पाखण्ड का नया नमूना रामपाल: आखि़र क्यों पैदा होते हैं ऐसे ढोंगी बाबा?
रमेश
रामपाल के नाम से भारत की “महान सन्त परम्परा” में एक और नया नाम जुड़ गया है। लोगों को “सतलोक” पहुँचाने वाले इस धूर्त के ख़ुद के सितारे आजकल गर्दिश में पहुँच गये हैं। हरियाणा के ज़िला हिसार के बरवाला वाले “सतलोक मुक्तिधाम” के कारण यह धूर्त कुख्यात हुआ जिसे इसने किले में तब्दील कर लिया था। इस किले को फ़तह करने में हरियाणा पुलिस व अर्द्धसैनिक बलों के करीब 45,000 जवानों के ख़ासे पसीने छूट गये थे। मामला था 2006 में हत्या के मुक़दमे में कोर्ट में सुनवाई के लिए पेश होने का। सन 2006 में रामपाल और उसके चेलों का आर्य समाज के लोगों के साथ ख़ूनी झगड़ा हुआ था। झगड़े का कारण बताया गया था रामपाल द्वारा आर्य समाज के दयानन्द सरस्वती की निन्दा, लेकिन असल कारण था आर्य समाज की दुकानदारी में रामपाल द्वारा सेंध लगाया जाना।
रामपाल कोर्ट के बार-बार बुलावे को ठेंगा दिखा रहा था। मीडिया की मानें तो रामपाल के पुराने और नये रिकॉर्ड को मिलाकर वह 42 बार तारीख़ पर पेश नहीं हुआ। इस मामले में पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने पेश न होने पर 5 नवम्बर को ग़ैर-जमानती वारण्ट जारी कर दिया था। रामपाल ने भी अपने करीब 15,000 अन्धभक्तों को आश्रम में जमा कर लिया था, ताकि एक तो अपने वोट बैंक का प्रदर्शन किया जा सके और दूसरा वक़्त आने पर ढाल के तौर पर इनका इस्तेमाल किया जा सके। ढाल के तौर पर इस्तेमाल होने के बाद बहुत से “भक्तजन” बाद में आँसू बहाते हुए अपने हाल पर पछता भी रहे थे लेकिन तब तक देर हो चुकी थी। शुरू में अन्धभक्ति के कारण लोग आश्रम में आये लेकिन जब माजरा उनकी समझ में आने लगा तो परिवार के लोगों को एक-दूसरे से अलग करके, महिलाओं को उनके बच्चों से अलग करके, बाबा की ख़ुद की गुण्डा फ़ौज द्वारा डरा-धमकाकर उन्हें रोके रखा गया। 60 घण्टे की घेरेबन्दी के बाद 19 नवम्बऱ को रामपाल को गिरफ्ऱतार कर लिया गया।
इस कार्रवाई में 5 महिलाओं और एक बच्चे समेत 6 मौतें हुईं, सैकड़ों लोग घायल हुए जिसमें पुलिस के जवान भी शामिल थे और करीब 27 करोड़ रुपया ख़र्च हुआ। आश्रम की तलाशी के दौरान भारी मात्रा में लाठियाँ, बन्दूकें, पेट्रोल बम और ज्वलनशील पदार्थ बरामद हुआ। इतना ही नहीं 12 एकड़ में फैले इस फाइव स्टारनुमा आश्रम में अपराध और धर्म का रिश्ता साफ़-साफ़ देखने को मिला। यहाँ पर शानदार स्विमिंग पूल से लेकर मिनी अस्पताल तक और महँगे फ़र्नीचर से लेकर लक्ज़री गाड़ियाँ तक मिली हैं। मोह-माया से ऊपर उठ चुके बाबा के बाथरूम और रसोई तक में ए.सी. लगा हुआ था। भारी मात्रा में अश्लील किताबें, प्रेगनेंसी किट, सेक्स-वर्धक दवाइयाँ भी बरामद हुई हैं। यही नहीं महिला स्नानागारों तक में गुप्त कैमरे लगे हुए मिले। अपने पाखण्ड को लोगों के सामने चमत्कार के रूप में दिखाने के लिए बाबा अत्याधुनिक तकनीक का इस्तेमाल करता था। लोगों से करोड़ों रुपया ठगकर यह पाखण्डी मृत्युलोक में ही “सतलोक” के मज़े लूट रहा था। इस तरह के तमाम मक्कार कई तरह के सवाल हमारे सामने खडे. कर देते हैं कि किस तरह दो कौड़ी के धूर्त अपनी दुकानदारी खड़ी कर लेते हैं? कैसे ये लोगों की चेतना को कुन्द करने का काम करते हैं? ऐसे लोग समाज में न पैदा हों उसके लिए क्या किया जा सकता है?
लोग पूँजीवादी व्यवस्था में व्याप्त सामाजिक-आर्थिक असुरक्षा होने के कारण धर्म-कर्म के चक्कर में पड़ते हैं। पूँजीवादी समाज का जटिल तन्त्र और उसमें व्याप्त अस्थिरता किसी भाववादी सत्ता में विश्वास करने का कारण बनती है। असल में धार्मिक बाबाओं के पास लोग एकदम भौतिक कारणों से जाते हैं। किसी को रोज़गार चाहिए, किसी को सम्पत्ति के वारिस के तौर पर लड़का चाहिए, कोई अपनी बीमारी के इलाज के लिए जाता है तो किसी को धन चाहिए। यही नहीं बौद्धिक रूप से कुपोषित नेता-मन्त्री और ख़ुद को पढे-लिखे कहने वाले लोग भी अपनी कूपमण्डूकता का प्रदर्शन करते रहते हैं। मौजूदा व्यवस्था की वैज्ञानिक समझ के बिना और तर्कशीलता और वैज्ञानिक नज़रिये से रीते होने के कारण लोग पोंगे-पण्डितों को अवतार पुरुष समझ बैठते हैं। ये ढोंगी बाबा एकदम विज्ञान पर आधारित कुछ ट्रिकों का इस्तेमाल करते हैं और अपनी छवि को चमत्कारी व अवतारी के तौर पर प्रस्तुत करते हैं। हरियाणा में कभी सिंचाई विभाग का जूनियर इंजीनियर रह चुका रामपाल भी चमत्कारी प्रभाव छोड़ने के लिए हाईड्रोलिक्स कुर्सी तथा रंगबिरंगी लाइटों का इस्तेमाल करता था। धार्मिक गुरु घण्टाल लोगों को तर्क न करने, पूर्ण समर्पण करने, दिमाग़ को ख़ाली रखने आदि जैसी “हिदायतें” लगातार देते रहते हैं। यहाँ पर ‘श्रद्धावानम् लभते ज्ञानम्’ के फ़ार्मूले पर काम करना सिखाया जाता है। लेकिन इस सबके बावजूद कुछ लोग इनके पाखण्ड को समझने की “भूल” कर बैठते हैं तो इन जैसों से ये बाबा दूसरे तरीक़े से निपटते हैं। अपने “भटके हुए” भक्तों की हत्या तक करवा देना इन बाबाओं के बायें हाथ का खेल है। आसाराम और नारायण साईं, कांची पीठ के शंकराचार्य जयेन्द्र सरस्वती, डेरा सच्चा सौदा के गुरमीत राम रहीम, चन्द्रास्वामी, प्रेमानन्द आदि ऐसे चन्द उदाहरण हैं जिनके नाम अपने भक्तों को असली मोक्ष प्रदान करने में सामने आये हैं।
पूँजीवादी समाज में धर्म के नाम पर लागों को आत्मसुधार का पाठ पढ़ाने वाले ये पाखण्डी ख़ुद अय्याशियों भरा जीवन जीते हैं। लोगों को परलोक सुधारने का लालच देकर इनकी तो सात पुश्तों तक का इहलोक सुधर जाता है। ये पण्डे-पुजारी, मुल्ले-मौलवी और साधु-सन्त लोगों को यह कभी नहीं बताते कि मेहनतकश जनता की बदहाली का कारण पूँजीपतियों की लूट है। ऐसा बताकर ये पूँजीपति वर्ग के हितों के खि़लाफ़ नहीं जा सकते और स्वयं के पैरों पर कुल्हाड़ी नहीं मार सकते, क्योंकि तमाम बड़े-बड़े बाबाओं के ख़ुद के पैसे व संसाधनों के बड़े-बडे़ अम्बार लगे होते हैं। तमाम मोक्ष के ठेकेदार व्यवस्था के अन्तरविरोधों पर हमेशा परदा डालने का ही काम करते हैं। पूँजीवादी राज्यसत्ता भी हद दर्जे की कूपमण्डूकताओं और अन्ध- विश्वासपूर्ण मान्यताओं को लगातार बढ़ावा देने का काम सचेतन करती रहती है। राजनेताओं व पूँजीपतियों के साथ इनके सीधे सम्बन्ध तो होते ही हैं, साथ-साथ ये ख़ुद भी नेतागिरी करने और पूँजीपति बनने में हाथ आज़माइश करते हैं। हरियाणा के विधान सभा चुनाव से पहले ख़ुद भाजपा के अमित शाह ने विधायक के प्रत्याशियों के साथ डेरा सच्चा सौदा के बाबा के सामने दण्डवत की और चुनाव जीतने के बाद भी दो दर्जन विधायक धन्यवाद ज्ञापित करने पहुँचे थे। ज्ञात हो इन बाबा पर भी हत्या, बलात्कार और अपने करीब 300 चेलों को नपुंसक बनाने के मामले चल रहे हैं।
आज के समय तार्किकता और वैज्ञानिक नज़रिये के प्रचार की बेहद ज़रूरत है। अन्धविश्वास और कूपमण्डूकता को इस तरह के प्रचार के द्वारा एक हद तक ख़त्म किया जा सकता है। लेकिन ऐसे पाखण्डियों के पैदा होने की ज़मीन मौजूदा पूँजीवादी व्यवस्था ख़ुद मुहैया करवाती है। ऐसे बाबाओं और इनके द्वारा फैलाये जा रहे अन्धविश्वास के जाल को तब तक नहीं नेस्तनाबूत किया जा सकता, जब तक इन्हें पैदा करने वाली सामाजिक व्यवस्था को न ख़त्म कर दिया जाये।
मज़दूर बिगुल, दिसम्बर 2014
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