बरगदवा औद्योगिक क्षेत्र, गोरखपुर के अंकुर उद्योग कारख़ाने के मज़दूर आन्दोलन की राह पर
बिगुल संवाददाता
गोरखपुर स्थित बरगदवा औद्योगिक क्षेत्र के अंकुर उद्योग कारख़ाने के मज़दूर 12 जून से हड़ताल पर हैं। हड़ताल की वजह कारख़ाने के भीतर तापमान बहुत ज़्यादा होने सहित फ़ैक्टरी प्रबन्धन द्वारा श्रम क़ानूनों की धज्जियाँ उड़ाकर मज़दूरों से ़ज़बरदस्ती मन मुताबिक़ काम करवाना है।
ज्ञात हो कि अंकुर उद्योग लि. कारख़ाने में लगभग 1100 मज़दूर काम करते हैं जो बिहार के सिवान, छपरा जि़ले तथा गोरखपुर व इसके आसपास के जि़लों के रहने वाले हैं। इस कारख़ाने में धागा बनाने का काम होता है। कारख़ाने का मालिक अंकुर जालान है, लेकिन वास्तविक प्रबन्धन उसका बाप अशोक जालान देखता है।
1998 में स्थापित इस कारख़ाने में श्रम क़ानूनों के लागू होने या न होने की जाँच की जाये तो यही पता चलेगा कि जैसे श्रम क़ानून इस कारख़ाने के लिए बनाये ही न गये हों। इस कारख़ाने के 1100 मज़दूरों में से केवल 27 मज़दूरों को ही कुशल मज़दूर के रेट से मज़दूरी दी जाती है और ये 27 मज़दूर कोई मशीन नहीं चलाते हैं, बल्कि ये जाबर हैं जो देख’रेख करते हैं, मतलब कारख़ाने में कोई भी मज़दूर कुशल मज़दूर की मज़दूरी नहीं पाते। 15 तारीख़ को प्रबन्धन व मज़दूर प्रतिनिधियों के बीच उपश्रमायुक्त की मध्यस्थता में हो रही वार्ता के दौरान जब यह माँग रखी गयी कि कारख़ाने में नियमित मशीन चला रहे कारीगरों को कुशल मज़दूर का वेतन दिया जाये, तब उपश्रमायुक्त ने कहा कि यूपी राज्य में टेक्सटाइल सेक्टर में कुशल, अर्द्धकुशल व अकुशल का निर्धारण मानक तय ही नहीं है। जब उपश्रमायुक्त से यह पूछा गया कि फिर किस आधार पर 27 मज़दूरों को कुशल तथा शेष 1050 मज़दूरों को अर्द्धकुशल व अकुशल की मज़दूरी दी जाती है, इस पर उपश्रमायुक्त ने गोलमोल जवाब देते हुए कहा कि यह फ़ैक्टरी के मालिक का निर्धारण है। श्रम विभाग की हालत का इसी से अन्दाज़ा लगाया जा सकता है। फ़ैक्टरी प्रबन्धन द्वारा मज़दूरों के साथ गाली-गलौच,धक्का-मुक्की आम बात है। पीने के साफ़ पानी का कोई इन्तज़ाम नहीं है। शौचालय गन्दगी और बदबू से भरा रहता है, कभी उसकी सफ़ाई नहीं करायी जाती है। इतनी भीषण गर्मी में बिजली का ख़र्च बचाने के लिए सभी एग्झास्ट बन्द रहते हैं, जिससे असह्य तापमान पर काम करने के लिए मज़दूर बाध्य हैं। लगभग 100 मज़दूर जो नियमित साफ़-सफ़ाई का काम करते हैं और इनमें से कई मज़दूर 1998 से ही काम कर रहे हैं, लेकिन इनको केवल 5900 रुपये ही दिया जाता है, जबकि अकुशल मज़दूर की मज़दूरी 7400 रुपये है। पहचान पत्र, ईएसआई, ईपीएफ़ जैसी कोई सुविधाएँ नहीं मिलतीं।
फ़ैक्टरी प्रबन्धन तमाम तिकड़मों व तानाशाही से वर्कलोड बढ़ाता जा रहा है। कारख़ाने में एक डिपार्टमेण्ट है जिसे सम्प्लेक्स कहते हैं। इस डिपार्टमेण्ट के एक सेक्शन में जनवरी तक 27 मज़दूर काम करते थे, लेकिन जनवरी के बाद मशीन की प्रोडक्शन स्पीड भी बढ़ा दी गयी और 27 से घटाकर मज़दूरों की संख्या 25 कर दी गयी। जनवरी 2017 से ही लगभग 500 मज़दूरों की मज़दूरी में से 12 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से कटौती भी कर दी गयी। इस दौरान जिस भी मज़दूर ने आवाज़ उठायी, उन सबको कारख़ाने से बाहर कर दिया गया।
साल-भर पहले बिगुल मज़दूर दस्ता के नेतृत्व में अंकुर उद्योग लिमिटेड के मज़दूर इन सारी समस्याओं के ख़िलाफ़ एकजुट होकर लड़े थे और फ़ैक्टरी प्रबन्धन को सारी माँगें मानने के लिए बाध्य होना पड़ा था। लेकिन मज़दूर प्रतिनिधियों की ग़द्दारी की वजह से फ़ैक्टरी प्रबन्धन मज़दूरों की एकता को तोड़ने में कामयाब हो गया था जिससे मज़दूर जीती हुई लड़ाई हार गये। तब से फ़ैक्टरी प्रबन्धन व ग़द्दारों की मिलीभगत से मज़दूरों की एकजुटता बिखरी रही। अब सभी ग़द्दारों को किनारे करके एक बार फिर से बिगुल मज़दूर दस्ता के नेतृत्व में सभी मज़दूर संकल्पबद्ध होकर एकजुट हुए है कि जब तक हमारी माँगें नहीं मानी जायेंगी, तब तक हड़ताल जारी रहेगी।
मज़दूर बिगुल, जून 2017
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मज़दूरों के महान नेता लेनिन