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महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइन्सटीन
“निजी पूँजी कुछ हाथों में केन्द्रित होते जाने की प्रवृत्ति रखती है। इसका नतीजा निजी पूँजी का एक ऐसा अल्पतंत्र होता है जिसकी भयंकर शक्ति को लोकतांत्रिक ढंग से संगठित राजनीतिक समाज भी प्रभावी ढंग से नियंत्रित नहीं कर सकता। यह इसलिए सच है क्योंकि विधान मण्डलों के सदस्य राजनीतिक पार्टियों द्वारा चुने जाते हैं, जो निजी पूँजीपतियों के धन से चलती हैं या अन्य तरीकों से उन्हीं के प्रभाव में होती हैं। ये पार्टियाँ, व्यवहार में, चुनने वाली जनता को विधानमण्डल से काट देने का काम करती हैं। नतीजा यह होता है कि जनता के प्रतिनिधि वास्तव में आबादी के वंचित तबकों के हितों की पर्याप्त रूप से हिफ़ाज़त नहीं करते। इतना ही नहीं, वर्तमान परिस्थितियों में, निजी पूँजीपति हर हाल में, प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से, जानकारी के मुख्य स्रोतों (प्रेस, रेडियो, शिक्षा) को नियंत्रित करते हैं। इसलिए एक-एक नागरिक के लिए अकेले सही नतीजों तक पहुँचना और अपने राजनीतिक अधिकारों का होशियारी के साथ इस्तेमाल करना बेहद कठिन, बल्कि ज़्यादातर मामलों में, लगभग असम्भव हो जाता है।”
काकोरी केस के शहीदों की 87वीं बरसी (19 दिसम्बर) पर
– अब देशवासियों के सामने यही प्रार्थना है कि यदि उन्हें हमारे मरने का जरा भी अफसोस है तो वे जैसे भी हो, हिन्दू-मुस्लिम एकता स्थापित करें – यही हमारी आखिरी इच्छा थी, यही हमारी यादगार हो सकती है।
(शहीद रामप्रसाद बिस्मिल के अन्तिम सन्देश से, जिसे भगतसिंह ने ‘किरती’ पत्र में जनवरी, 1928 में प्रकाशित कराया था)
– हिन्दुस्तानी भाइयो! आप चाहे किसी भी धर्म या सम्प्रदाय के मानने वाले हों, देश के काम में साथ दो। व्यर्थ आपस में न लड़ो।
(फाँसी के ठीक पहले फैजाबाद जेल से भेजे गये काकोरी काण्ड के शहीद अशफाक उल्ला के अन्तिम सन्देश से)
मज़दूर बिगुल, दिसम्बर 2014
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मज़दूरों के महान नेता लेनिन