गौरक्षा के नाम पर मानव हत्याएँ, जनसेवा के नाम पर अडानी-अम्बानी की सेवा – यही है फासीवादी संघी सरकार का असली चेहरा
सत्यनारायण
पिछली 1 अप्रैल को राजस्थान में एक मुस्लिम किसान को गौरक्षक गुण्डा दलों ने पीट-पीटकर मार दिया। हरियाणा के मेवात का ये डेयरी किसान पहलू खान 1 अप्रैल के दिन जयपुर के प्रसिद्ध साप्ताहिक हटवाड़ा पशु मेले से डेयरी यानी दूध के कारोबार के लिए गाय ख़रीदकर आ रहा था। ये मेला काफ़ी प्रसिद्ध है और यहाँ ज़्यादातर दुधारू पशु आते हैं। मध्यप्रदेश, हरियाणा तक के पशुपालक यहाँ पशु ख़रीदते हैं। पहलू खान के पास गाय ख़रीदने की रसीद और अन्य काग़ज़ात भी मौजूद थे। बस उसकी एक ही ग़लती थी और वो थी मुसलमान होना। अपने आप को गौरक्षक कहने वाले गुण्डों ने उनकी गाड़ी का पीछा करके पकड़ लिया। उन्होंने पिकअप वैन के ड्राइवर (जो कि हिन्दू था) को जाने दिया और पहलू खान, उसके बेटों और दो अन्य लोगों को बुरी तरह मारा-पीटा। इसी पिटाई से पहलू खान की मौत हो गयी और दो अन्य लोग बुरी तरह ज़ख़्मी हुए। ये गुण्डे इतने बेख़ौफ़ थे कि बाकायदा इस वीभत्स घटना का वीडियो बनाकर उसे व्हाट्सऐप आदि पर डाल दिया। यह घटना ऐसी तमाम घटनाओं के सिलसिले की एक और भयानक कड़ी है।
पूरे देश में संघ परिवार (आरएसएस) से जुड़े संगठनों ने पिछले लम्बे समय से गौरक्षा दल खड़े किये हैं, जिनका एकमात्र उद्देश्य गाय के नाम पर जनता में साम्प्रदायिक भावनाएँ फैलानी हैं। इनके आतंक की वजह से बहुत सारी जगहों पर किसानों ने गाय ख़रीदना छोड़कर भैंस ख़रीदना शुरू कर दिया है क्योंकि ये घर के लिए दुधारू गाय ले जाते किसानों को भी पकड़कर मारते हैं। यहाँ तक कि मरे पशुओं की खाल उतारने वाले दलितों को भी मारते हैं। 2 अगस्त 2014 को दिल्ली में शंकर कुमार को इन्होंने जान से मार दिया था। शंकर कुमार दिल्ली महानगरपालिका की उस कॉण्ट्रेक्टर कम्पनी का कर्मचारी था, जिसका काम मरे हुए पशु उठाना था। उस दिन भी वो मरे हुए पशु अपनी गाड़ी में ला रहा था, पर उस पर इन गौरक्षकों का कहर बरपा। ऊना, गुजरात में कुछ महीने पहले चार दलित नौजवानों की बर्बर पिटाई की घटना भी आप सबको याद ही होगी। पिछले ही महीने दिल्ली में शर्मिला नाम की एक महिला को इन गौरक्षक गुण्डों ने बुरी तरह मारा, क्योंकि जब उस महिला की तरफ़ गाय भागी तो उसने बचने के लिए उसकी तरफ़ पत्थर फेंक दिया था। सितम्बर 1915 में उत्तर प्रदेश के दादरी में गोमांस की अफ़वाह उड़ाकर अख़लाक़ की उसके परिवार के सामने पीट-पीटकर हत्या और उसके बाद भाजपा सरकार के केन्द्रीय मन्त्री और विधायकों द्वारा हत्यारों का महिमामण्डन करने की घटनाओं को देश भूला नहीं है। मार्च 2016 में झारखण्ड के लातेहार में गौ-गुण्डों ने 14 साल के एक बच्चे सहित दो मुस्लिम पशु कारोबारियों को मारकर पेड़ पर लटका दिया था।
भारत के ज़्यादातर राज्यों में गाय की हत्या पर पहले से ही प्रतिबन्ध है और बीफ़ के नाम पर जो मांस मिलता है वो भैंस का होता है। ये बात हर कोई जानता है पर नरेन्द्र मोदी ने 2014 के चुनाव प्रचार से पहले इसे बड़ा मुद्दा बनाकर जनता को गुमराह किया। मोदी ने कहा कि गाय की हत्या हो रही है और भारत का मांस निर्यात लगातार बढ़ रहा है। लोगों को लग रहा था कि सत्ता में आते ही मोदी ये मांस निर्यात रोक देंगे। लेकिन सत्ता में आने के बाद मोदी का असली चेहरा भी सामने आ गया और उन्होंने चीन को भारत से सीधे बीफ़ ख़रीदने की पेशकश कर दी। चीन अभी तक भारत का बीफ़ वियतनाम के रास्ते ख़रीदता रहा है, पर मोदी के “कड़े प्रयासों” से जनवरी 2017 यानी इसी साल के शुरू में चीन भारत से सीधे बीफ़ ख़रीदने पर राजी हो गया है। चीन के अधिकारियों ने भारत का दौरा कर 14 पशुवधगृह भी तय कर दिये हैं जिनसे ये बीफ़ ख़रीदा जायेगा। हाल ही में यूपी की योगी सरकार द्वारा अवैध पशुवधगृहों पर लगी रोक को भी इसी रोशनी में समझा जा सकता है। जब सरकारी तौर पर अधिकृत पशुवधगृह कम होंगे और सारे अवैध बन्द हो जायेंगे, तभी तो उनको किसानों की भैंस सस्ते में मिलेगी। ये वैसा ही है, जैसा रिलायंस फ्रेश का स्टोर खुलवाने के लिए अवैध के नाम पर सब्ज़ी की छोटी दुकानों, रेहड़ी, पटरी वालों को हटा दिया जाये। स्पष्ट है कि ये भावना भड़काकर बड़े पूँजीपतियों की ही सेवा कर रहे हैं।
पिछले लम्बे समय से आरएसएस से जुड़े संगठनों ने भावनाओं को भड़काकर जगह-जगह गौरक्षा के नाम पर गुण्डा दल खड़े किये हैं। इण्टरनेट पर ये गौरक्षा दल लोगों की बर्बर तरीक़े से पिटाई के वीडियो डालते हैं और इनके खि़लाफ़ कोई कार्रवाई नहीं होती है। ये वीडियो आपको इस्लामिक स्टेट के आतंकियों के वीडियो जैसे ही लगेंगे, बशर्ते आपके अन्दर इंसानियत बाक़ी हो।
सवाल है कि क्या सच में इनका मक़सद गाय की रक्षा करना है? अगर देखा जाये तो जिन-जिन राज्यों में गौरक्षा के क़ानून लागू हुए, गौरक्षा दलों का आतंक बढ़ा, वहाँ के किसानों ने गाय की जगह भैंस पालना शुरू कर दिया, क्योंकि किसान के लिए पशुपालन भावना का नहीं बल्कि आर्थिक सहारे का मसला है। हरियाणा, उत्तरप्रदेश, गुजरात, राजस्थान जैसे राज्यों में भैंसों की तादाद गायों से कहीं ज़्यादा है। महाराष्ट्र में गौहत्या पर तो पहले से ही बैन था, पर देवेन्द्र फ़डनवीस की सरकार ने बैलों और साण्डों की हत्या पर भी बैन लगा दिया, जिसकी वजह से गौवंश का पूरा मार्केट तबाह हो गया है। किसानों के लिए बैल ख़रीदना नुक़सान का सौदा बन गया है। पूरे महाराष्ट्र में इस समय 7.5 लाख आवारा गौवंश खुले घूम रहे हैं और गाँवों-शहरों में एक्सीडेण्ट करवाने के साथ-साथ गाँवों में किसानों की फ़सलों को बर्बाद कर रहे हैं।
इन गौरक्षकों को शहरों में कूड़े के ढेरों पर मुँह मारती हुई और पॉलीथीन की थैलियाँ खाकर हर साल हज़ारों की संख्या में मरती हुई गायें अपनी ”माता” नहीं नज़र आतीं। राजस्थान में भाजपा शासन में पिछले वर्ष एक सरकारी गौशाला में गन्दगी और चारे की कमी से 50 से ऊपर गायें मर गयीं, तब इनका माता प्रेम नहीं जागा!
ज़ाहिर है कि इस पूरी गुण्डागर्दी के पीछे कहीं से भी गायों का भला करना नहीं है, बल्कि समाज में लगातार बढ़ रही आर्थिक खाई से ध्यान भटकाना है। 29 मार्च को ही मोदी सरकार ने लोकसभा में बताया था कि उन्होंने 2013 के मुकाबले 2015 में 90 प्रतिशत सरकारी नौकरियाँ ख़त्म कर दी हैं। बेरोज़गारी अपने चरम पर है, तमाम सारी प्राइवेट कम्पनियाँ छँटनी कर रही हैं। स्टेट बैंक ऑफ़ इण्डिया का मासिक न्यूनतम बैलेंस बढ़ाकर पैसा जमा किया जा रहा है ताकि उद्योगपतियों को लोन दिया जा सके या फिर डिफ़ॉल्टर्स के कारण पैदा हुए बुरे लोन को कम किया जा सके। रेलवे जैसे महत्वपूर्ण सेक्टर को बेचने की शुरुआत हो चुकी है। हबीबगंज, भोपाल का स्टेशन बंसल नाम के व्यापारी को बेच दिया गया है। मोदी के क़रीबी गौतम अडानी की सम्पति 2014-2015 में दोगुना हो गयी थी।
ऐसे हालात में आर्थिक मुद्दों से ध्यान हटाने के लिए मोदी सरकार कभी गौरक्षा तो कभी लवजिहाद तो कभी राममन्दिर जैसे भावनात्मक मुद्दे उठाकर जनता को गुमराह कर रही है। हमें इनकी असलियत को समझना होगा, अन्यथा हमारा देश भी उसी राह पर चल पड़ेगा, जिस राह पर आज अन्य धार्मिक कट्टरपन्थी देश चल रहे हैं। तालिबान भी जब अफ़गानिस्तान में आया था, तो इसी तरह धर्म के नाम पर लोगों को ब्लैकमेल करते हुए आया था और उसके बाद उसने वहाँ क्या किया, ये सबको मालूम है। पाकिस्तान में भी 14 अप्रैल के दिन मरदान विश्वविद्यालय में एक छात्र को हज़ारों की भीड़ ने ईशनिन्दा के नाम पर पीट-पीटकर मार डाला। ज़ाहिर है कि अगर धर्म का सार्वजनिक जीवन में प्रवेश होगा तो इस तरह की घटनाएँ ही सामने आयेंगी।
हमारे देश के महान शहीद भगतसिंह ने कहा था – “लोगों को परस्पर लड़ने से रोकने के लिए वर्ग चेतना की ज़रूरत है। ग़रीब मेहनतकश व किसानों को स्पष्ट समझा देना चाहिए कि तुम्हारे असली दुश्मन पूँजीपति हैं, इसलिए तुम्हें इनके हथकण्डों से बचकर रहना चाहिए और इनके हत्थे चढ़ कुछ न करना चाहिए। संसार के सभी ग़रीबों के, चाहे वे किसी भी जाति, रंग, धर्म या राष्ट्र के हों, अधिकार एक ही हैं। तुम्हारी भलाई इसी में है कि तुम धर्म, रंग, नस्ल और राष्ट्रीयता व देश के भेदभाव मिटाकर एकजुट हो जाओ और सरकार की ताक़त अपने हाथ में लेने का यत्न करो।”
शहीद भगतसिंह की बात को ध्यान में रखते हुए हमें आज इन संघी फासीवादियों की असलियत समझने की ज़रूरत है। ये नाम तो हिन्दु धर्म का लेते हैं पर इनका असली धर्म अडानी, अम्बानी, जि़न्दल, मित्तल का मुनाफ़ा है। जब भी ये धर्म का नाम लेकर हमारे बीच आयें तो इनकी आर्थिक नीति पूछने की ज़रूरत है। हमें ये ध्यान रखने की ज़रूरत है कि अगर हम आज नहीं सँभले तो हमारी आगे आने वाली पीढि़याँ इसकी क़ीमत चुकायेंगी।
मज़दूर बिगुल, अप्रैल 2017
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