उच्चतम अन्यायालय के आदेश से महामारी के दौर में 48,000 परिवारों को बेघर करने की बर्बर मुहिम शुरू
– बिगुल संवाददाता
सुप्रीम कोर्ट ने देश की राजधानी में रेल पटरियों के पास बनी 48,000 झुग्गियों को अगले तीन महीने में हटा देने का आदेश जारी कर दिया है। यह वही सुप्रीम कोर्ट है जिसे मार्च और अप्रैल में सड़कों पर चल रहे करोड़ों मज़दूरों की हालत पर सुनवाई करने के लिए समय नहीं मिल रहा था। और अब हज़ारों मज़दूरों और उनके बच्चों को सड़क पर फेंक देने का आदेश जारी करने में उसे ज़रा भी समय नहीं लगा।
इस आदेश के तहत जिन लोगों के घर गिराये जायेंगे वे कहाँ रहेंगे इसके बारे में न तो आदेश में कुछ कहा गया है और न ही केन्द्र अथवा राज्य सरकार की तरफ़ से अब तक कोई बात आयी है। गोदी मीडिया सुबह शाम मुम्बई में एक अभिनेत्री के दफ़्तर तोड़े जाने वाली ख़बर पर महाभारत किये जा रहा है, जबकि देश की राजधानी में लाखों आबादी को बेघर करने पर अमल शुरू हो चुका है।
इस सन्देह से भी इन्कार नहीं किया जा सकता कि रेलवे को बेचने में जुटी मोदी सरकार इन बस्तियों को उजाड़कर वहाँ की ज़मीन भी बेचकर पैसे कमाने की योजना बना रही है।
बीती 10 सितम्बर को केशवपुरम में 20 से 25 झुग्गियाँ तोड़ दी गयीं। बिना किसी पूर्वसूचना के रेलवे और पुलिस विभाग ने घटनास्थल पर पहुँचकर तोड़-फोड़ करना शुरू कर दिया। पटरी के किनारे इन बस्तियों में रहने वाले लोग मेहनत-मशक़्क़त कर जीवन जीते हैं। जो थोड़ा बहुत जीवनयापन के लिए बुनियादी सामान उनके पास था, वह अब मलबे का रूप ले चुका है। बरसों से इस स्थान पर रह रहे लोगों ने जब सामान निकालने के लिए कुछ वक़्त की गुज़ारिश की तो पुरुष पुलिसकर्मियों ने महिलाओं और स्थानीय लोगों के साथ मारपीट शुरू कर दी और उनके सामान तथा मवेशियों को जान-बूझकर नुक़सान पहुँचाया। बीमार, बुज़ुर्ग, दूधमुँहे बच्चे, किसी का भी ख़्याल किये बिना तोड़-फोड़ की कार्रवाई शुरू कर दी गयी।
चुनाव के वक़्त पक्का मकान देने के झूठे वादे करने वाली केन्द्र तथा राज्य सरकारें तसल्ली से सोयी हुई हैं, किन्तु जिनकी झुग्गी उजाड़ी जानी है, उनकी रातों की नींद हराम है। कई सालों से रह रहे लोगों का कहना है कि अचानक आये इस आदेश के बाद वे कहाँ जायेंगे। सीलमपुर रेलवे ट्रैक के नज़दीक बसे लोगों ने ‘दिल्ली आवास अधिकार अभियान’ के कार्यकर्ताओं को बताया कि पहले साल की शुरुआत में हुए दंगे, उसके बाद लॉकडाउन के चलते उनकी आर्थिक स्थिति बेहद ख़राब हो गयी है। ऐसे में यह आदेश उनके लिए बेहद गम्भीर मुसीबत बनकर सामने आया है।
एक झुग्गी में एक अकेली बुज़ुर्ग महिला रहती हैं, जो कपड़े में बटन टाँकने का काम करके आजीविका चलाती हैं। उन्होंने बताया कि वे पिछले तीस सालों से यहाँ रह रही हैं, अब इस उम्र में वह क्या करेंगी? कहाँ जायेंगी? एक अन्य महिला ने बताया कि उनके घर में लकवे का मरीज़ है, और आय का साधन नगण्य है, परिवार में वे अकेली कमाने वाली हैं। वे भी बटन टाँकने का काम करती हैं, इतने कम समय में उनके लिए किसी भी तरह से रिहायश का दूसरा इन्तज़ाम कर पाना असम्भव है। किसी ने बताया कि कुछ दिनों पहले ही उसने अपनी पूरी जमापूँजी लगाकर झुग्गी की मरम्मत करायी थी, इस फ़ैसले के बाद पूरा परिवार सदमे में है। रेलवे पटरी के पास बसी झुग्गियों में रहने वाले लोगों के जीवन की कमोबेश ऐसी ही तस्वीर है।
‘दिल्ली आवास अधिकार अभियान’ आवास के अधिकार को हर नागरिक का मूलभूत अधिकार मानता है। यह पिछले पाँच वर्षों से दिल्ली के मज़दूर इलाक़ों तथा झुग्गी बस्तियों में आवास, आजीविका तथा जीवन से जुड़े मसलों को लेकर लड़ता रहा है। आज आये इस आदेश के बाद सरकारों को इस बात पर घेरने की आवश्यकता है कि लोगों के रिहायश का पुख्ता इन्तज़ाम कराया जाये।
झुग्गियों की जगह पक्के मकान के हवा-हवाई वायदे करने वाली केजरीवाल सरकार इस मुद्दे पर लफ़्फ़ाज़ी के अलावा कुछ नहीं कर रही है। ‘दिल्ली में झुग्गियाँ नहीं टूटने देंगे’ के आप पार्टी के दावे की सच्चाई तब सामने आ गयी जब केशवपुरम में मज़दूरों की झुग्गियों को तोड़ा गया और आम आदमी पार्टी का कोई नेता-मंत्री मज़दूरों के साथ खड़ा नहीं दिखा।
मज़दूरों को यह समझ लेना होगा कि ये बहरी सरकार बिना ज़मीनी संघर्षों के हमारी आवाज़ नहीं सुनेगी। पक्का व स्थायी आवास हमारा बुनियादी अधिकार है और हम इसके लिए लड़ते रहेंगे। ‘दिल्ली आवास अधिकार अभियान’ की तरफ़ से इस मुद्दे पर दिल्ली की सभी प्रभावित बस्तियों में अभियान चलाया जा रहा है।
मज़दूर बिगुल, अप्रैल-सितम्बर 2020
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मज़दूरों के महान नेता लेनिन