बोलते आँकड़े, चीख़ती सच्चाईयाँ

  • पूरी दुनिया में कम से कम 12.3 मिलियन लोगों से बँधुआ मज़दूरी करायी जाती है।
  • हर साल पूरी दुनिया में 20 लाख लोग काम के दौरान दुर्घटनाओं या पेशागत रोगों के कारण मारे जाते हैं।
  • दुनिया की केवल 20 प्रतिशत आबादी को उचित सामाजिक सुरक्षा प्राप्त है और आधी से अधिक आबादी को कोई सुरक्षा नहीं है।
  • मौजूदा समय में पूरी दुनिया में 20 करोड़ से अधिक बच्चे बाल मज़दूरी कर रहे हैं, जो उनके मानसिक, शारीरिक और भावनात्मक विकास को नुक़सान पहुँचा रहा है।
  • भारत में औसत आयु चीन के मुक़ाबले 7 वर्ष और श्रीलंका के मुक़ाबले 11 वर्ष कम है। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 5 वर्ष से कम आयु के बच्चों की मृत्युदर चीन के मुक़ाबले तीन गुना, श्रीलंका के मुक़ाबले लगभग 6 गुना और यहाँ तक कि बांग्लादेश और नेपाल से भी ज़्यादा है। भारतीय बच्चों में से तक़रीबन आधों का वज़न ज़रूरत से कम है और वे कुपोषण से ग्रस्त हैं। क़रीब 60 फ़ीसदी बच्चे ख़ून की कमी से ग्रस्त हैं और 74 फ़ीसदी नवजातों में ख़ून की कमी होती है। प्रतिदिन लगभग 9 हज़ार भारतीय बच्चे भूख, कुपोषण और कुपोषणजनित बीमारियों से मरते हैं। 5 साल से कम उम्र के बच्चों की मौत के 50 फ़ीसदी मामलों का कारण कुपोषण होता है। 5 वर्ष से कम आयु के 5 करोड़ भारतीय बच्चे गम्भीर कुपोषण के शिकार हैं। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार, 63 फ़ीसदी भारतीय बच्चे प्रायः भूखे सोते हैं और 60 फ़ीसदी कुपोषणग्रस्त होते हैं। 23 फ़ीसदी बच्चे जन्म से कमज़ोर और बीमार होते हैं। एक हज़ार नवजात शिशुओं में से 60 एक वर्ष के भीतर मर जाते हैं। लगभग दस करोड़ बच्चे होटलों में प्लेटें धोने, मूँगफली बेचने आदि का काम करते हैं।
  • भारत की वित्तीय राजधानी मुम्बई में, 60 प्रतिशत से अधिक आबादी झुग्गी-झोंपड़ियों में रहती है। जहाँ वे अमानवीय स्थितियों में रहती हैं और स्वास्थ्य की स्थिति ग्रामीण क्षत्रों के जैसी है।
  • मुम्बई के 40 प्रतिशत बच्चों का वज़न सामान्य से कम है, यानी उन्हें पर्याप्त पोषण नहीं मिलता।
  • दुनिया में प्रति व्यक्ति, प्रति दिन 2 अमेरिकी डाॅलर (120 रुपये) से कम पर गुज़ारा करने वालों की संख्या बढ़कर एक अरब से अधिक, या दुनिया में रोज़गार प्राप्त लोगों की संख्या का 45 प्रतिशत हो जायेगी।
  • जहाँ विकसित देशों के लोग औसतन अपनी कुल आमदनी का 10 से 20 फ़ीसदी भोजन पर ख़र्च करते हैं, वहीं भारत के लोग अपनी कुल कमाई का औसतन क़रीब 55 फ़ीसदी हिस्सा भोजन पर ख़र्च करते हैं। लेकिन कम आय वर्ग के भारतीय नागरिक अपनी आमदनी का 70 प्रतिशत भाग भोजन पर ख़र्च करते हैं, और फिर भी उन्हें दो न तो भरपेट भोजन मिलता है, न ही पोषणयुक्त भोजन। औसतन एक आदमी को प्रतिदिन 50 ग्राम दाल चाहिए, लेकिन भारत की नीचे की 30 फ़ीसदी आबादी को औसतन 13 ग्राम ही नसीब हो पाता है। प्रोटीन का दूसरा बड़ा स्रोत, यानी  मांस उनकी पहुँच से बाहर कर दिया गया है।
  • भूखे लोगों की सबसे बड़ी संख्या भारत में रहती है। कुपोषण के मामले में भी भारत दुनिया में सबसे आगे है।
  • जहाँ दुनिया के बहुतेरे देशों से टीबी की बीमारी समाप्त हो चुकी है वहीं भारत टीबी और कई अन्य बीमारियों में नम्बर एक पर है। मलेरिया से सबसे ‍ज़्यादा मरने वालों की संख्या के लिहाज़ से दुनिया में इसका तीसरा स्थान है।
  • भारत में प्रति हज़ार आबादी पर एक डॉक्टर के वैश्वि‍क पैमाने पर पहुँचने के लिए अभी पाँच लाख डॉक्टरों की भरती करनी पड़ेगी। यानी माना जा सकता है कि इसकी दूर-दूर तक कोई सम्भावना नहीं है। इस मामले में भारत की स्थिति पाकिस्तान और बंगलादेश जैसे देशों से भी बदतर है।
  • भारत में सबसे ज़्यादा ऐसे लोग रहते हैं जिन्हें पीने के लिए साफ़ पानी भी नहीं मिलता।
  • दुनिया में निरक्षरों की सबसे बड़ी संख्या भी भारत में ही है।

 

मज़दूर बिगुल, अप्रैल 2017


 

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