लोकतन्त्र के बारे में नेता से मज़दूर की बातचीत
नकछेदी लाल
लोकतन्त्र का हमारे लिए बस यही मतलब है
कि सुनते रहें आपके भाषण और लगाते रहें मतपत्र पर छापा।
फिर पाँच साल तक संसद में आप लगाते रहें लोट
ऊँघते रहें और छोड़ते रहें गैस
आपके कुनबे वाले करते रहें ऐश,
दिन-दूनी रात-चौगुनी बढ़ती जाये आपकी दौलत
और आपका मोटापा।
इस लोकतन्त्र में कारख़ानों में राख हो जाती है
हम मजदूरों की जवानी
और दिप-दिप दमकता है मुफ़्तख़ोरों का बुढ़ापा।
आप तो हैं उन्हीं के टुकड़ख़ोर
जो हमारी हड्डियों का चूरा तक बनाकर
बेच देते हैं बाजारों में,
फिर करते हैं दान-धरम और लगाते हैं तिलक छापा।
आप मनाते हैं न जाने कितने तरह के जश्न
जब हमारी बस्तियों में होता है सन्नाटा और सियापा।
हमारी बदमतीज़ी के लिए आप कत्तई हमें माफ़ नहीं करेंगे
पर हम यह कहे बिना रोक नहीं पा रहे हैं अपने आपको
कि ये जो “दुनिया का सबसे बड़ा लोकतन्त्र” है न महामहिम!
है ये अजब तमाशा और ग़ज़ब चूतियापा!
‘मज़दूर बिगुल’ की सदस्यता लें!
वार्षिक सदस्यता - 125 रुपये
पाँच वर्ष की सदस्यता - 625 रुपये
आजीवन सदस्यता - 3000 रुपये
आर्थिक सहयोग भी करें!
बुर्जुआ अख़बार पूँजी की विशाल राशियों के दम पर चलते हैं। मज़दूरों के अख़बार ख़ुद मज़दूरों द्वारा इकट्ठा किये गये पैसे से चलते हैं।
मज़दूरों के महान नेता लेनिन