मज़दूरों की सबसे बड़ी दुश्मन फ़ासीवादी मोदी सरकार के भ्रष्ट, अपराधी, झूठे और बेशर्म चेहरे से उतरता नक़ाब!
व्यापम घोटाला, ललित मोदी घोटाला, पंकजा मुण्डे घोटाला, तावड़े घोटाला, दर्जनों गवाहों की हत्या, व्याभिचारी बाबाओं को संरक्षण, श्रम क़ानूनों की हत्या, साम्राज्यवादी-ज़ियनवादी इज़रायली हत्यारों के साथ गलबँहिया!
“अच्छे दिनों” की असलियत पहचानने में क्या अब भी कोई कसर बाक़ी है?
नैतिकता, शुद्धता, प्राचीन भारतीय सभ्यता, सदाचार, हिन्दू संस्कृति वगैरह की बात करने वाले साम्प्रदायिक फासीवादी अपने सरगना नरेन्द्र मोदी की अगुवाई में 16 मई 2014 को भारी बहुमत से जीतकर सत्ता में पहुँचे थे! लेकिन साल भर बीतते-बीतते इन संघी फासीवादियों ने भ्रष्टाचार, व्याभिचार, अपराध, घूसखोरी, बेशर्मी और गन्दगी के सारे रिकॉर्ड ध्वस्त कर दिये! चुनावों से पहले देश की जनता को “अच्छे दिनों”, हर खाते में पन्द्रह लाख रुपये डालने, “न खाने और न खाने देने” का वायदा करने वाले ये संघी धर्मध्वजाधारी साल भर सत्ता में रहने में ही भ्रष्टाचार के गन्दे कीचड़ में इस कदर सन गये हैं कि जनता अचम्भित है! ऊपर से सीनाज़ोरी का आलम यह है कि सीबीआई के अनुसार एक समय फिरौती वसूलने वालों का गिरोह चलाने वाले और दंगे भड़काने में माहिर भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने हर चुनावी वायदे पर जनता को ठेंगा दिखा दिया। जब जनता ने हर खाते में पन्द्रह लाख रुपये डालने और विदेशों से काला धन वापस लाने के वायदे बारे में पूछना शुरू किया तो अमित शाह ने कहा वो तो बस चुनावी जुमला था, तुम लोगों ने उस बात को गम्भीरता से क्यों ले लिया! फिर जनता ने “अच्छे दिनों” के वायदे के बारे में पूछा तो अमित शाह ने बोला कि उसमें तो अभी 25 साल लगेंगे और भाजपा को पाँच बार और जिताओ तब “अच्छे दिन” आयेंगे! यही आलम दूसरे भाजपा नेताओं का भी है। जब हज़ारों करोड़ रुपये के व्यापम घोटाले के बारे में एक भाजपा नेता से पूछा गया तो उसने बोला कि ये तो छोटी-सी घटना है! फिर जब लोगों ने पूछा कि व्यापम घोटाले के लगभग 50 गवाह रहस्यमय तरीके से मारे क्यों गये तो मध्य प्रदेश के सठिया चुके भाजपा नेता बाबूलाल गौर ने कहा कि यह तो प्रकृति का नियम है कि जो आता है, उसे जाना होता है! यह वही बाबूलाल गौर हैं जिन्होंने एक बार एक रूसी महिला को धोती उतारना सिखाने की पेशकश की थी! सत्ता के नशे में चूर संघी हाफ पैंटिया फासीवादी गिरोह उस बुनियादी शर्म-ओ-हया को भूल गया है, जिसका पालन पूँजीवादी राजनीतिज्ञ भी आम तौर पर किया करते हैं; यानी भ्रष्टाचार करते हैं, तो थोड़ी पर्देदारी करते हैं! मगर बहुत दिनों से सत्ता में आने का इन्तज़ार कर रहे भाजपाई जब सत्ता में आये तो उनके सब्र का प्याला एकदम से छलक गया और अब कमाई करने और अपनी सात पुश्तों की ज़िन्दगी सुरक्षित कर देने की अन्धी हवस में ये एकदम आपा खो बैठे हैं!
नरेन्द्र मोदी, वसुन्धरा राजे, सुषमा स्वराज जैसे शीर्ष भाजपा नेताओं का नाम तमाम किस्म के आर्थिक अपराधों के आरोप में देश से भागे हुए एक भगोड़े दलाल ललित मोदी की तरह-तरह से सेवा करने और तलवे चाटने में सामने आया है। राजस्थान की मुख्यमन्त्री वसुन्धरा राजे ने तो ब्रिटिश सरकार को यहाँ तक लिखकर दे दिया कि ललित मोदी के लिए वह हर प्रकार की सहायता कर सकती हैं, बस सरकार को इसका पता नहीं चलना चाहिए! सुषमा स्वराज ने लंदन में बैठे ललित मोदी को वीज़ा दिलाने में मदद की और इसके पीछे तर्क दिया कि उसकी पत्नी को कैंसर था और इसलिए इलाज के लिए “मानवीय आधार” पर जाने में उन्होंने मोदी की मदद की! जिस देश में हज़ारों बच्चे रोज़ भूख से मरते हों, करोड़ों बेरोज़गार हों, करोड़ों बेघर हों, और हज़ारों बेगुनाह जेलों में सड़ रहे हों – उनमें से किसी के लिए इनकी “मानवीय भावना” नहीं जागती, मगर एक अरबपति भगोड़े अपराधी ललित मोदी की मदद के लिए विदेश मंत्री को मानवीय आधार याद आ जाता है! इस झूठ के बहाने यह दलाल ललित मोदी विदेशों घूम-घूमकर गुलछर्रे उड़ाता है और इस ऐयाशी की तस्वीरें भी इण्टरनेट पर डालता है! इस कदर नंगे हो जाने के बाद शायद शर्म चली ही जाती है। इसलिए भाजपा के तमाम नेता-मन्त्री अब कोई लाज भी नहीं कर रहे हैं और निपट नंगे सड़क पर भाग चले हैं।
क्या आपको याद है कि भ्रष्टाचारियों और अपराधियों के इस गिरोह में कौन लोग हैं? ये वही फासीवादी हैं जिन्होंने सत्ता में आते ही हम मज़दूरों के बचे-खुचे हक़ों पर पुरज़ोर हमला किया था; ये अम्बानी-अदानी, टाटा-बिड़ला की सम्पत्ति की चौकीदारी करने वाले वही दलाल हैं जो हमारे ट्रेड यूनियन बनाने का हक़ छीनने, काम करने के दौरान हमारी सुरक्षा के क़ानूनों को ख़त्म करने, हमारी न्यूनतम मज़दूरी मारने की साज़िश कर रहे हैं; ये वही साम्प्रदायिक ताक़तें हैं जो हम मज़दूर भाइयों-बहनों को बार-बार धर्म और जाति के नाम पर लड़वाते-मरवाते हैं! इस समय भी सत्ता में बैठी ये फासीवादी ताक़तें मज़दूर वर्ग के ख़िलाफ़ अपनी साज़िशों को पूरे ज़ोर-शोर से चला रही हैं। प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने अभी कुछ ही दिनों पहले बयान दिया है कि देश को कुशल और सस्ते श्रम का भण्डार बनाया जायेगा। इसका अर्थ क्या है? इसका अर्थ यह है कि आने वाले समय में देश के करोड़ों-करोड़ युवा मज़दूरों को देशी-विदेशी पूँजी की लूट और शोषण के लिए पेश किया जायेगा। इन पूँजीपतियों को लूटने में कोई असुविधा न हो और वे हमें गुलाम बनाकर काम करा सकें इसके लिए हमारे सारे क़ानूनी अधिकारों को ख़त्म किया जा रहा है। नरेन्द्र मोदी ने ऐलान किया है कि देश में आई.आई.टी. से ज़्यादा आई.टी.आई. की ज़रूरत है ताकि हमारा देश कुशल मज़दूर पैदा कर सके! लेकिन क्या नरेन्द्र मोदी, अमित शाह, सुषमा स्वराज, वसुन्धरा राजे, शिवराज सिंह चौहान जैसे भ्रष्टाचारी फासीवादी नेता इन तकनीकी प्रशिक्षण संस्थानों में अपने बेटे-बेटियों को भेजेंगे? नहीं! उनकी औलादें तो अमेरिका, ब्रिटेन और जर्मनी में पढ़ेंगी, आई.आई.टी.-मेडिकल कॉलेजों में पढ़ेंगी या अपने बाप का अरबों-खरबों का कारोबार सम्भालेंगी! मुँह पर ताला लगाकर कुशल मज़दूर बनने की शिक्षा तो हमारे बेटे-बेटियों को दी जायेगी, जो कि 5-6 हज़ार रुपये में 12 घण्टे खटने को तैयार हों! पहले भी सारी पूँजीवादी सरकारें ग़रीबों के लिए अलग और अमीरों के लिए अलग शिक्षा व्यवस्था का इन्तज़ाम करती थीं। मगर इसको छिपाने की कोशिश भी करती थीं। नरेन्द्र मोदी सरकार ने यह काम भी बेशर्मी के साथ करना शुरू किया है।
ठीक इसी प्रकार, देश के ग़रीब मज़दूरों को कुछ भीख और रहम देने के लिए नरेन्द्र मोदी देश के खाये-पिये-अघाये और ऐयाशी में सिर से पाँव तक डूबे हुए उच्च मध्यवर्ग से अपील कर रहे हैं! देश का प्रधानमन्त्री बोल रहा है कि इन ग़रीब, नंगे-बूचों पर रहम करो! अपनी रसोई गैस की सब्सिडी छोड़ दो और उससे बचा छुट्टा इन ग़रीबों पर फेंक दो! यही नरेन्द्र मोदी जैसे फासीवादियों की पूरी सोच होती है! उनके अनुसार, अमीरज़ादे देश-दुनिया की दौलत पैदा करते हैं और उन्हें कुछ भीख ग़रीब मज़दूरों पर भी फेंक देनी चाहिए! वह भी इसलिए कि ये ग़रीब मज़दूर जो कि देश की आबादी का 80 फीसदी है कहीं बग़ावत न कर दें! लेकिन देश का मज़दूर वर्ग भिखारी नहीं है। बल्कि इस देश के सारे अमीरज़ादे और धन्नासेठ अपने एक-एक निवाले के लिए मज़दूर वर्ग के कज़र्दार हैं। सुई से लेकर जहाज़ बनाने वाले मज़दूर वर्ग को अमीरज़ादों की ख़ैरात नहीं चाहिए; हमें पूरी दुनिया चाहिए! जैसा कि अंग्रेज़ी मज़दूरों में लोकप्रिय एक कहावत है, “हमें एक केक का टुकड़ा नहीं पूरी बेकरी चाहिए!”
16 मई को सत्ता में आने के ठीक पहले अपने ख़र्चीले चुनाव प्रचार के दौरान नरेन्द्र मोदी की अगुवाई में भाजपा का नारा था, “बहुत हुई महँगाई की मार–अबकी बार मोदी सरकार!” उस नारे का क्या हुआ? दुनिया भर में तेल की कीमतों में आयी भारी गिरावट के बावजूद पहले तो मोदी सरकार ने उस अनुपात में तेल की कीमतों में कमी नहीं की; और जो थोड़ी-बहुत कमी की थी अब उससे कहीं ज़्यादा बढ़ोत्तरी कर दी है। नतीजतन, हर बुनियादी ज़रूरत की चीज़ महँगी हो गयी है। आम ग़रीब आदमी के लिए दो वक़्त का खाना जुटाना भी मुश्किल हो रहा है। मोदी सरकार का नारा था कि देश को भ्रष्टाचार से मुक्त कर दिया जायेगा! लेकिन मोदी सरकार ने सत्ता में आते ही भ्रष्टाचार के अब तक के कीर्तिमानों को ध्वस्त कर दिया! ऐसे तमाम टूटे हुए वायदों की लम्बी सूची तैयार की जा सकती है जो अब चुटकुलों में तब्दील हो चुके हैं और लोग उस पर हँस रहे हैं। नरेन्द्र मोदी के मुँह से “मित्रों…” निकलते ही बच्चों की भी हंसी निकल जाती है। लेकिन यह भी सोचने की बात है कि ऐसे धोखेबाज़, भ्रष्ट मदारियों को देश की जनता ने किस प्रकार चुन लिया?
फासीवादी ताक़तें हमेशा अपने नात्सी पिता गोयबल्स के तरीके को अपनाती हैं। हिटलर के प्रचार मन्त्री गोयबल्स ने एक बार कहा था कि एक झूठ को सौ बार दुहराने से वह सच बन जाता है। ख़ास तौर पर जब जनता के ज़िन्दगी के हालात बद से बदतर हो गये हों, वह महँगाई, बेरोज़गारी, ग़रीबी, कुपोषण और बेघरी से बेहाल हो और उसके सामने कोई क्रान्तिकारी विकल्प मौजूद न हो, तो वह इस प्रकार के फासीवादी झूठों को सच मान भी बैठती है। जब आम मेहनतकश आबादी इस प्रकार की थकान का शिकार हो तो वह ऐसे मदारियों पर अक्सर भरोसा कर बैठती है जो कि नैतिकता, सदाचार, मज़बूत नेतृत्व का ढोल बजाते हुए आते हैं और सभी समस्याओं का किसी जादू की छड़ी से समाधान कर देने का वायदा करते हैं! फासीवादी मदारियों की यह ख़ासियत होती है और हर प्रकार के दक्षिणपंथी लोकरंजकतावादी की यही ख़ासियत होती है। ठीक वैसे ही जैसे दिल्ली के एक बौने दक्षिणपंथी मदारी अरविन्द केजरीवाल की भी यही विशेषता थी। सभी पुरानी चुनावी पार्टियों से ऊबी हुई जनता ने एक नयी पार्टी ‘आम आदमी पार्टी’ को आख़िरी चुनावों में जमकर वोट दिया। कारण यह था कि पतित लोहियावादी समाजवादी राजनीति और साम्राज्यवादियों के टुकड़ों पर पलने वाली एन.जी.ओ. राजनीति के नाजायज़ रिश्तों से पैदा हुई यह ‘आम आदमी पार्टी’ और इसका बौना हिटलर अरविन्द केजरीवाल भ्रष्टाचार-विरोधी धर्मयुद्ध की फटी हुई पताका लहराते हुए और “सदाचार-सदाचार” का ढोल बजाते हुए राजनीतिक दृश्यपटल पर अवतरित हुए थे! इन मदारियों का यह दावा था कि सारी समस्या भ्रष्टाचार ही है और अगर भ्रष्टाचार ख़त्म हो गया तो जादुई तरीके से सब ठीक हो जायेगा! मज़दूरों के शोषण के बारे में कभी आम आदमी पार्टी या इसके किसी भी चंगू-मंगू ने एक शब्द नहीं बोला! मगर महँगाई, ग़रीबी, बेरोज़गारी, भ्रष्टाचार, और कांग्रेस, भाजपा आदि से ऊबी हुई और तंग आ चुकी जनता राजनीतिक तौर पर इस कदर थकी हुई और मोहभंग का शिकार थी कि उसे लगा कि एक बार इसे ही आजमा लिया जाय। छोटे दुकानदारों की शैली में ‘जी-जी’ करके बात करने वाले अरविन्द केजरीवाल के साथ दिल्ली के सभी टुच्चे व्यापारियों को तुरन्त ही तदनुभूति, सहानुभूति, सुखानुभूति का अनुभव हुआ और उसे लगा कि उसके सिर पर जो बरबादी की तलवार लटकी है उससे खुद को गर्व से ‘बनिया व्यापारी’ और ‘धन्धे वाला’ बताने वाला यह शख़्स उन्हें बचा सकता है! (कोई ताज्जुब की बात नहीं कि नरेन्द्र मोदी ने भी बड़े गर्व से कहा था कि वह गुजराती है और धन्धा उसके खून में बहता है! केवल इतने से ही मज़दूर वर्ग को मोदी और केजरीवाल जैसों की असलियत समझ लेनी चाहिए!) ग़रीब मेहनतकश आबादी के एक हिस्से को लगा कि सबसे कम बुरी तो अभी यही पार्टी दिख रही है, इसलिए उसे एक बार आजमा लिया जाये! लेकिन सत्ता में आने के कुछ महीनों में ही मज़दूरों पर दमन, सरकारी कर्मचारियों के वेतन रोकने, पेट्रोल व डीज़ल पर वैट बढ़ाकर उनकी कीमतें बढ़ाने और महँगाई बढ़ाने में पूँजीवाद के इस नये दलाल केजरीवाल ने सभी को टक्कर देना शुरू कर दिया। इसने तमाम भ्रष्टाचारी व्यापारियों पर छापा मारने से भ्रष्टाचार-रोधी शाखा को रोक दिया ताकि उसी के समान ‘बनिया व्यापारी’ होने पर गर्व करने वाले सभी धनी दुकानदारों को राहत मिले! इस सरकार ने अपने प्रचार पर 526 करोड़ रुपये का बजट रखा है जो एक नया रिकॉर्ड है! इसके अनेक विधायक और मन्त्री सम्पत्ति गबन करने, शराब बाँटने, गुण्डई करने, पत्नी को पीटने, फर्जीवाड़ा और चार-सौ-बीसी करते हुए रंगे हाथों पकड़े गये हैं और उन पर मुकदमे चल रहे हैं! उनमें से दो जेल में हैं! खुद केजरीवाल के बंगले का बिजली का बिल एक लाख से ऊपर आ रहा है और उसके बीवी-बच्चे विदेश घूम रहे हैं! इतने के बाद दिल्ली की आम जनता को भी समझ में आ रहा है कि उसके साथ कैसा धोखा हुआ है। सबसे बड़ा धोखा तो दिल्ली की मज़दूर आबादी के साथ हुआ है। अपने प्रचार के लिए 526 करोड़ रुपये की भारी रकम रखने का कारण यह है कि एक साल पूरा होने से पहले ही पूरी दिल्ली में केजरीवाल और उसकी ‘आम आदमी पार्टी’ की ऐसी ‘थू-थू’ हुई है कि उसे डर है कि जनता उसे सड़कों पर पीट भी सकती है। ग़ौरतलब है कि अरविन्द केजरीवाल ने दिल्ली पुलिस से दरख़्वास्त की है कि वह किसी को भी उसके 30 फीट के दायरे में न आने दे! ये सदाचारी ‘जनता का सेवक’ इस कदर किससे डरा हुआ है?! ज़ाहिर है, दिल्ली के आम मेहनतकश लोग वाकई केजरीवाल और उसके चेले-चपाटियों को पीट सकते हैं। दिल्ली की जनता के साथ ‘आम आदमी पार्टी’ और इसके चंगुओं-मंगुओं ने सबसे बड़ा धोखा किया है! लेकिन चूँकि इन्हें पूँजीवादी राजनीति करने का अनुभव ज़्यादा नहीं है इसलिए ये तमाम अपराध और भ्रष्टाचार करने में हाथ की सफाई नहीं दिखला पाये और हर बार रंगे हाथों पकड़े गये! इनकी नियति यही है कि ये एक राजनीतिक पार्टी के तौर आने वाले समय में या तो बिखर जायेंगे या फिर पूरी तरह बेनक़ाब होकर परिधि पर चले जायेंगे। ‘आम आदमी पार्टी’ एक ऐसी पार्टी थी जो विपक्ष में रहकर ही ज़िन्दा रह सकती थी! सत्ता में आते ही इनका राजनीतिक केंचुल-नृत्य (स्ट्रिपटीज़–एक अश्लील नृत्य जिसमें नर्तकी एक-एक करके अपने सारे कपड़े उतार देती है) शुरू होना ही था! इनका समर्थन करने वालों के साथ जो धोखा हुआ है उसके कारण इनका एक बड़ा हिस्सा प्रतिक्रिया में आकर मोदी के समर्थन में जा सकता है। अब यह समय की बात है कि यह कब तक होता है। लेकिन इनमें से किसी एक सम्भावना का असलियत में बदलना तय है।
लेकिन देश के पैमाने पर संघ परिवार के चुनावी गिरोह भाजपा की सरकार ने देश की जनता से उससे भी बड़ा धोखा किया है और शायद उससे भी ज़्यादा बेशर्मी के साथ। ये दोनों ही ताक़तें इस समय मज़दूर वर्ग के सबसे बड़े शत्रुओं की भूमिका में हैं। ज़ाहिर है कि कांग्रेस मज़दूरों के हक़ों पर हमले करने में कहीं भी इनसे पीछे नहीं है। लेकिन यह भी सच है कि पूँजीपति वर्ग की ‘मैनेजिंग कमेटी’ की ज़िम्मेदारी सम्भालने के लिए इन सभी पूँजीवादी पार्टियों में भी लगातार प्रतिस्पर्द्धा चलती रहती है। कम-से-कम इस वक़्त भाजपा और आम आदमी पार्टी ने इस काम में कांग्रेस को पछाड़ रखा है। निश्चित तौर पर, आने वाले समय में कांग्रेस का सितारा फिर चढ़ेगा क्योंकि पूँजीवादी चुनावी राजनीति में ऐसा ही होता है। एक मुखौटा कुछ दिन में घिस जाता है तो उसे हटाकर दूसरा मुखौटा लगाने की ज़रूरत पड़ जाती है। जब एक पूँजीवादी पार्टी पूँजीपति वर्ग की नंगई और बेशर्मी के साथ सेवा करते हुए पूरी तरह बेनक़ाब हो जाती है तो पूँजीवादी व्यवस्था को बचाये रखने के लिए दूसरी या किसी तीसरी पार्टी का सत्ता में आना अनिवार्य हो जाता है। यही कारण है कि पूँजीपति वर्ग का पूँजीवादी जनतन्त्र आम तौर पर हमेशा बहुपार्टी संसदीय जनवाद होता है। आज के दौर में हमें विशेष तौर पर फासीवादी भाजपा और दक्षिणपंथी लोकरंजकतावादी आम आदमी पार्टी की साज़िशों को समझने की ज़रूरत है। लेकिन साथ ही हमें यह भी समझने की आवश्यकता है कि कोई भी पूँजीवादी चुनावी पार्टी आज हमारे सामने कोई विकल्प पेश नहीं कर सकती क्योंकि पूँजीवादी चुनावों के रास्ते कोई बुनियादी क्रान्तिकारी परिवर्तन आ ही नहीं सकता है। आज जब पूरी पूँजीवादी व्यवस्था की नंगई, घिनौनापन, अपराधी और भ्रष्ट चरित्र इस कदर हमारे सामने है, तो हमें समझ लेना चाहिए कि अब इस व्यवस्था के दायरे के भीतर मज़दूर वर्ग किसी किस्म की परिमाणात्मक बेहतरी की भी मुश्किल से ही उम्मीद कर सकता है। पूँजीवादी व्यवस्था अपनी उम्र से काफ़ी ज़्यादा जी चुकी एक ऐसी बूढ़ी मुर्गी है जो दुनिया को ग़रीबी, भुखमरी, बेरोज़गारी, युद्ध और पर्यावरणीय विनाश जैसे सड़े और बदबूदार अण्डे ही दे सकती है! इसकी सही जगह इतिहास का कूड़ेदान है। मज़दूर वर्ग अपनी नयी क्रान्तिकारी हिरावल पार्टी का निर्माण करके और एक मज़दूर इंक़लाब के ज़रिये समूची पूँजीवादी व्यवस्था को तबाह करके और एक समाजवादी व्यवस्था का निर्माण करके ही अपनी आने वाली पुश्तों के लिए एक बेहतर भविष्य और दुनिया तैयार कर सकता है। क्या इस काम को आगे बढ़ाने में पहले ही काफ़ी देर नहीं हो रही है?
मज़दूर बिगुल, जुलाई 2015
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