सरकारी कर्मचारियों को छात्रों-युवाओं-मेहनतकशों से अपनी लड़ाई को जोड़ना होगा
कृष्ण कुमार, गाँव शिमला, कैथल
मैं हरियाणा रोडवेज में कर्मचारी हूँ। मैं पिछले कुछ महीनों से मज़दूर बिगुल का नियमित पाठक हूँ। मज़दूर बिगुल अख़बार लगातार देश में जारी उदारीकरण-निजीकरण की जनविरोधी नीतियों को उजागर करता रहा है और अभी हाल में केन्द्र में आयी मोदी सरकार भी इन्हीं जनविरोधियों नीतियों को ज़ोर-शोर से लागू कर रही है, इसका असर भी ज़मीनी स्तर पर नज़र आ रहा है। हरियाणा में भी भाजपा की खट्टर सरकार नये रोड ट्रांसपोर्ट एण्ड सेफ़्टी बिल के द्वारा रोडवेज के निजीकरण की तैयारी कर चुकी है। नयी परिवहन नीति के तहत अब राज्य में सरकारी बसें ख़रीदने के स्थान पर प्राइवेट कम्पनियों से बस एवं चालक किलोमीटर स्कीम पर अनुबन्ध पर लिये जा रहे हैं। जिसके बाद सरकार को नयी सरकारी बसें ख़रीदाने व पक्के कर्मचारी की भर्ती की ज़रूरत नहीं रहेगी। यानी धीरे-धीरे रोडवेज पूरे तरह प्राइवेट बस माफ़िया या टाटा जैसी बड़ी कम्पनियाँ के हाथ में आ जायेगा। इसका सबसे ज़्यादा नुक़सान आम मेहनतकश जनता का होगा क्योंकि निजी बसों में रियायती और कुछ अवसर पर मिलने वाली निशुल्क यात्रा नहीं मिलेगी। साथ ही रियायती पास सुविधा बन्द होने से विद्यार्थियों (विशेषकर लड़कियों) की शिक्षा पर बुरा प्रभाव पड़ेगा। पक्के रोज़गार की उम्मीद लगाये नौजवान भी 7000-8000 हज़ार रुपये की सस्ती मज़दूरी पर ठेका मज़दूर की तरह खटने को मज़बूर होंगे।
असल में कांग्रेस से लेकर भाजपा सिर्फ़ पूँजीपतियों को मुनाफ़ा कमाने की नीतियाँ बनाती हैं। मौजूदा समय सरकार के पास नयी ख़रीदी 950 बसें खड़ी-खड़ी बर्बाद हो रही हैं, लेकिन सरकार कर्मचारियों की कमी दिखाकर अपना पल्ला झाड़ रही है। वहीं रोडवेज कर्मचारी भी निजीकरण के ख़िलाफ़ सड़कों पर उतरकर संघर्ष के लिए तैयारी कर रहा है, लेकिन हम कर्मचारी भी जानते हैं कि ये लड़ाई सिर्फ़ कर्मचारियों की नहीं है बल्कि हर छात्र-युवा से लेकर मेहनतकश जनता की है। इसलिए हम उनकी भागीदारी के लिए उनके बीच जाना होगा। तभी हम सही मायने में सरकार की जनविरोधी नीतियों का प्रतिरोध कर सकते हैं।
मज़दूर बिगुल, जनवरी 2016
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