मासू इण्टरनेशनल की दास्तान

आनन्द

मासू इण्टरनेशनल प्रोडक्ट्स लिमिटेड दिल्ली के बादली इलाके में है। इसमें अमेरिका को एक्सपोर्ट करने के लिए वी.आई.पी. ऑटो पार्ट्स बनते हैं। इस कम्पनी में 41 लोग काम करते हैं जिसमें से 11 स्टाफ के लोग और 30 मज़दूर हैं। स्टाफ में  एक मैनेजर, एक प्रोडक्शन सुपरवाइज़र, माल की इण्ट्री करने और माल भेजने के लिए दो कम्प्यूटर ऑपरेटर, एक इंजीनियर, एक इलेक्ट्रीशियन, पार्टी के साथ लेन-देन करने के लिए एक कर्मचारी, छोटे-मोटे सामान लाने के लिए एक फील्ड वर्कर। इनमें से फील्ड वर्कर को छोड़कर बाकी सबकी तनख्वाह दस हज़ार से ज्यादा है। इनके अलावा तीन महिला क्लर्क हैं  एक कागज़-पत्र के काम में आफिस के स्टाफ की मदद के लिए, दूसरी दोनों मालिकों की मदद के लिए और तीसरी का काम है सारे स्टाफ को चाय-पानी पिलाना। फैक्टरी में एक प्रेशर पॉलिश डिपार्टमेण्ट है जो ठेकेदार के तहत है।

ग्राइण्डर मशीनें, ड्रिल मशीनें, खराद मशीनें, रिगिंग मशीनें, ब्राइट हाइड्रो पावर प्रेस, पावर प्रेस, धातु में चूड़ियाँ बनाने वाली थ्रेड रोलिंग मशीन, हाइड्रोलिक मशीन, इलेक्ट्रिक इंजेक्शन हीट मशीन सहित फैक्ट्री में कुल 44 मशीनें हैं जिन पर 30 मज़दूर काम करते हैं। इतना तो आप समझ ही गये होंगे कि कम से कम 70 मज़दूरों का काम 30 मज़दूरों से कराया जाता है। मज़दूरों को 10 घण्टे तक बैलों की तरह हाड़तोड़ काम करना पड़ता है। ख़ैर, बैलों की स्थिति भी हम मज़दूरों से ठीक ही होती होगी क्योंकि कोई किसान अपने बैलों से जितना काम लेता है उस हिसाब से अच्छा दाना और चारा खिलाता है और प्यार भी करता है। यहाँ कोई मज़दूर प्यार के दो बोल सुनने की उम्मीद नहीं करता, उल्टा हमारे पेट काटने के तरह-तरह के नियम बनाये गये हैं। पेट काटने के इन नियमों से ही मालिकान हर साल करोड़ों की बचत कर लेते हैं।

अगर काम पर 5 मिनट लेट आये तो आधा घण्टे का पैसा कटेगा; अगर 10 मिनट लेट हुए तो एक घण्टे का और अगर 30 मिनट लेट आये तो चार घण्टे का पैसा कटेगा। हर रोज़ सुबह 9 बजे से शाम 7:30 बजे तक काम करना होता है जिसमें से आधा घण्टा लंच की छुट्टी मिलती है। इसके बाद सिंगल रेट पर ओवरटाइम करना चाहें तो आपकी मर्ज़ी, लेकिन दस घण्टे हाड़तोड़ काम करने के बाद शरीर जवाब दे जाता है। हेल्पर की तनख्वाह 4000 रुपये और अनुभवी कारीगरों की तनख्वाह 9000 रुपये से ज्यादा नहीं है। 11 साल पुराने मज़दूर भी अब तक हेल्पर की तनख्वाह ही पाते हैं, और किसी भी हेल्पर को ई.एस.आई., फण्ड, बोनस आदि कुछ नहीं मिलता।

 

मज़दूर बिगुल, अगस्त-सितम्बर 2012

 


 

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