ओरियंट क्राफ्ट की घटना गुड़गाँव के मज़दूरों में इकट्ठा हो रहे ज़बर्दस्त आक्रोश की एक और बानगी है
बिगुल संवाददाता
गुड़गाँव के सेक्टर-34 स्थित हीरो होंडा चौक के पास ओरियंट क्राफ्ट कम्पनी में एक बार फिर पिछले 20 जून को मज़दूरों का आक्रोश भड़क उठा। सुबह फैक्ट्री में एक मज़दूर काम करते समय बिजली का करेंट लगने से बुरी तरह झुलस गया। मज़दूरों ने कम्पनी के अफसरों से घायल मज़दूर को अस्पताल ले जाने की बात कही लेकिन मैनेजमेंट ने मना कर दिया। इसके बाद मज़दूरों ने ख़ुद अपने घायल साथी को अस्पताल में ले जाकर भरती कराया। कुछ देर बाद यह अफ़वाह फैली कि उस मज़दूर की मौत हो गयी है। इसके बाद मज़दूरों का दबा हुआ गुस्सा भड़क उठा और उन्होंने फैक्ट्री में तोड़फोड़ शुरू कर दी। उन्होंने फैक्ट्री के कुछ हिस्सों और अफसरों की गाड़ियों में आग लगा दी और अधिकारियों के साथ मारपीट भी की। आग बुझाने के लिए दमकल की 12 गाड़ियों को बुलाना पड़ा। इसके बाद करीब 400 पुलिस वालों ने फैक्ट्री पहुँचकर बुरी तरह लाठीचार्ज करके मज़दूरों को वहाँ से हटाया।
रेडीमेड गारमेंट बनाने वाली इस फैक्ट्री में इस तरह की यह पहली घटना नहीं है। पहले भी कई मौकों पर मज़दूरों के साथ दुर्घटनाओं में इलाज न होने या ठेकेदारों के दुर्व्यवहार के विरोध में मज़दूर अपने आक्रोश का उग्र प्रदर्शन कर चुके हैं। इस घटना ने एक बार फिर साबित कर दिया कि गुड़गाँव औद्योगिक क्षेत्र के कारख़ानों में हो रहे अमानवीय शोषण और उत्पीड़न के खि़लाफ़ मज़दूरों में भयंकर रोष व्याप्त है। किसी नेतृत्व के अभाव और अपनी जायज़ माँगों के लिए संगठित होकर कोई व्यापक आन्दोलन न कर पाने की स्थिति का नतीजा यह होता है कि मज़दूरों का गुस्सा इस प्रकार की घटनाओं के बहाने सड़क पर फूट पड़ता है जिसे अन्त में कम्पनी के गुण्डों या पुलिस दमन के बल पर कुचल दिया जाता है। इसके बाद ज़्यादातर मज़दूर दूसरी जगहों पर काम पकड़ लेते हैं या न्याय की आस में न्यायालयों के चक्कर लगाते रह जाते हैं।
आज मज़दूरों का जो गुस्सा सड़कों पर सामने आ रहा है यह इस बात का प्रमाण है कि पूरे गुड़गाँव क्षेत्र के मज़दूरों में अपनी स्थिति को लेकर भारी असन्तोष है जिसे एक दिशा देने की ज़रूरत भी है और सम्भावना भी। गुड़गाँव में लगभग 10,000 कारखाने हैं, जहाँ पूरे साल स्थायी काम होता है फिर भी इनमें काम करने वाले ज़्यादातर मजदूर ठेके पर रखे जाते हैं। इसका एक प्रमाण यह है कि इनमें से सिर्फ 100 कारख़ानों में ही नाम मात्र के लिए मज़दूर अपनी ट्रेड यूनियन बना सके हैं। ज़्यादातर जगह यदि मज़दूर यूनियन बनाने की माँग उठाते हैं तो अगुवा मज़दूरों को निशाने पर लेकर मारपीट की जाती है या काम से निकाल दिया जाता है। यह सब मालिकों-ठेकेदारों और श्रम विभाग की मिलीभगत से होता है।
कई कारख़ानों के मज़दूरों से बात करने पर पता चलता है कि आये दिन मज़दूरों से जबरन ओवरटाइम करवाया जाता है, और अगर कोई मज़दूर ओवरटाइम से मना करता है तो कारख़ाने के अन्दर मालिक के गुण्डे डराते-धमकाते हैं और अक्सर बिना पैसे दिये काम से निकाल देते हैं, जिससे कि मज़दूरों में डर बना रहे। गाली-गलौच तो आम बात है। मज़दूरों ने बताया कि कभी भी उनका वेतन समय पर नहीं दिया जाता और छह दिन से एक महीने तक का वेतन रोककर रखा जाता है। ऐसा ही कुछ इसी ओरियंट क्राफ्ट कम्पनी में दो साल पहले हुआ था जहाँ एक दिन काम पर न आने के कारण ठेकेदार ने सोमवार को मज़दूरों के साथ गाली-गलौच की और एक मज़दूर के पेट में कैंची मारकर बुरी तरह घायल कर दिया। इस घटना के तुरन्त बाद मज़दूरों का दबा हुआ गुस्सा फूट पड़ा और उन्होंने सड़क पर खड़े वाहनों में तोड़-फ़ोड़ शुरू कर दी थी। उस वक़्त भी भारी पुलिस बल के बूते मज़दूरों के विरोध को काबू में किया गया था। इससे पहले भी कई बार उद्योग-विहार स्थित कारख़ानों में काम करने वाले मज़दूरों ने काम की अमानवीय परिस्थियों के खि़लाफ़ अपनी आवाज़ उठाने की कोशिश की, परन्तु मालिकों और पुलिस की मिलीभगत और सही नेतृत्व की कमी के कारण उनका संघर्ष किसी आन्दोलन का रूप न ले सका।
लगभग सभी कारख़ानों में आये दिन दुर्घटनाएँ होती रहती हैं और न तो कारख़ाने में इलाज की कोई उचित व्यवस्था होती हैं और न ही बाहर से इलाज कराया जाता है। अक्सर तो घायल मज़दूर को इलाज के लिए छुट्टी भी नहीं दी जाती और सीधे काम से निकाल दिया जाता है। कई बार दुर्घटना में मज़दूर की मौत हो जाने के बावजूद उसके परिजनों को मुआवज़ा भी नहीं मिलता है। अपने अमानवीय शोषण, काम के भीषण दबाव और ऊपर से आये दिन जान जोखिम में रहने के कारण मज़दूरों में अन्दर ही अन्दर ज़बर्दस्त तनाव और गुस्सा है। कोई संगठित और जुझारू मज़दूर आन्दोलन नहीं होने के कारण उनका गुस्सा ऐसे ही अराजक विस्फोट के रूप में बीच-बीच में फूट पड़ता है जिसे पुलिस-प्रशासन और मालिकान आसानी से दबा देते हैं।
पिछले कुछ समय से गुडगाँव में अलग-अलग कारख़ानों में भड़के मज़दूरों के गुस्से को देखकर आसानी से अन्दाज़ा लगाया जा सकता है कि इस पूरे औद्योगिक क्षेत्र में काम करने वाली मज़दूर आबादी ज़बरदस्त शोषण का शिकार है। सिर्फ़ ठेका मज़दूर ही शोषण का शिकार नहीं हैं, बल्कि कई कारख़ानों में स्थायी नौकरी वाले मज़दूरों की स्थिति भी बहुत अच्छी नहीं है। मारुति, पावरट्रेन, हीरो होण्डा, मुंजाल शोवा आदि इसके उदाहरण है। मगर नेतृत्व और किसी क्रान्तिकारी विकल्प के अभाव में शोषण और उत्पीड़न से बेहाल इस मज़दूर आबादी का आक्रोश अराजक ढंग से इस प्रकार की घटनाओं के रूप में सड़कों पर फूट पड़ता है। इसके बाद पुलिस और मैनेजमेण्ट का दमन चक्र चलता है जिसका मुकाबला बिखरे हुए मज़दूर नहीं कर पाते और गुस्से का उबाल फिर शान्त हो जाता है।
एटक, सीटू, एचएमएस जैसी बड़ी-बड़ी केन्द्रीय यूनियनें गुड़गाँव में मौजूद हैं लेकिन ऐसी घटनाओं के समय उनके दल्ले नेता मौके से नदारद रहते हैं। ओरियंट क्राफ्ट जैसे कारखानों के लाखों असंगठित मज़दूरों के सवालों को न वे उठाते हैं और न ही उन्हें संगठित करने की कोशिश करते हैं।
बीच-बीच में फूट पड़ने वाली ऐसी घटनाओं पर ख़ुश होकर तालियाँ बजाने के बजाय ज़रूरत यह है कि असंगठित क्षेत्र की इस विशाल मज़दूर आबादी के बीच क्रान्तिकारी प्रचार-प्रसार करते हुए उनकी मूलभूत माँगों जैसे काम के उचित घण्टे, जबरन ओवरटाइम बन्द करवाने, प्रबन्धन की गुण्डागर्दी बन्द करने, ट्रेड यूनियन अधिकारों आदि पर मजदूरों को संगठित करने की कोशिश की जाये। सुधारवादी, अर्थवादी और धन्धेबाज़ ट्रेड यूनियनों का असली चेहरा मज़दूरों को दिखाया जाये और उनके बीच सुलगते रोष को एक सही क्रान्तिकारी दिशा देने की शुरुआत की जाये।
मज़दूर बिगुल, जून 2015
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