होंडा मज़दूरों का संघर्ष जारी है!
दिल्ली में जंतर-मंतर पर शुरू हुई अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल
बिगुल संवाददाता
पिछले 7 महीनों से टप्पूकड़ा,अलवर (राजस्थान) स्थित होंडा कम्पनी के मज़दूर अपने जायज़ हक़ों और कम्पनी मैनेजमेंट तथा राज्य सरकार द्वारा किये जा रहे बर्बर दमन का सामना करते हुए भी अपने संघर्ष को जुझारू तरीके से लड़ रहे हैं। जितनी बार भी होंडा के मैनजमेंट ने पुलिस, राजस्थान की वसुंधरा राजे सरकार, हरियाणा की खट्टर सरकार और अपने भाड़े के टट्टुओं से मजदूरों के संघर्ष पर हमला करवाया है मजदूरों ने उतने ही जुझारू तरीके से जवाब दिया है. मजदूरों ने अब अपने संघर्ष को विस्तारित करते हुए देश की राजधानी के दिल में अपना खूँटा गाड़ लिया है. यह इस संघर्ष का बढ़ा हुआ कदम है और वह कदम है जिससे इस आन्दोलन को जीतने की सम्भावना बढ़ जाती है। मजदूर बिगुल के पन्नों पर हमने 16 फरवरी के बर्बर दमन के बाद से ही होंडा के मजदूरों को यह सुझाव दिया था कि अपने आन्दोलन को दिल्ली तक लेकर आयें. होंडा मोटर साइकिल एंड स्कूटर 2 एफ़ कामगार समूह की नेतृत्वकारी कमेटी की यह रणनीति कारगर कदम है जो इस आन्दोलन को जीत के रास्ते लेकर जा सकता है। पिछले 7 महीने से होंडा के मजदूर जिस भयंकर दमन को झेल रहे है उसे कोर्पोरेट मीडिया ने जनता के सामने कभी पेश नहीं किया है। परन्तु अब उन्हें भी मजबूर होकर होंडा के संघर्ष को दिखाना होगा क्योंकि होंडा के मजदूर जंतर मंतर पर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं और यूनियन के नेता नरेश मेहता समेत अविनाश, सुनील, रवि और विपिन 19 सितम्बर से अनिश्चित्कालीन भूख हड़ताल पर बैठे हैं। होंडा मजदूरों का यह संघर्ष अब निर्णायक मोड़ तक पहुँच चुका है तो हमें इस आन्दोलन के बीते 7 महीने को भी देख लेना चाहिए।
होंडा के मजदूरों का संघर्ष: बीते 7 महीने
16 फरवरी 2016 को होंडा टप्पूकड़ा की फैक्ट्री में जब एक मज़दूर ने बीमार होने के कारण काम करने से मना किया तब फैक्ट्री के सुपरवाइजर ने उसके साथ बुरी तरह मारपीट की। इस जानवर सरीखे सुलूक के ख़िलाफ़ जब पूरी फैक्ट्री के मज़दूर इकठ्ठा होने लगे तो होंडा मैनेजमेंट ने जबरन तालाबंदी कर मज़दूरों को बाहर जाने से रोक दिया और शाम होते ही अपने बाउन्सरों, भाड़े के गुंडों को मज़दूरों की यूनिफार्म पहना कर मजदूरों के साथ मारपीट करवाई और पुलिस को बुलवा कर मज़दूरों के साथ बुरी तरह से मारपीट की जिसमें कई मज़दूरों को गंभीर चोटें आईं। पुलिस ने 44 मजदूरों को गिरफ्तार कर उनपर धारा 307 (हत्या की कोशिश) जैसी संगीन धाराएँ लगाकर उन्हें 18 दिन तक जेल में डाल दिया। दरअसल होंडा के मज़दूर लम्बे अरसे से अपने जायज़ और संविधान द्वारा दिए गए श्रम अधिकारों को हासिल करने के लिए अपनी यूनियन को पंजीकृत करवाने के लिए प्रयासरत थे। होंडा मैनेजमेंट मज़दूरों की यूनियन को पंजीकृत होने से रोकने के लिए तमाम हथकंडे अपना रही थी और 16 फरवरी की घटना इसीका कारण बनी। वैसे मज़दूरों के साथ ऐसी घटनाएँ कोई नयी बात नहीं है, जब भी मज़दूर अपने हकों के लिए आवाज़ उठाते है तब-तब उनके साथ ऐसा ही बर्ताव किया जाता है। 16 फरवरी की घटना के बाद मज़दूरों ने जब भी टप्पूकड़ा, धारुहेड़ा में कोई भी प्रदर्शन या रैली आयोजित करने का प्रयास किया तब होंडा मैनेजमेंट के इशारे पर उन पर राजस्थान पुलिस ने बर्बर लाठीचार्ज किया.
संघर्ष अब भी जारी है!
जब भी होंडा मज़दूरों ने अपने संविधानिक अधिकारों के लिए आवाज़ उठाई तब तब उनपर राज्य तंत्र ने बर्बर दमन किया. लेकिन दमन के कई दौरों को झेलने के बाद, लाठियां, गोलियां और फर्जी मुक़दमे झेलने के बाद भी होंडा मजदूर जज्बे से लड़ रहे हैं और अब इस लडाई को दिल्ली में चलाया जायेगा। इस संघर्ष में एक महत्वपूर्ण घटना यह हुई है कि ज़्यादातर प्रशिक्षित मजदूरों को गैर कानूनी तरीके से काम से बाहर निकलवाने के बाद मैनेजमेंट ने ठेके पर मजदूरों को काम पर रखा जो अप्रशिक्षित हैं और ऑटोमोबाइल सेक्टर के काम से अपरिचित हैं और इस कारण पिछले लम्बे समय से होंडा 2 एफ़ के अन्दर बन रहे दुपहिया वाहनों में खराबी आ रही है. यह एक बहुत ज़रूरी बात है जिसे हमें अपने आन्दोलन में रणनीतिक इस्तेमाल करना चाहिए। अपनी लड़ाई को आगे बढाते हुए होंडा के मज़दूरों को दिल्ली के जंतर मंतर पर खूंटा गाड़कर बैठना चाहिए व पूरी देश की जनता को होंडा फैक्टरी द्वारा किये जा रहे अत्याचार से अवगत कराना चाहिए व होंडा की खराब मोटरसाइकिल और स्कूटर के खिलाफ बहिष्कार आन्दोलन चलाया जाना चाहिए। ऐसे ही एक बहिष्कार आन्दोलन को दुनिया भर में प्रगतिशील ताकतें इजरायल द्वारा गाजा में किये गए ज़ुल्मों के खिलाफ चला रही हैं और उन्होंने इज़राइल की अर्थव्यवस्था की कमर तोड़ दी है। जब दुनिया भर में मुटठी भर कार्यकर्ता इज़राइल सरीखे देश के खिलाफ आन्दोलन खड़ा कर सकते हैं तो होंडा मेनेजमेंट के खिलाफ होंडा के मजदूर और देश की तमाम प्रगतिशील ताकतें ऐसा आन्दोलन खड़ा कर सकती हैं जो होंडा को झुकाने पर मजबूर कर सकती है। साथ में हमें दूसरा काम यह करना चाहिए कि गुडगाँव में मौजूद होंडा 1एफ़ प्लांट में यूनियन से अपील करनी चाहिए कि वे हमारे समर्थन में टूल डाउन करें या इसी तरह से ही हमारे समर्थन में विरोध का कोई तरीका निकालें जिससे कि होंडा के मुनाफे पर चोट की जा सके. असल में गुडगाँव, मानेसर, धारूहेड़ा, बावल, भिवाड़ी तक फैली ऑटोमोबाइल सेक्टर की औद्योगिक पट्टी में मजदूरों के गुस्से का लावा उबल रहा है जो समय समय पर फूट कर ज़मीन फाड़कर बाहर निकलता है. ऐसे गुस्से को हमें एक ऐसी यूनियन में बांधना होगा जो पूरे सेक्टर के तौर पर मजदूरों को संगठित कर सकती हो। हमें होंडा के आन्दोलन को भी पूरे औद्योगिक सेक्टर में फैलाना होगा। इस संघर्ष को हमें जंतर मंतर पर खूंटा बाँधकर चलाना होगा तो दूसरी और हमें टप्पूकड़ा से लेकर गुडगाँव-मानेसर-बावल-भिवाड़ी के मजदूरों में अपने संघर्ष का प्रचार करना चाहिए जिससे कि उन्हें भी इस संघर्ष से जोड़ा जा सके. यह इस आन्दोलन के जीते जाने की सबसे ज़रूरी कड़ी है।
मज़दूर बिगुल, अगस्त-सितम्बर 2016
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मज़दूरों के महान नेता लेनिन