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स्तालिन के जन्मदिवस (18 दिसम्बर) के अवसर पर
‘‘यह बिना जाने कि हमें किस दशा में जाना चाहिए, बिना जाने की हमारी गति का लक्ष्य क्या है, हम आगे नहीं बढ़ सकते। हम तब तक निर्माण नहीं कर सकते, जब तक कि हम बात की सम्भावना और निश्चय न हो कि समाजवादी आर्थिक व्यवस्था के निर्माण का आरम्भ करके उसे पूरा कर सकेंगे। पार्टी बिना स्पष्ट सम्भावना, बिना स्पष्ट लक्ष्य के निर्माण के काम का पथ-प्रदर्शन नहीं कर सकती। हम बर्नस्टाइन के विचारों के अनुसार नहीं कह सकते कि ‘गति सब कुछ है, और लक्ष्य कुछ नहीं।’ इसके विरुद्ध क्रान्तिकारियों की तरह हमें अपनी प्रगति, अपने व्यावहारिक काम को सर्वहारा-निर्माण के मौलिक वर्ग-लक्ष्य के अधीन करना होगा। नहीं तो, निस्सन्देह और अवश्य ही हम अवसरवाद के दल-दल में जा गिरेगें।’’
स्तालिन, 1926, (पार्टी की पन्द्रहवीं कांफ्रेंस में भाषण से)
जनवादी गणतन्त्र
“…जनवादी गणतन्त्र (नागरिकों के बीच) सम्पत्ति के भेदों का औपचारिक रूप से कोई लिहाज़ नहीं करता। उसमें सम्पदा अपनी शक्ति का परोक्षतः, परन्तु और भी निश्चित रूप से, उपयोग करती है। एक ओर, इस रूप में कि वह अधिकारियों को सीधे भ्रष्ट करती है (जिसका क्लासिकीय उदाहरण अमेरिका पेश करता है), दूसरी ओर, सरकार तथा स्टॉक एक्सचेंज में गठबन्धन के रूप में।”
एंगेल्स (परिवार, निजी सम्पत्ति और राज्य की उत्पत्ति)
“जनवादी गणतन्त्र “तर्क की दृष्टि से” पूँजीवाद का विरोधी है, क्योंकि “औपचारिक रूप से” वह अमीर और ग़रीब को बराबरी का दर्जा देता है। अर्थव्यवस्था तथा राजनीतिक ऊपरी ढाँचे के बीच यह एक अन्तरविरोध है। साम्राज्यवाद तथा गणतन्त्र के बीच भी यही अन्तरविरोध है, जो इस वजह से और भी गहरा और तीखा हो गया है कि स्वतन्त्र प्रतियोगिता से एकाधिकार में रूपान्तरण सभी राजनीतिक स्वातन्त्रयों की प्राप्ति को और भी “दुष्कर” बना देता है।
तब फिर जनवाद के साथ पूँजीवाद की संगति कैसे बैठायी जाती है? पूँजी की सर्वशक्तिमत्ता को परोक्ष रूप से क्रियान्वित करके! इसके दो आर्थिक साधन हैं: 1) सीधे-सीधे रिश्वत देना; 2) सरकार तथा स्टॉक एक्सचेंज का गठबंधन। (यह बात हमारी प्रस्थापनाओं में इस तरह कही गयी हैः पूँजीवादी व्यवस्था के अन्तर्गत वित्तीय पूँजी “किसी भी सरकार को और किसी भी अधिकारी को आज़ादी के साथ रिश्वत दे सकती है और ख़रीद सकती है”।) अगर माल-उत्पादन का, बुर्जुआ वर्ग का, पैसे की शक्ति का बोलबाला है, तो रिश्वतख़ोरी (सीधे-सीधे या स्टॉक एक्सचेंज की मार्प़फ़त) किसी भी तरह की सरकार के अन्तर्गत, किसी भी तरह के जनवाद के अन्तर्गत “सम्भव” है।
लेनिन (मार्क्सवाद का विद्रूप और साम्राज्यवादी अर्थशास्त्र)
मज़दूर बिगुल, नवम्बर-दिसम्बर 2012
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मज़दूरों के महान नेता लेनिन