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(मज़दूर बिगुल के जुलाई 2013 अंक में प्रकाशित लेख। अंक की पीडीएफ फाइल डाउनलोड करने के लिए यहाँ क्लिक करें और अलग-अलग लेखों-खबरों आदि को यूनिकोड फॉर्मेट में पढ़ने के लिए उनके शीर्षक पर क्लिक करें)
सम्पादकीय
उत्तराखण्डः दैवी आपदा या प्रकृति का कोप नहीं यह पूँजीवाद की लायी हुई तबाही है!
फासीवाद
यूनान में फ़ासीवाद का उभार / गौतम
संघर्षरत जनता
दिल्ली में बादाम मज़दूरों की हड़ताल की शानदार जीत!
आन्दोलन : समीक्षा-समाहार
मारुति सुजुकी मज़दूर आन्दोलन-एक सम्भावनासम्पन्न आन्दोलन का बिखराव की ओर जाना… / शिशिर
मज़दूर आंदोलन की समस्याएं
माकपा और सीटू – मज़दूर आन्दोलन के सबसे बड़े गद्दार
महान शिक्षकों की कलम से
विरासत
समाज
अपने बच्चों को बचाओ व्यवस्था के आदमख़ोर भेड़िये से! / लता
बुर्जुआ जनवाद – चुनावी नौटंकी
चुनावी मौसम में याद आया कि मज़दूर भी इंसान हैं / अजय
स्वास्थ्य
हर साल लाखों माँओं और नवजात शिशुओं को मार डालती है यह व्यवस्था / कविता
लेखमाला
बोलते आँकड़े, चीख़ती सच्चाइयाँ
इतिहास
भारतीय मज़दूर वर्ग की पहली राजनीतिक हड़ताल (23-28 जुलाई, 1908) / अरविन्द
महान जननायक
मज़दूर बस्तियों से
एक मज़दूर की कहानी जो बेहतर ज़िन्दगी के सपने देखता था! / राजविन्दर
मज़दूरों की कलम से
“अपना काम” की ग़लत सोच में पिसते मज़दूर / राहुल, करावलनगर, दिल्ली
मज़दूरों को अपनी समझ और चेतना बढ़ानी पड़ेगी, वरना ऐसे ही ही धोखा खाते रहेंगे / विशाल, लुधियाना
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बुर्जुआ अख़बार पूँजी की विशाल राशियों के दम पर चलते हैं। मज़दूरों के अख़बार ख़ुद मज़दूरों द्वारा इकट्ठा किये गये पैसे से चलते हैं।
मज़दूरों के महान नेता लेनिन