मज़दूर वर्ग के हक में
मनोज, एक मज़दूर, हल्लोमाजरा, चण्डीगढ़़
हमारे आज के वर्ग विभाजित समाज में पूँजीपति वर्ग का बोलबाला है। राजतन्त्र उसी के हाथ में है और जो भी सरकार बनती है यह बाहरी तौर पर लोकतन्त्र का दिखावा करते हुए असल में इसी वर्ग के हितों को पूरा करती है। पूँजीपति वर्ग के लिए ही नीतियाँ बनती हैं और उन्हीं पर अमल किया जाता है। ज्यों-ज्यों पूँजीपति वर्ग और शक्तिशाली हो रहा है, त्यों-त्यों मेहनतकश वर्ग का शोषण और बढ़ता जा रहा है। उनके हकों और सहूलियतों को नजरअन्दाज किया जा रहा है। अगर मेहनतकश वर्ग को अपने हकों की रक्षा करनी है तो पूँजीपति वर्ग के ख़िलाफ़ एक लड़ाई लड़नी होगी। विभिन्न मोर्चों पर लामबन्दी कर, शासक वर्ग को यह चेताना होगा कि हम कमज़ोर नहीं हैं। जैसा कि पहले ज़िक्र किया गया है कि सरकार बड़े पूँजीपतियों के हाथ की कठपुतली है। उसके द्वारा बनायी गयी हर नीति पूँजीपतियों के हितों को पूरा करती है। और सीधे या घुमाफिराकर मेहनतकश वर्ग के हितों पर हमला करती है। यह कहना भी बिल्कुल गलत न होगा कि मेहनतकश वर्ग की दुर्दशा का असली कारण सरकार ही है। वह लगातार ऐसी नीतियाँ और नियम बना रही है जो मज़दूर को रोजी-रोटी को मुहाल कर रही हैं। मज़दूर वर्ग को सरकार की इन नीतियों का डटकर सामना और विरोध करना होगा। एक ऐसा संघर्ष करना होगा कि कोई भी सरकार कोई भी काला क़ानून लागू करने से पहले हज़ार बार सोचे। यह मोर्चा जीतना मेहनतकश वर्ग के लिए सबसे बड़ी चनौती है। यह मुश्किल है लेकिन नामुमकिन नहीं और इस कठिन चुनौती के लिए हर मेहनतकश को तैयार करना होगा, ताकि एक इन्सान की तरह सिर उठाकर जिया जा सके और अपनी अगली पीढ़ी को पूँजीपतियों की ग़ुलामी से आजाद करवाया जा सके।
बिगुल, अगस्त 2009
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