त्रिलोचन की कविताएँ

त्रिलोचन हमारे बीच नहीं रहे। विगत 9 दिसम्बर को लम्बी बीमारी के बाद उनका निधन हो गया। वे 90 वर्ष के थे। त्रिलोचन भारतीय आत्मा और परम्परा के सकारात्मक पक्ष के कवि थे। वे पूँजीवादी समाज के सर्वव्यापी अलगाव का निषेध करते, जीवन से अगाध लगाव के, सतत यात्रा और संघर्ष के प्रति हठी प्रचण्ड आग्रह के और उज्ज्वल आशाओं के कवि थे।

जिन्दगी की कठिन लड़ाई लड़ते हुए सतत रचनाशील त्रिलोचन लम्बे समय तक साहित्य-संसार के महारथियों द्वारा उपेक्षित रहे। पर उनकी कविताओं की शक्ति को देखकर और आठवें दशक के युवा वामपंथी कवियों में फिर से उनका बढ़ता मान देखकर मठाधीशों ने भी उन्हें मान्यता दी और अपनाने की चेष्टाएँ की। इस अवधि में विभिन्न स्थापित पीठों पर आचार्य पद पर बैठे होकर भी त्रिलोचन संघर्षमय अतीत से अर्जित जनसंग ऊष्मा से अर्जस्वित होकर जनपक्ष कविताएँ लिखते रहे। आज भी हम त्रिलोचन को मुख्यतः ‘धरती’ के कवि के रूप में याद करते हैं और उनका अभिनन्दन करते हैं।

विगुल परिवार की ओर से हम उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि देते हैं और त्रिलोचन को याद करते हुए हम उनके प्रथम संकलन ‘धरती’ (1945) की कुछ कविताएँ बिगुल पाठकों के समक्ष प्रस्तुत कर रहे हैं।

– सम्पादक

1

जिस समाज में तुम रहते हो
यदि तुम उसकी एक शक्ति हो
जैसे सरिता की अगणित लहरों में
कोई एक लहर हो
तो अच्छा है
जिस समाज में तुम रहते हो
यदि तुम उसकी सदा सुनिश्चित
अनुपेक्षित आवश्यकता हो
जैसे किसी मशीन में लगे बहु कल-पुर्जा में
कोई भी कल-पुर्जा हो
तो अच्छा है
जिस समाज में तुम रहते हो
यदि उसकी करूणा ही करूणा
तुम को यह जीवन देती है
जैसे दुर्निवार निर्धनता
बिल्कुल टूटा-फूटा बर्तन पर किसान के रक्खे रहती
तो यह जीवन की भाषा में
तिरस्कार से पूर्ण मरण है
जिस समाज में तुम रहते हो
यदि तुम उसकी एक शक्ति हो
उसकी ललकारों में से ललकार एक हो
उसकी अमित भुजाओं में दो भुजा तुम्हारी
चरणों में दो चरण तुम्हारे
आँखों में दो आँख तुम्हारी
तो निश्चय समाज-जीवन के तुम प्रतीक हो
निश्चय हो जीवन, चिर जीवन
 
2
 
पथ पर
चलते रहो निरन्तर
सूनापन हो
या निर्जन हो
पथ पुकारता है।
गत स्वप्न हो
पथिक
चरण-ध्वनि से
दो उत्तर
पथ पर
चलते रहो निरन्तर
 
3
अभी तुम्हारी शक्ति शेष है
अभी तुम्हारी साँस शेष है
अभी तुम्हारा कार्य शेष है
मत अलसायो
मत चुप बैठो
तुम्हें पुकार रहा है कोई
˜
अभी रक्त रग-रग में चलता
अभी ज्ञान का परिचय मिलता
अभी न मरण-प्रिया निर्बलता
मत अलसाओ
मत चुप बैठो
तुम्हें पुकार रहा है कोई
 
4
जिस समाज का तू सपना है
जिस समाज का तू अपना है
मैं भी उस समाज का जन हूँ
उस समाज के साथ-साथ ही-
मुझको भी उत्साह मिला है।
˜
ओ तू नियति बदलने वाला
तू स्वभाव का गढ़ने वाला
तूने जिन नियमों से देखा
उन मज़दूर-किसानों का दल-
शक्ति दिखाने आज चला है।
˜
साम्राज्य औ’ पूँजीवादी
लिए हुए अपनी बरबादी
जोर-आजमाई करते हैं
आज तोड़ने को उनका मन
उठकर दलित समाज चला है।
˜
तेरी गति में जीवन गतिमय
तेरी मति में मन संगतिमय
तेरी जागरूकता द्युतिमय
तेरी रक्षा की चिन्ता में
जन-जीवन का सुफल फला है
 
5
 
पत्ते केवल पतझर आने पर ही नहीं झरा करते हैं,
जीवन का रस जभी सूख जाता है तभी बिना कुछ झिझ
बिना मुहूर्त-प्रतीक्षा के ही झर जाते हैं।
˜
इस जीवन का मोल बहुत है। मोल कूतना सहज नहीं है।
फिर भी इस जीवन का दुनिया में अपमान हुआ करता है।
इतना जिसका पार नहीं है।
˜
कुछ वर्षों के क्षणभंगुर जीवन को सुखी बनाने के ही
लिए लोग औरों के सुख को बल से हरण किया करते हैं,
जीवन अमर अगर होता तो पता नहीं फिर क्या क्या होता,
क्या क्या गुल खिलते दुनिया में।
˜
ऐसा नहीं दिखाई देता कहीं कि लोग प्रसन्न चित्त से
एक-दूसरे के दुख को अपना ही जाने, अपना मानें
और दुःख को कम करने के लिए समाज समान बनायें
धरती पर ही स्वर्ग बसायें।
 

बिगुल, दिसम्‍बर 2007


 

‘मज़दूर बिगुल’ की सदस्‍यता लें!

 

वार्षिक सदस्यता - 125 रुपये

पाँच वर्ष की सदस्यता - 625 रुपये

आजीवन सदस्यता - 3000 रुपये

   
ऑनलाइन भुगतान के अतिरिक्‍त आप सदस्‍यता राशि मनीआर्डर से भी भेज सकते हैं या सीधे बैंक खाते में जमा करा सकते हैं। मनीऑर्डर के लिए पताः मज़दूर बिगुल, द्वारा जनचेतना, डी-68, निरालानगर, लखनऊ-226020 बैंक खाते का विवरणः Mazdoor Bigul खाता संख्याः 0762002109003787, IFSC: PUNB0185400 पंजाब नेशनल बैंक, निशातगंज शाखा, लखनऊ

आर्थिक सहयोग भी करें!

 
प्रिय पाठको, आपको बताने की ज़रूरत नहीं है कि ‘मज़दूर बिगुल’ लगातार आर्थिक समस्या के बीच ही निकालना होता है और इसे जारी रखने के लिए हमें आपके सहयोग की ज़रूरत है। अगर आपको इस अख़बार का प्रकाशन ज़रूरी लगता है तो हम आपसे अपील करेंगे कि आप नीचे दिये गए बटन पर क्लिक करके सदस्‍यता के अतिरिक्‍त आर्थिक सहयोग भी करें।
   
 

Lenin 1बुर्जुआ अख़बार पूँजी की विशाल राशियों के दम पर चलते हैं। मज़दूरों के अख़बार ख़ुद मज़दूरों द्वारा इकट्ठा किये गये पैसे से चलते हैं।

मज़दूरों के महान नेता लेनिन

Related Images:

Comments

comments