मध्य प्रदेश – नवजात बच्चों का नर्क
सिकन्दर
रजिस्ट्रार जनरल ऑफ़ इण्डिया की एसआरएस रिपोर्ट के मुताबिक़ भारत में सबसे ज़्यादा बच्चों की मौत भाजपा शासित मध्य प्रदेश में होती है। इस रिपोर्ट के मुताबिक़ मध्य प्रदेश में पैदा होने वाले 1000 बच्चों में से 52 जन्म की पहली वर्षगाँठ भी नहीं मना पाते। इस तरह मध्य प्रदेश की बाल मृत्यु दर 52 है जो सर्वेक्षण किये गये राज्यों में से सबसे ज़्यादा है। ग्रामीण क्षेत्रों की हालत और भी चिन्ताजनक है जहाँ यह आँकड़ा 57 पर जा पहुँचता है (58 लड़कियाँ और 55 लड़के)। शहरी क्षेत्रों में जहाँ 1000 नवजात लड़कियों में 35 की मौत 1 वर्ष के अन्दर हो जाती है, वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में यह आँकड़ा 58 है। गाँवों के 70% अस्पतालों में डॉक्टरों की कमी है और इलाज का कोई उचित प्रबन्ध नहीं। पाँच वर्ष की उम्र वाले 1000 बच्चों में से 65 की मौत हो जाती है, जिनमें से 70 लड़कियाँ हैं और 60 लड़के। पाँच वर्ष से कम उम्र के इन बच्चों में से 45 फ़ीसदी की मौत कुपोषण के कारण होती है, यानी यह सीधा-सीधा ग़रीबी के कारण है।
इस तरह हम देख रहे हैं कि किस तरह यह पूँजीवादी व्यवस्था बहुत सारे बच्चों से उनकी ज़िन्दगियाँ छीन रही है। यह सीधे-सीधे एक ऐसे प्रबन्ध द्वारा किये गये क़त्ल हैं जहाँ एक तरफ़ तो दौलत के अम्बार लग रहे हैं और दूसरी तरफ़ बहुसंख्यक लोग इस हद तक ग़रीबी से ग्रस्त हैं कि अपने बच्चों को अच्छा भोजन, अच्छी शिक्षा, अच्छा दवा-इलाज तक नहीं दे पाते। ये सारी बुराइयाँ एक ऐसी व्यवस्था में ही ख़त्म हो सकती हैं जहाँ उत्पादन मुनाफ़े की ख़ातिर नहीं बल्कि जनता की ज़रूरतों के अनुसार होगा। बहुत सारे बच्चे कुपोषण का ही शिकार होकर मर जाते हैं जबकि हर वर्ष लाखों टन अनाज गोदामों में पड़ा-पड़ा सड़ जाता है या शराब की कम्पनियों को दे दिया जाता है, इस तरह जनता की साधारण ज़रूरतों में लगने वाली दवाइयों में से भी ये निजी कम्पनियाँ ढेर सारा मुनाफ़ा कमाती हैं और जनता को लूटती हैं। इसलिए इस पूरी व्यवस्था को आज बदलना पड़ेगा और इस व्यवस्था के िख़लाफ़ युद्ध छेड़ने में प्रथम भूमिका आज के नौजवानों के सिर पर ही है।
मज़दूर बिगुल, जनवरी 2017
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