भाजपा की वाशिंग मशीन : भ्रष्टाचारी को “सदाचारी” बनाने का तन्त्र!
अविनाश
भाजपा ने सत्ता की मशीनरी जैसे ईडी, सीबीआई, एसीबी, आईटी, न्यायपालिका, चुनाव आयोग व अन्य को मिलाकर एक ऐसी नायाब वाशिंग मशीन तैयार की है, जिससे इस मशीन में किसी भ्रष्ट नेता पर चाहे कितने ही पुराने हजारों करोड़ रुपये के घोटाले क्यों न हो, अगर वह भाजपा के साथ गठबन्धन में या फिर भाजपा में शामिल हो जाता है, तो उसके सारे भ्रष्टाचार ख़त्म हो जाते है और यकायक वह सदाचार की मूर्ति बन जाता है। इस मशीन में एक तरफ़ से भ्रष्ट नेता को डाला जाये तो दूसरी तरफ़ से वह बिलकुल साफ़-सुथरा सदाचारी बनकर बाहर निकलेगा। आप सोच रहे होंगे यह कोई मज़ाक है। नहीं! बिलकुल भी नहीं! यह आज की हक़ीक़त है!
सच्चाई यह है कि आज यह पूरा तन्त्र राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ व उसके चुनावी मोर्चे भाजपा द्वारा समूची राज्यसत्ता की मशीनरी में अन्दरूनी टेकओवर (कब्ज़े) की प्रक्रिया को लगातार दिखला रहा है। इसका हालिया उदहारण हमें अजित पवार के रूप में भी देखने को मिल जाता है। इन महोदय पर 70,000 करोड़ के सिंचाई घोटाले का आरोप लगा था। साथ ही ईडी ने सतारा के जरान्देश्वर सहकारी चीनी मिल की 2010 में कथित धोखाधड़ी से हुई बिक्री से जुड़े मनी लॉण्डरिंग (पैसों की हेरफेर) मामले में भी अजित पवार की जाँच की जा रही थी। इनके भ्रष्टाचार पर नरेन्द्र मोदी भी संसद में और महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव के प्रचार में बड़ी-बड़ी बातें बघारा करते थे। मगर जैसे ही अजित पवार भाजपा के साथ गठबन्धन में आये है, तब से वह मोदी जी के चहेते बन गये हैं, परम “सदाचारी” बन गये हैं और उनके सितारे बुलन्दी पर हैं। एक के बाद एक भ्रष्टाचार के सारे आरोपों से उन्हें मुक्त किया जा रहा है। अब तो भाजपा के देवेंद्र फडणवीस के साथ में शपथ लेने के बाद एण्टी करप्शन ब्यूरो (एसीबी) ने अजित पवार को क्लीन चिट भी दे दी है।
अजित पवार पर घोटालों के मामले
अजित पवार, 1999 और 2014 के बीच कांग्रेस-राकांपा की विभिन्न गठबन्धन सरकारों में अलग-अलग मौकों पर सिंचाई मन्त्री थे। आर्थिक सर्वेक्षण में यह सामने आया था कि एक दशक में सिंचाई की अलग-अलग परियोजनाओं पर 70 हजार करोड़ रुपए ख़र्च होने के बावजूद राज्य में सिंचाई क्षेत्र का विस्तार महज 0.1 प्रतिशत हुआ। परियोजनाओं के ठेका के नियमों को ताक पर रखकर कुछ चुनिन्दा लोगों को ही दिए गये थे। सिंचाई विभाग के एक पूर्व इंजीनियर ने तो चिट्ठी लिख कर ये भी आरोप लगाए थे कि नेताओं के दबाव में कई ऐसे बाँध बनाये गये, जिनकी ज़रूरत ही नहीं थी। इंजीनियर ने यह भी लिखा था कि कई बाँध कमज़ोर बनाये गये। 2014 में महाराष्ट्र में सत्ता में आने से पहले चुनाव प्रचार के समय भाजपा ने सिंचाई घोटाले को ज़बरदस्त मुद्दा बनाया था। देवेन्द्र फडणवीस टीवी पर पाँच साल पहले घोटाले को लेकर चीख-चीख कर कहा करते थे कि अजित पवार को जेल में “चक्की पीसिंग एण्ड पीसिंग” करायेंगे। यही राग ख़ुद प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी भी अलापा करते थे। लेकिन आज देवेन्द्र फडणवीस अजित पवार के साथ गठबन्धन में सरकार चला रहे हैं। यानी, भाजपा के विरोध में तो भ्रष्टाचारी, भाजपा के साथ में तो सदाचारी! मोदी-शाह और समूचे संघ परिवार का “चाल-चेहरा-चरित्र” शुरू से ऐसा ही रहा है।
ज़रा ग़ौर से समझिये कि भाजपा की वाशिंग मशीन के कमाल से कैसे अजित पवार के उपमुख्यमन्त्री बनने के दो दिन बाद ही 70 हजार करोड़ रुपये के सिंचाई घोटाले से जुड़े नौ मामलों की फाइल बन्द की दी गयी है। यह घोटाला विदर्भ क्षेत्र में हुआ था और महाराष्ट्र का एण्टी करप्शन ब्यूरो (एसीबी) इसकी जाँच कर रहा था। एण्टी करप्शन ब्यूरो (एसीबी) के डीजी परमबीर सिंह ने कहा कि जो केस बन्द किए गये हैं, उनमें से एक में भी अजित पवार का नाम नहीं था। ये सभी रुटीन मामले थे और इनमें कोई भी अनियमितता नहीं पायी गयी। इसके अलावा सबूतों के अभाव में जरंदेश्वर चीनी मिल से सम्बन्धित तमाम भ्रष्टाचार के आरोप भी खारिज़ कर दिए गये है और आयकर विभाग (आई-टी) ने महाराष्ट्र के उपमुख्यमन्त्री अजीत पवार और उनके परिवार से 2021 में ज़ब्त की गई 1,000 करोड़ रुपये से अधिक की सम्पत्तियाँ वापस कर दी हैं।
अजित पवार के अलावा महाराष्ट्र में भाजपा-शिवसेना सरकार में शामिल होने के लिए पाला बदलने वाले और कैबिनेट मन्त्री के रूप में शपथ लेने वाले नौ राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा- अजित गुट) विधायकों में से चार विभिन्न मामलों में केन्द्रीय जाँच एजेंसी प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) या एण्टी करप्शन ब्यूरो (एसीबी) की जाँच के दायरे में हैं। अजित पवार, छगन भुजबल और हसन मुश्रीफ मनी लॉण्डरिंग से जुड़े मामलों की जाँच के दायरे में हैं। मगर भाजपा से जुड़ने के बाद इनके मामलों पर या तो कोई कार्रवाई ही नहीं हो रही या फिर इन्हें रफ़ा-दफ़ा कर दिया गया है।
देश भर में भाजपा की वाशिंग मशीन का कमाल देखने को मिल रहा है। देश में कई प्रमुख नेता हैं, जिनपर भाजपा ने पहले भ्रष्टाचार और ग़ैर-कानूनी कार्य करने के आरोप लगाये थे। मगर अब उन्हें ‘पाक- साफ़’ क़रार दे दिया गया है। इसका कारण बिलकुल साफ़ है : या तो वे भाजपा में शामिल हो गये या वे एनडीए गठबन्धन में शामिल हो गये। इनमें से कुछ प्रमुख नेता यह है:
- हिमंत बिस्वा सरमा: गुवाहाटी में जलापूर्ति घोटाले में आरोपी। भाजपा ने पहले उनके ख़िलाफ़ एक श्वेत पत्र निकाला था।
- नारायण राणे: उनके ख़िलाफ़ सीबीआई/ईडी द्वारा कई मामले दर्ज़ हैं। भाजपा नेता किरीट सोमैया ने उनके ख़िलाफ़ भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे।
- हसन मुश्रीफः ईडी हसन मुश्रीफ से जुड़े मनी लॉण्डरिंग मामले और कोल्हापुर स्थित चीनी मिल, सर सेनापति संताजी घोरपड़े शुगर फैक्ट्री लिमिटेड में कथित अनियमितताओं की जाँच कर रही है। फैक्ट्री मुश्रीफ के परिवार द्वारा संचालित है।
- छगन भुजबल: 2016 में, ईडी ने महाराष्ट्र सदन घोटाले से जुड़े मनी लॉण्डरिंग मामले में छगन भुजबल को गिरफ्तार किया था। उन्हें 2018 में बॉम्बे हाईकोर्ट ने जमानत दे दी थी। महाराष्ट्र के मन्त्री छगन भुजबल, उनके रिश्तेदारों और फर्मों के ख़िलाफ़ ‘बेनामी सम्पत्ति’ की कार्रवाई भी बन्द हो गई है।
- अशोक चव्हाणः भाजपा ने उन पर आदर्श हाउसिंग सोसाइटी घोटाले का आरोप लगाया, और उनके भाजपा में शामिल होने के बाद से इस मामले में कुछ भी आगे नहीं बढ़ा।
जहाँ एक तरफ़ मुकुल रॉय, सुवेंदु अधिकारी, मिथुन चक्रवर्ती, सोवन चटर्जी, वाईएस चौधरी, सीएम रमेश, प्रफुल्ल पटेल व अन्य सारे उदाहरण आपके सामने हैं, जो भाजपा के समर्थक बनते या उसमें शामिल होते ही परम भ्रष्टाचारी से परम “सदाचारी” बन गये, वहीं दूसरी तरफ़ मोदी सरकार के कार्यकाल में ही हुए राफेल घोटाला, पीएम केयर घोटाला, अडानी घोटाला, सेण्ट्रल विस्टा प्रोजेक्ट घोटाला, इलेक्टोरल बॉन्ड घोटाला जैसे घोटाले भी है, जिनकी जाँच की फाइल ही नहीं बन रही हैं। ऐसे में ‘बहुत सह लिया भ्रष्टाचार अबकी बार मोदी सरकार’ और ‘न खाऊँगा न खाने दूँगा’ जैसे मोदी के जुमलों की हक़ीक़त व संघ परिवार व भाजपा द्वारा सरकारी एजेंसियों ईडी, सीबीआई, एसीबी, आईटी, न्यायपालिका, चुनाव आयोग व अन्य के अन्दर घुसपैठ की तस्वीर अच्छी तरह से सबके सामने आ रही है। भाजपा सरकार अपने आपको चाहे जितना भी “संस्कारी”, “धर्मध्वजाधारी”, “राष्ट्रवादी” का तमगा लगा लें, मगर इनके “चाल-चेहरा-चरित्र” की सच्चाई सबके सामने आने लगी है। भाजपा सरकार ‘देशभक्ति’, हिन्दू-मुसलमान साम्प्रदायिकता, मन्दिर-मस्जिद, ‘लव जिहाद’, ‘गोरक्षा’, आदि के फ़र्जी शोर में इन्हें दबाने की कोशिश ज़रूर कर रही है, मगर मोदी का 56 इंच का सीना सिकुड़ता जा रहा है।
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