बेर्टोल्ट ब्रेष्ट की कविता – हम राज करें, तुम राम भजो!
मनबहकी लाल
(बेर्टोल्ट ब्रेष्ट की कविता के आधार पर)
खाने की टेबुल पर जिनके
पकवानों की रेलमपेल
वे पाठ पढ़ाते हैं हमको
‘सन्तोष करो, सन्तोष करो!’
उनके धन्धों की ख़ातिर
हम पेट काटकर टैक्स भरें
और नसीहत सुनते जायें –
‘त्याग करो, भई त्याग करो!’
मोटी-मोटी तोन्दों को जो
ठूँस-ठूँसकर भरे हुए
हम भूखों को सीख सिखाते
‘सपने देखो, धीर धरो!’
बेड़ा गर्क़ देश का करके
हमको शिक्षा देते हैं –
‘तेरे बस की बात नहीं
हम राज करें, तुम राम भजो!’
परिकल्पना प्रकाशन से प्रकाशित पुस्तक ‘कहे मनबहकी खरी-खरी’ से
‘मज़दूर बिगुल’ की सदस्यता लें!
वार्षिक सदस्यता - 125 रुपये
पाँच वर्ष की सदस्यता - 625 रुपये
आजीवन सदस्यता - 3000 रुपये
आर्थिक सहयोग भी करें!
बुर्जुआ अख़बार पूँजी की विशाल राशियों के दम पर चलते हैं। मज़दूरों के अख़बार ख़ुद मज़दूरों द्वारा इकट्ठा किये गये पैसे से चलते हैं।
मज़दूरों के महान नेता लेनिन
बहुत सुन्दर
sundar rachna ka mazedar anuwad
सच की आग उगलती कविता है।
इसे मैंने पहले रवि कुमार के पोस्टर पर पढ़ा है।
बहुत सुन्दर व बढिया रचना।बधाई।