [अलेक्सान्द्र पुश्किन (1799-1837) – महानतम रूसी कवि।] को दिसम्बरवादियों [दिसम्बरवादी – रूसी अभिजातवर्गीय क्रान्तिकारी, जिन्होंने निरंकुश शासन का विरोध किया था और दिसम्बर, 1825 में पीटर्सबर्ग में सशस्त्र विद्रोह किया था।] के प्रसिद्ध उत्तर की एक पंक्ति है।”
अपने बच्चों की बातचीत को सुनते-सुनते मरीया अलेक्सान्द्रोव्ना समझ गयीं कि यह उत्तरदायित्व कितना बड़ा है।
“क़िस्मत तुम्हारा साथ दे! तुम सफल हो!” उन्होंने धीरे-से कहा।
“हाँ, आन्ना! मैंने तुम्हारे लिए भी कुछ सोचा है,” व्लादीमिर इल्यीच ने कहा। “तुम्हें मेरे पीछे-पीछे जर्मनी आना होगा और संगठनात्मक काम में हाथ बंटाना होगा। नादेज्दा जैसे ही निर्वासन से रिहा होंगी, वह हमारे पास आ जायेंगी।”
“तभी जाकर आन्ना लेखिका बन पायेगी,” मरीया अलेक्सान्द्रोव्ना बोलीं।
आन्ना हर्ष से पुलक उठीं। वह हमेशा से ही साहित्यिक पेशा अपनाने का सपना देखती आयी थीं। उन्होंने बच्चों के लिए कहानियाँ लिखी थीं और अंग्रेज़ी, जर्मन तथा इतालवी किताबों का रूसी में अनुवाद किया था। लेकिन यह कितना महत्वपूर्ण और इज़्ज़त का काम था – वे लोग मज़दूरों के लिए अख़बार निकालते होंगे।
… … …
अगली सुबह डॉक्टर लेवीत्स्की आये।
“आपकी माँ आज मुझे बहुत अच्छी लगीं,” उन्होंने दमीत्री से कहा।
“आपका कहना कितना ठीक था, डॉक्टर साहब! ख़ुशी ही सबसे अच्छी दवाई है। चलिए, आपकी अपने भाई से मुलाक़ात करवा दूँ,” डॉक्टर को बाग़ की तरफ़ ले जाते हुए दमीत्री ने कहा।
डॉक्टर लेवीत्स्की जानते थे कि व्लादीमिर इल्यीच क्रान्तिकारी और बड़े पढ़े-लिखे आदमी हैं और उनका ख़्याल था कि उनकी भेंट बाग़ में गम्भीरता के साथ टहलते किसी बड़े गम्भीर, चश्मा लगाये भद्र पुरुष से होगी। हाथ में क्रोके का बल्ला लिए भारी बदन के एक नौजवान को देखकर उनके अचरज की सीमा न रही।
व्लादीमिर इल्यीच दिलचस्पी के साथ यह देख रहे थे कि उनकी बहन मरीया गेंद को दोनों विकेटों के बीच से निकाल सकती है या नहीं।
“शाबास!” उन्होंने चिल्लाकर कहा।
उन्होंने बल्ले को दूसरे हाथ में लेकर डॉक्टर लेवीत्स्की से हाथ मिलाया और उन्हें खेल में हिस्सा लेने के लिए आमंत्रित किया। बोलते-बोलते व्लादीमिर इल्यीच ने डॉकटर पर एक तेज़, पैनी नज़र डाली। लेवीत्स्की उम्र में उनसे साल-दो-साल छोटे थे। उनके सुदर्शन चेहरे पर घनी कत्थई दाढ़ी और रेशम जैसे बाल थे। गहरी धँसी सुरमई आँखें प्रतिभापूर्ण थीं और चरित्र की दृढ़ता को दर्शाती थीं। कुल मिलाकर वह एक उदार और भले नवयुवक लगते थे।
दमीत्री ने देखा कि उनके भाई और डॉक्टर ने एक-दूसरे को तुरन्त पसन्द कर लिया है।
उस दिन रविवार था। व्लादीमिर इल्यीच ने राय दी कि नाव में सैर करने के लिए चलना चाहिए।
डॉक्टर लेवीत्स्की अपने नये मित्र की मौजूदगी में ज़रा भी संकोच का अनुभव नहीं कर रहे थे। उन्हें यह परिवार पसन्द था, जिसके हर सदस्य की अलग-अलग रुचियाँ थीं, जिसमें सभी सुसंस्कृत, ख़ुशमिज़ाज और मिलनसार थे और उन्हें लग रहा था कि वह सदा इस परिवार के मित्र बने रहना चाहेंगे।
पाख्रा नदी पर तेज़ी से नाव खेते-खेते व्लादीमिर इल्यीच ने लेवीत्स्की से कई बातों के बारे में प्रश्न किये, जैसे पोदोल्स्क प्रदेश में बाल-मृत्यु की इतनी ऊँची दर क्यों है और फ़ौज में ज़बर्दस्ती भरती किये जाने वाले लोग इतनी बड़ी तादाद में डॉक्टरी परीक्षण से क्यों अयोग्य घोषित किये जाते हैं।
“इसका कारण है हमारे पोदोल्स्क की मशहूर नमदे की टोपियाँ,” डॉक्टर लेवीत्स्की ने कहा।
व्लादीमिर इल्यीच ने अचरज से उनकी तरफ़ देखा।
“यह बात मेरी समझ में आयी नहीं।”
“मैं आजकल पोदोल्स्क प्रदेश की आबादी के शारीरिक विकास का अध्ययन कर रहा हूँ,” डॉक्टर लेवीत्स्की ने अपनी बात जारी रखी। “और मैंने यह बात साबित कर दी है कि जनता का स्वास्थ्य पारे के धुएँ के कारण लगातार बिगड़ रहा है। यहाँ का नमदा ख़रगोश के रोयों से बनाया जाता है और कारख़ाने उसकी तैयारी में पारे का इस्तेमाल करते हैं। इसका मतलब है कि हर टोपी एक आदमी के स्वास्थ्य का सत्यानाश करती है। मैंने इस नृशंस उत्पादन-प्रणाली का विरोध किया है, मगर मालिकों को तो अपने अलावा और किसी से क्या! जब तक उनके मुनाफ़े बरकरार हैं, उन्हें अपने मुलाज़िमों के स्वास्थ्य की क्या परवाह है?”
“आपका कहना सही है,” व्लादीमिर इल्यीच ने जवाब दिया। “अब आगे क्या करने की राय देते हैं?”
“मैंने एक फ़्रांसीसी पत्रिका में पढ़ा था कि वहाँ नमदे को पारे के बिना तैयार करने का एक नया तरीक़ा निकाला गया है। वहाँ पारे की जगह कास्टिक पोटाश का इस्तेमाल किया जाता है।”
“क्या हमारे मज़दूर इस बात को जानते हैं कि उन्हें बाक़ायदा ज़हर दिया जा रहा है?”
“मैंने इस बारे में सिर्फ़ मालिकों से ही नहीं, बल्कि छोटे कारीगरों और मज़दूरों से भी बात की है। मगर वे अपना काम नहीं छोड़ सकते। उनके पास रोज़ी कमाने का और कोई ज़रिया नहीं है।”
“और आपने कितने मज़दूरों से इस बारे में बात की है?”
“बीसियों से।”
“मेरे ख़्याल से रूस भर के मज़दूरों को इसके बारे में पता चलना चाहिए – उसी तरह, जैसे पोदोल्स्क के टोपी बनाने वाले मज़दूरों को दोन के खनिकों की, या इवानोवो-वोज्नेसेन्स्क के मिल मज़दूरों की, या लेना की सोने की खानों के खनिकों की काम की अमानवीय परिस्थितियों के बारे में पता चलना चाहिए।”
“लेकिन यह किया कैसे जा सकता है?”
“उन्हें इसकी जानकारी अपने ख़ुद के अख़बार में मिलनी चाहिए और सिर्फ़ यही नहीं, उन्हें यह भी सिखाया जाना चाहिए कि मिल मालिकों के ख़िलाफ़ संगठित ढंग से कैसे लड़ना चाहिए – उन्हें आज़ादी पाने का रास्ता दिखाया जाना चाहिए।”
लेवीत्स्की ने कड़वी मुस्कुराहट के साथ पूछा, “भला, ऐसा कौन-सा अख़बार होगा, जो इन सब बातों को छापे?”
“मैं बतलाता हूँ आपको कौन सा अख़बार। उसका नाम है ‘ईस्क्रा’। क्या आप यहाँ के कारख़ानों की हालत के बारे में लेख लिखेंगे? आप यह लेख दमीत्री को दे दीजिए – वह जानते हैं कि उसे कहाँ पहुँचाया जाये।”
व्लादीमिर इल्यीच ने नाव को बहाव के साथ छोड़ दिया और उनकी आँखें पाख्रा के दूसरे किनारे पर घूमने लगीं।
पानी के साथ-साथ करवीर की घनी गुलाबी झाड़ियाँ थीं। उनके पीछे एक बड़े बेदमजनूं के पेड़ के नीचे एक खुली जगह थी, जिसमें बाबूने के फूल छिटके हुए थे। पेड़ की डालों की हरी लटों में सूरज की किरणें चमचमा रही थीं।
“चारों ओर कितना सुहावना है! ताज़ी हवा का महासागर है यहाँ, फिर भी इस अद्भुत जगह के रहने वाले पारे के धुएँ से मर रहे हैं और उनके बच्चे सूखे के शिकार होने के लिए ही पैदा होते हैं। हमारा अख़बार मज़दूरों को यह सिखायेगा कि अपनी क़िस्मत के मालिक आप कैसे बनें।”
“आप ठीक कहते हैं। अगर ऐसा अख़बार सचमुच में हो…”
“वह होगा, निश्चित रूप से होगा, प्रिय डॉक्टर साहब।”
घर लौटने पर व्लादीमिर इल्यीच संतोष के साथ अपने हाथों को आपस में रगड़ते हुए कमरों में चहलक़दमी करते रहे। फिर टहलना बन्द करके उन्होंने दमीत्री से कहा :
“तुम्हारे डॉक्टर बहुत ही दिलचस्प आदमी हैं। वह बहुत ही समझदार हैं। उन्हें चैन से मत बैठने देना – उनसे ‘ईस्क्रा’ के लिए लेख लिखवाओ, मार्क्स की कुछ किताबें उन्हें पढ़ने के लिए दो। वह बहुत ही बढ़िया आदमी हैं!”

मज़दूर बिगुल, फ़रवरी 2021


 

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मज़दूरों के महान नेता लेनिन

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