दिल्ली में मज़दूर माँग-पत्रक आन्दोलन-2011 क़ी शुरुआत
श्रमिक अधिकारों के प्रति मज़दूरों को जागरूक करने के लिए प्रचार से आगाज़
बिगुल संवाददाता
दिल्ली। राजधानी के औद्योगिक इलाकों करावल नगर, झिलमिल, बादली सहित अन्य मज़दूर बस्तियों में मज़दूर माँगपत्रक आन्दोलन-2011 चलाया जा रहा है। मज़दूर माँगपत्रक आन्दोलन के कार्यकर्ता मज़दूर बस्तियों में नुक्कड़ सभाएँ, पर्चा वितरण करते हुए श्रमिक अधिकारों के प्रति मज़दूरों में जागरूकता फैलाने का काम कर रहे हैं।
इस आन्दोलन का मकसद देश की व्यापक मज़दूर आबादी के पक्ष में श्रम कानूनों को लागू करवाना, पुराने श्रम कानूनों का संशोधन और नये श्रम कानूनों का निर्माण है। भारत सरकार वैसे तो मज़दूरों के लिए तमाम कानूनी अधिकार देने की बात करती है, लेकिन व्यवहार में लागू कितने होते हैं, यह सभी जानते हैं। इस 26 सूत्रीय माँगपत्रक आन्दोलन में भारत के करोड़ों-करोड़ मज़दूरों की तरफ से ऐसे श्रम-कानूनों को बनाने की भी माँग है जिनके लिए कानूनी-अधिकार या तो हैं ही नहीं या फिर अपर्याप्त हैं। मालूम हो कि देश की 60 करोड़ मज़दूर जमात में से करीब 70 फीसदी मज़दूर आबादी ठेका,दिहाड़ी तथा पीस रेट पर काम करती है। इस असंगठित मज़दूर आबादी के लिए न तो काम के घण्टे तय हैं और न ही उन्हें न्यूनतम मज़दूरी मिलती है। साप्ताहिक छुट्टी या ओवरटाइम का डबल रेट से भुगतान आदि कानूनी हकों का इन कार्य-क्षेत्रों में कोई मायने नहीं है।
ख़ुद करावलनगर इलाके की बात करें तो यहाँ करीब 2500 छोटे-बड़े उद्योग हैं, जिनमें हज़ारों की संख्या में मज़दूर काम करते हैं। उनके लिए न तो कोई मज़दूर पहचान कार्ड है, न हाज़िरी कार्ड; निरन्तर दुर्घटनाएँ होना यहाँ आम बात है जिनका शिकार इनमें काम करने वाले मज़दूर होते रहते हैं। उसके लिए न तो उन्हें कारख़ाना अधिनियम के तहत कोई मुआवज़ा मिलता है और न ही उनके पास कोई वैधानिक पहचान होती है, जिसके ज़रिये वे आगे की कोई कानूनी कार्रवाई कर सकें। इनके अलावा यहाँ ‘बादाम प्रसंस्करण उद्योग’ सरीखे तमाम वर्कशॉप हैं, जो न तो पंजीकृत हैं और न ही किसी प्रकार के श्रम कानूनों का पालन करते हैं। यह हाल देश के बहुलांश इलाकों की मज़दूर आबादी का है।
ऐसे में मज़दूर माँगपत्रक आन्दोलन की शुरुआत बेहद ज़रूरी और समयोचित है, जिसके ज़रिये हम मौजूदा पूँजीवादी मशीनरी की पक्षधरता को और स्पष्टता से मेहनतकश अवाम के सामने रख सकते हैं।
करावलनगर, झिलमिल तथा बादली आदि मज़दूर बस्तियों में मज़दूर कार्यकर्ताओं की टोलियों द्वारा नुक्कड़ सभाएँ करते हुए’अब चलो नयी शुरुआत करो, मज़दूर मुक्ति की बात करो’ नामक पर्चे का वितरण किया जा रहा है। जिसमें कहा गया है कि ”पूँजी का आकाश चूमता महल मज़दूरों को निचोड़कर बनाया जाता है, उनके अकथ दुखों-तकलीफों के सागर में खड़ा किया जाता है। मज़दूर यदि निचुड़कर हड्डियों का कंकालभर रह जाये तो पूँजीपति उन हड्डियों का भी पाउडर पीसकर बाज़ार में बेच देगा। इसलिए हमारा कहना है कि मज़दूर वर्ग के पास लड़ने के सिवा और कोई रास्ता नहीं है। आज अगर हम लड़ेंगे नहीं तो आने वाली पीढ़ियाँ इतिहास में दफन हमारी हड्डियों को खोदकर बाहर निकालेंगी और कहेंगी – ‘देखो ये उन ग़ुलामों की हड्डियाँ हैं, जिन्होंने अपनी ग़ुलामी के ख़िलाफ बग़ावत नहीं की।”’
माँगपत्रक आन्दोलन-2011 क़ा मकसद देश के ज्यादा से ज्यादा मज़दूरों को यह बताना है कि आज किन माँगों पर मज़दूर आन्दोलन नये सिरे से संगठित होगा और कहाँ से शुरुआत करके यह कदम-ब-कदम अपनी मंज़िल की ओर आगे बढ़ेगा।
इस आन्दोलन के प्रारम्भिक चरण में प्रचारात्मक गतिविधियों के तहत श्रम-कानूनों सम्बन्धी नारों और माँगों को दीवारों,तख्तियों, पोस्टरों, बैनरों और पर्चों के द्वारा लोगों के करीब ले जाने की शुरुआत की गयी। उसके बाद मज़दूर लॉजों व डेरों में तथा कमरा-कमरा बैठक करके माँगपत्रक की प्रासंगिकता पर चर्चा करते हुए इस आन्दोलन से मज़दूर आबादी को जोड़ने का काम शुरू कर दिया गया है। साथ ही मज़दूर साथियों के हस्ताक्षर जुटाने का काम भी जारी है। योजना यह है कि आने वाली एक मई (125वाँ मज़दूर दिवस) को दिल्ली स्थित देश की संसद के सामने मज़दूरों का एक विशाल प्रदर्शन किया जाये और इसीके साथ लाखों मज़दूरों के हस्ताक्षर सहित इस माँगपत्रक को भारत सरकार को सौंपा जाये। इस आन्दोलन के लिए मज़दूर साथियों से आर्थिक सहयोग भी जुटाया जा रहा है, जिससे यह आन्दोलन विधिवत ढंग से चलाया जा सके। एक मई तक चलने वाले इस आन्दोलन के प्रथम चरण के अन्तर्गत मज़दूर माँगपत्रक कमेटी बनाने की भी योजना है,जिससे मज़दूर वर्ग का यह आन्दोलन ज्यादा विस्तार और आम माँग का रूप ले सके। ‘दुनिया के सबसे बड़े लोकतन्त्र’ का’महान संविधान’ जो जनवाद और समानता का भोंपू बजाता है, उसकी पक्षधरता इस आन्दोलन से साफतौर पर स्पष्ट हो जायेगी तथा जिन मज़दूर साथियों को यह लगता है कि इस व्यवस्था के रहते हुए उनका कुछ भला हो सकता है, उनका भी भ्रम दूर हो जायेगा।
मज़दूर बिगुल, दिसम्बर 2010
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मज़दूरों के महान नेता लेनिन