बोल मजूरे हल्ला बोल
कान्ति मोहन
हल्ला बोल भई हल्ला बोल भई हल्ला बोल भई हल्ला बोल
बोल मजूरे हल्ला बोल, बोल मजूरे हल्ला बोल
काँप उठी सरमायेदारी खुलके रहेगी इसकी पोल
बोल मजूरे हल्ला बोल…
ख़ून को अपने बना पसीना तूने बाग लगाया है
कुएँ खोदे नहर निकाली ऊँचा महल उठाया है
चट्टानों में फूल खिलाये शहर बसाये जंगल में
अपने चौड़े कन्धों पर दुनिया को यहाँ तक लाया है
बाँकी फ़ौज कमेरों की है, तू है नहीं भेड़ों की गोल
बोल मजूरे हल्ला बोल…
गोदामों में माल भरा है नोट भरे हैं बोरों में
बेहोशों को होश नहीं है नशा चढ़ा है ज़ोरों में
इसका दामन उसने फाड़ा उसका गिरेबाँ इसके हाथ
कफ़नखसोटों का झगड़ा है होड़ मची है चोरों में
ऐसे में आवाज़ उठा दे, ला मेरी मेहनत का मोल
बोल मजूरे हल्ला बोल…
सिहर उठेगी लहर नदी की सुलग उठेगी फुलवारी
काँप उठेगी पत्ती-पत्ती चटखेगी डारी-डारी
सरमायेदारों का पल में नशा हिरन हो जायेगा
आग लगेगी नन्दन वन में दहक उठेगी हर क्यारी
सुन-सुन कर तेरे नारों को धरती होगी डाँवाडोल
बोल मजूरे हल्ला बोल…
हल्ला बोल भई हल्ला बोल भई हल्ला बोल भई हल्ला बोल
बोल मजूरे हल्ला बोल बोल मजूरे हल्ला बोल।
‘मज़दूर बिगुल’ की सदस्यता लें!
वार्षिक सदस्यता - 125 रुपये
पाँच वर्ष की सदस्यता - 625 रुपये
आजीवन सदस्यता - 3000 रुपये
आर्थिक सहयोग भी करें!
बुर्जुआ अख़बार पूँजी की विशाल राशियों के दम पर चलते हैं। मज़दूरों के अख़बार ख़ुद मज़दूरों द्वारा इकट्ठा किये गये पैसे से चलते हैं।
मज़दूरों के महान नेता लेनिन