टेक्सटाइल-होज़री मज़दूरों की हड़तालों ने अड़ियल मालिकों को झुकने के लिए मजबूर किया

लखविन्दर

मई महीने में लुधियाना में टेक्सटाइल-हौज़री कामगार यूनियन के नेतृत्व में दो कारख़ानों के मज़दूरों ने मालिकों लूट-शोषण के ख़ि‍लाफ़ ज़ोरदार हड़तालों के जरिए अहम प्राप्तियाँ हासिल की हैं।

राजकुमार रविन्दर कुमार टेक्सटाइल हड़ताल 16 मई 2016

राजकुमार रविन्दर कुमार टेक्सटाइल हड़ताल 16 मई 2016

पहली हड़ताल लुधियाना के इण्डस्ट्रीयल एरिया-ए स्थित राजकुमार रविन्दर कुमार टेक्सटाइल में हुई। 18 अप्रैल को मोहित नाम के एक मज़दूर को मालिक ने एक भारी डिजाइन चेन जैकाट पावरलूम मशीन पर चढ़ाने के लिए कहा था। यह काम दो मज़दूरों का था लेकिन मोहित को अकेले ही यह काम काम करने के कहा गया। ऐसा करते हुए मोहित सीढ़ी से गिर गया और उसके पैर की हड्डी टूट गयी। जब मालिक ने उसका सही ढंग से इलाज नहीं करवाया गया तो बाकी मज़दूरों ने मालिक पर दबाव बनाया कि उसका सही ढंग से इलाज करवाए। साथ ही माँग की कि सभी मज़दूरों का ई.एस.आई. कार्ड बनाया जाये। मालिक ने साफ कह दिया कि मोहित 500 रुपए ले ले और गाँव जाकर अपना इलाज करवा ले। ई.एस.आई. बनाने से भी उसने दो टूक इनकार कर दिया। मालिक के अमानवीय रवैये ने कारख़ाने के सारे मज़दूरों (32) को 14 मई 2016 से हड़ताल पर जाने के लिए मजबूर कर दिया।

राजकुमार रविन्दर कुमार टेक्सटाइल हड़ताल 17 मई 2016

राजकुमार रविन्दर कुमार टेक्सटाइल हड़ताल 17 मई 2016

मालिक को भ्रम था कि मज़दूर एक-दो दिन में काम पर वापिस आ जाएँगे। लेकिन मज़दूरों ने भी लम्बी लड़ाई लड़ने की ठान ली थी। इलाक़े में अन्य मज़दूरों से समर्थन हासिल करने के लिए ज़ोरदार प्रचार चलाया गया। पर्चा बाँटा गया, नुक्कड़ सभाएँ की गईं, पैदल मार्च किये गए। अन्य पावरलूम मज़दूरों से अपील की गयी कि उनकी जगह दूसरे मज़दूर काम पर न जाएँ। ई.एस.आई.सी. व श्रम विभाग के कार्यालयों पर ज़ोरदार प्रदर्शन करके मालिक के ख़ि‍लाफ़ शिकायत की गयी। मालिक ने हड़ताली मज़दूरों को लालच और डराने-धमकाने के जरिए तोड़ने की बहुत कोशिश की। लेकिन मज़दूर हड़ताल में डटे रहे। हड़ताल के सातवें दिन 20 मई को श्रम विभाग कार्यालय पर मज़दूरों और मालिकों के बीच टेक्सटाईल हौज़री कामगार यूनियन के प्रतिनिधियों, लुधियाना टेक्सटाइल ऐसोसिएशन के प्रतिनिधियों व सहायक श्रम कमिश्नर व श्रम इंस्पेक्टर की हाजिरी में लिखित समझौता हुआ। मालिक मोहित को 25 हज़ार रुपए मुआवजा देने, कारख़ाने में सुरक्षा के इंतजाम, सभी मज़दूरों को ई.एस.आई., ई.पी.एफ., हाजिरी, पीने के पानी की उचित प्रबन्ध, साफ-सफाई, छुट्टियाँ आदि आधिकार देने के लिए लिखित समझौता करने के लिए मजबूर हुआ। रिपोर्ट लिखे जाने तक मुआवजा मिल चुका है, ई.एस.आई. व ई.पी.एफ. की सहूलत लागू करने की प्रक्रिया काफी हद तक पूरी हो चुकी है। स्वच्छ पेयजल और साफ-सफाई की व्यवस्था भी की गयी है। इस तरह इस कारख़ाने के मज़दूरों ने एकजुटता के जरिए मालिक, ई.एस.आई. व श्रम विभाग को उनके अधिकार देने के लिए मजबूर किया।

‘ओक्टेव क्लाथिंग’ हड़ताल 31 मई 2016

‘ओक्टेव क्लाथिंग’ हड़ताल 31 मई 2016

दूसरी हड़ताल रेडीमेड कपड़ों की प्रसिद्ध कम्पनी ‘ओक्टेव क्लाथिंग’ के कारख़ाने में हुई। जालंधर बाईपास के नजदीक जी.टी. रोड पर स्थित कारख़ाने का मालिक हर्ष कुमार मज़दूरों से रोज़ाना गाली-गालौज व मारपीट करता था। जब कोई मज़ूदूर विरोध करता तो पिस्तोल तान कर जान से मारने की धमकी देता था। मज़दूर बताते हैं कि उसने मज़दूरों को डराने के लिए कारख़ाने में कई बार हवाई फायर भी किये हैं। 25 मई को भी उसने जाहिद अंसारी नाम के एक मज़दूर के साथ गाली-गालौज व धक्कामुक्की की। जब जाहिद ने विरोध किया तो मालिक ने अपने अंगरक्षक को कहा कि जाहिद गोली मार दे। जब अंगरक्षक ने ज़ाहिद पर पिस्तोल तानी तो सारे मज़दूर तुरन्त खड़े होकर इसका विरोध करने लगे। लगभग 200 मज़दूरों ने तुरन्त हड़ताल का ऐलान कर दिया। थाने में शिकायत दी गयी लेकिन पुलीस कार्रवाई करने को तैयार नहीं थी। मालिक ने बहाना बनाया कि आत्मरक्षा के लिए पिस्तोल निकाली गयी थी। अधिकतर मज़दूर चाहते थे कि मालिक अगर माफ़ी माँग लेता है और सरकारी अधिकारियों के सामने लिखित में भरोसा देता है कि भविष्य में फिर कभी इस तरह की कार्रवाई नहीं करेगा तो वे काम पर लौटने को तैयार हैं।

‘ओक्टेव क्लाथिंग’ हड़ताल 31 मई 2016

‘ओक्टेव क्लाथिंग’ हड़ताल 31 मई 2016

हड़ताल पर गये सारे मज़दूर वे थे जिन्हें कोई भी क़ानूनी श्रम अधिकार प्राप्त नहीं है। उनके पास कारख़ाने में काम करने का कोई सबूत तक नहीं था। उन्हें तो पता तक नहीं था कि श्रम क़ानून जैसी कोई चीज भी होती है। यूनियन द्वारा की गयी बातचीत से मज़दूरों ने इस बात को समझा कि उन्हें कारख़ाने में पहचान पत्र, ई.एस.आई., ई.पी.एफ., आदि अधिकार लागू करवाने की ल़ड़ाई भी जरूरी तौर पर लड़नी चाहिए। इसके बारे में श्रम विभाग में शिकायत दी गयी।

ओक्टेव क्लाथिंग कारख़ाने के मालिक ने भी मज़दूरों को लालच देकर व डरा-धमकाकर हड़ताल तोड़ने की कोशिश की। उसने एक शो रूम के उदघाटन के लिए दुबई चले जाने का ड्रामा रचा तांकि मज़दूरों को हड़ताल खत्म होती नज़र न आये और हिम्मत हार कर काम पर लौट आएँ। उसने अपनी पत्नी, कैशीयर, आदि के जरिए लिखित समझौता करवाने की कोशिश की। कांग्रेस, अकाली दल आदि पार्टियों से जुड़े दलाल नेताओं के जरिए हड़ताल तुड़वाने की कोशिश हुई। मज़दूरों में से ही मालिकों के दो-तीन चमचों ने हड़ताल तुड़वाने के लिए पूरा ज़ोर लगाया। यूनियन नेताओं को खरीदने की भी कोशिश की गयी। लेकिन एक भी चाल कामयाब नहीं हुई। मज़दूर इस बात पर अड़े रहे कि जब कि मालिक हर्ष कुमार ख़ुद हाज़िर होकर श्रम विभाग के अधिकारियों के सामने लिखित समझौता नहीं करता तब तक वे हड़ताल खत्म नहीं करेंगे। मज़दूरों ने कारख़ाना गेट, पुलिस थाने, श्रम विभाग कार्यालय पर ज़ोरदार प्रदर्शन किये। इलाक़े में पर्चा भी बाँटा। इलाक़े के मज़दूरों से समर्थन व उनकी जगह काम पर न जाने की अपील की। आखिर उसे भी हड़ताल के सातवें दिन 31 मई को झुकना पड़ा। मालिक हर्ष कुमार ने सहायक श्रम कमिश्नर, श्रम इंस्पेक्टर, यूनियन प्रतिनिथियों आदि की हाज़िरी में कारख़ाने के मज़दूरों के धरना स्थान अम्बेडकर पार्क में लिखित समझौता किया कि वह कारख़ाने में भविष्य में किसी भी मज़दूर के साथ दुर्व्यवहार, गाली-गालौज, मार-पीट आदि न होने की गारण्टी लेता है। उसने लिखित में ई.एस.आई., ई.पी.एफ., पहचान पत्र, छुट्टियाँ, आदि श्रम अधिकार लागू करने की माँगें भी मान लीं। इस तरह ओक्टेव क्लाथिंग के मज़दूरों ने भी ज़ोरदार हड़ताल के जरिए अहम जीत हासिल की। इस कारख़ाने के संघर्ष की एक बड़ी कमी यह थी कि हड़ताल पर गये सारे मज़दूर मीटिंग व धरना-प्रदर्शन में शामिल नहीं होते थे। मीटिंग आदि में शामिल होने वाले मज़दूरों की संख्या 80 से 150 के बीच में रही। अगर हड़ताल पर गये सभी मज़दूरों की मीटिंगों आदि में लगातार मीटिंगों, धरना-प्रदर्शनों में हाज़िरी रहती तो मालिक के ख़ि‍लाफ़ कड़ी पुलीस कार्रवाई भी करवाई जा सकती थी। राजकुमार रविन्दर कुमार टेक्सटाइल के सभी मज़दूर हड़ताल के दौरान रोज़ाना इकट्ठे होते थे। कम संख्या होने के बावजूद उनकी जीत का यह एक अहम कारण था।

दोनों ही हड़तालों में माँगें तय करने, फैसला लेने, सरकारी अधिकारियों व मैनेजमैंट से बातचीत करने के लिए जनवादी तौर तरीकों का पालन किया गया। राजकुमार रविन्दर कुमार टेक्सटाईल के मामले में तो सारे मज़दूरों की हाजिरी में मालिक और सरकारी अधिकारियों से बातचीत होती थी। सभी की सहमती से ही समझौता किया गया। ओक्टेव क्लाथिंग के मज़दूरों ने आम सहमती से 13 सदस्यी कमेटी का चुनाव किया। कमेटी हर मुद्दे पर तमाम मज़ूदरों की मीटिंग मे विस्तार से बातचीत और आम सहमती बनाने का तरीका अपनाया। कुछ मुद्दों पर बहुमत के हिसाब से फैसले लिए गए। संघर्षशील मज़दूरों ने पहली बार जनवादी तौर तरीकों से किसी यूनियन को संघर्ष का संचालन करते देखा था और वे इससे काफी प्रभावित हुए। संघर्ष का जनवादी तौर तरीका ही था जिसके कारण मज़दूर मालिकों के ख़ि‍लाफ़ लम्बी लड़ाई लड़ने को तैयार हो हुए थे।

मौजूदा समय में जब कारख़ाना इलाक़ों में मालिकों का एक किस्म का जंगल राज क़ायम है, मज़दूरों के अधिकारों को बर्बरता पूर्वक कुचला जा रहा है, जब सरकार, पुलिस-प्रशासन, श्रम विभाग आदि सब सरेआम मालिकों का पक्ष लेते हैं, जब मज़दूरों में एकता का बड़े पैमाने पर अभाव है और दलाल ट्रेड यूनियन व नेताओं का बोलबाला है, ऐसे समय में छोटे पैमाने पर ही सही मज़दूरों द्वारा एकजुटता बनाकर लड़ना और एक हद तक जीत हासिल करना महत्वपूर्ण बात है।

मज़दूर बिगुल, जून 2016


 

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