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(मज़दूर बिगुल के दिसम्बर 2020 अंक में प्रकाशित लेख। अंक की पीडीएफ़ फ़ाइल डाउनलोड करने के लिए यहाँ क्लिक करें और अलग-अलग लेखों-ख़बरों आदि को यूनिकोड फ़ॉर्मेट में पढ़ने के लिए उनके शीर्षक पर क्लिक करें)
सम्पादकीय
एक दिन की हड़ताल जैसे अनुष्ठानों से फ़ासिस्टों का कुछ नहीं बिगड़ेगा
फ़ासीवाद / साम्प्रदायिकता
“लव जिहाद” का झूठ संघ परिवार के दुष्प्रचार का हथियार है! / अरविन्द
कोरोना महामारी और नाकारा मोदी सरकार
भारत में कोरोना की दूसरी लहर, टीकाकरण के हवाई किले और मोदी सरकार की शगूफ़ेबाज़ी / मीनाक्षी
लाखों दिहाड़ी व कैज़ुअल मज़दूरों के लिए अब भी हैं लॉकडाउन जैसे ही हालात / लालचन्द्र
कोरोना काल में आसमान छूती महँगाई और ग़रीबों-मज़दूरों के जीवन की दशा / रूपा
आर्थिक असमानता
महामारी के दौर में भी चन्द अरबपतियों की दौलत में भारी उछाल! या इलाही ये माज़रा क्या है? / आनन्द सिंह
लगातार चौड़ी होती असमानता की खाई पूँजीवादी संकट की लाइलाज बीमारी का लक्षण है / अखिल
सरकारी ढोल की पोल
मोदी की स्वच्छता अभियान की लफ़्फ़ाज़ी और स्कूलों में शौचालय बनाने का घोटाला / प्रेम प्रकाश
कोरोना काल में मनरेगा के बजट में वृद्धि के सरकारी ढोल की पोल / अनुपम
नयी शिक्षा नीति के तहत आँगनवाड़ी केन्द्रों में प्री-प्राइमरी की पढ़ाई; आँगनवाड़ी कर्मियों से बेगारी करवाने का नया तरीक़ा!
विलय के नाम पर आँगनवाड़ी कर्मियों की छँटनी पर आमादा सरकार
मज़दूर आन्दोलन की समस्याएँ
नोएडा के शोषण-उत्पीड़न झेलते दसियों लाख मज़दूर, पर एकजुट संघर्ष और आन्दोलन का अभाव
विरासत
भारत के नव-नरोदवादी “कम्युनिस्टों” और क़ौमवादी “मार्क्सवादियों” को फ़्रेडरिक एंगेल्स आज क्या बता सकते हैं? / अभिनव
हमारा आन्दोलन दबाया नहीं जा सकता (मरीया प्रिलेज़ायेवा की पुस्तक ‘लेनिन कथा से’)
पर्यावरण / स्वास्थ्य
विकृत विकास का क़हर : फेफड़ों में घुलता ज़हर / कविता कृष्णपल्लवी
गतिविधि रिपोर्ट
26 नवम्बर की देशव्यापी हड़ताल में MSSA में शामिल यूनियनों व मज़दूर संगठनों की हिस्सेदारी
देशव्यापी हड़ताल के दौरान RWPI व क्रान्तिकारी मनरेगा मज़दूर यूनियन के बैनर तले हरियाणा में कलायत तहसील का घेराव
पाठकों के पत्र
कोरोना के बहाने मज़दूरों को ठगने और लूटने में जुटी हैं कम्पनियाँ / गौतम कश्यप
मज़दूरों-मेहनतकशों को संगठित होकर अपने हक़ के लिए लड़ना होगा / संजय
बुनियादी सुविधाओं से भी वंचित और सरकारी उपेक्षा की शिकार राजधानी दिल्ली की झुग्गियों का नारकीय जीवन / सूरज सिंह
जनता के मुद्दों से मुँह मोड़ चुके पूँजीवादी मीडिया के दौर में ‘मज़दूर बिगुल’ उम्मीद जगाता है / अम्बरीश
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बुर्जुआ अख़बार पूँजी की विशाल राशियों के दम पर चलते हैं। मज़दूरों के अख़बार ख़ुद मज़दूरों द्वारा इकट्ठा किये गये पैसे से चलते हैं।
मज़दूरों के महान नेता लेनिन