हीरो मोटोकॉर्प के स्पेयर पार्ट्स डिपार्टमेंट से 700 मज़दूरों की छंटनी!
बिगुल संवाददाता, गुड़गाँव
राष्ट्रीय स्तर पर सारे मालिकान मिलकर एक ही नीति का पालन कर रहे हैं, कि मज़दूरों को कम से कम कीमत देकर ज़्यादा से ज़्यादा मेहनत कैसे निचोड़ी जाये, और इस नीति को लागू करने में पूँजीपतियों के हित में चुनावी दल्ले, नेता-मन्त्री, कोर्ट-कचहरी, पुलिस-फौज तो हमेशा सर झुकाकर खड़े ही रहते हैं। इसके अलावा नकली लाल झण्डे वाले चुनावी मदारी भी आज मुँह पर पट्टी लगाकर खामोश बैठे हैं, ये दलाल भी मज़दूरों की ऐसी भयंकर परिस्थतियों में चुप्पी लगाकर यह साफ ज़ाहिर कर रहे हैं कि वे मालिकों के साथ हैं।
11 अगस्त 2014 को हीरो मोटोकॅार्प की शाखा स्पेयर पार्ट्स डिपार्टमेंट (जो कि हीरो मोटोकार्प कम्पनी के बिल्कुल साथ में ही सेक्टर 34 गुड़गाँव मे स्थित है) में करीब 700 मज़दूरों को कम्पनी मैनेजमेण्ट ने जबरन रात को 2 बजे फ़ैक्टरी गेट के बाहर निकाल दिया। 700 मज़दूरों को कम्पनी से निकालने के लिए 40 जिप्सी व 2 बसों मे पुलिस भरकर आयी थी।
स्पेयर पार्ट्स डिपार्टमेंट में यही नियम लागू था – छह महीने मज़दूर से काम करवाओ और उसके बाद निकाल दो और अगर कम्पनी मैनेजमेण्ट को ज़रूरत पड़ती तो वह पुराने लड़कों को घर से फोन कर बुला लेता भर्ती के लिए। ऐसी हालत में एस.पी.डी. में यह 700 मज़दूर कम्पनी प्रबन्धन को बहुत खटक रहे थे जो पिछले 15-16 सालों से काम कर रहे थे। कम्पनी प्रबन्धन ने सभी मज़दूरों को कह दिया कि यह कम्पनी नीमराना जा रही है इसलिए तुम सभी अपना हिसाब ले लो। इस तानाशाही के खि़लाफ़ मज़दूरों ने अपनी माँग रखी कि हमें नौकरी के डेढ़ लाख रुपये प्रतिवर्ष के हिसाब से भुगतान किया जाये, जिस पर कम्पनी प्रबन्धन ने कान तक नहीं दिया। इसके विरोध में 11 अगस्त को मज़दूर हड़ताल पर बैठ गये। उसी रात 2 बजे कम्पनी प्रबन्धन ने पुलिस बल बुलाकर जबरन मज़दूरों को फैक्टरी गेट के बाहर कर दिया और यह ऐलान किया कि जिसको 10 हज़ार रुपये प्रतिवर्ष के हिसाब से हिसाब लेना हो तो कल आकर हिसाब ले जाये। हीरो मोटोकार्प कम्पनी का एक प्लांट उत्तराखण्ड में, दूसरा गुड़गाँव में व तीसरा नीमराना (राजस्थान) में शुरू चुका है। हीरो मोटोकॉर्प के मैनेजमेण्ट की नीति यही है कि मज़दूरों की भर्ती छह महीने के लिए करो इसके बाद निकाल दो।
हीरो मोटोकॉर्प कम्पनी में स्थायी मज़दूरों की ट्रेड यूनियन बनी हुई है जो हिन्द मज़दूर सभा से सम्बधिन्त है। इसके अलावा पूरे गुड़गाँव-मानेसर-धारूहेड़ा औद्योगिक क्षेत्र में हज़ारों सदस्यता वाली ट्रेड यूनियनें सीटू, एटक मौजूद हैं, लेकिन इन 700 अस्थायी मज़दूरों को निकाल देने के मुद्दे पर ये बड़े-बड़े मार्का चिपकाये ट्रेड यूनियन वाले चुप्पी लगा गये। इससे यह साफ जाहिर है कि ये सब मज़दूरों और मालिकों के बीच सौदा कराने वाले दलाल हैं।
आज सारे पूँजीपतियों का एक ही नज़रिया है। ‘हायर एण्ड फायर’ की नीति लागू करो यानी जब चाहे काम पर रखो जब चाहे काम से निकाल दो, और अगर मज़दूर विरोध करें तो पुलिस-फौज, बांउसरों के बूते मज़दूरों का दमन करके आन्दोलन को कुचल दो। ऐसे समय अलग-अलग फैक्टरी-कारख़ाने के आधार पर मज़दूर नहीं लड़ सकते और न ही जीत सकते हैं। इसलिए हमें नये सिरे से सोचना होगा कि ये समस्या जब सारे मज़दूरों की साझा है तो हम क्यों न पूरे गुड़गाँव से लेकर बावल तक के ऑटो सेक्टर के स्थाई, कैजुअल, ठेका मज़दूरों की सेक्टरगत और इलाकाई एकता कायम करें। असल में यही आज का सही विकल्प है वरना तब तक सारे मालिक-ठेकेदार ऐसे ही मज़दूरों की पीठ पर सवार रहेंगे।
मज़दूर बिगुल, सितम्बर 2014
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