मोदी सरकार द्वारा श्रम क़ानूनों में बदलाव की कवायद के विरोध में संसद भवन पर मज़दूरों का जुझारू प्रदर्शन!
बिगुल संवाददाता
संसद के पिछले सत्र में मोदी सरकार द्वारा प्रस्तावित श्रम क़ानूनों में बदलाव के विरोध में 20 अगस्त को बिगुल मज़दूर दस्ता और देश के अलग-अलग इलाकों से आये विभिन्न मज़दूर संगठनों तथा मज़दूर यूनियनों ने दिल्ली के संसद मार्ग तक मार्च किया और प्रधानमन्त्री का पुतला दहन किया। इस प्रदर्शन में मज़दूरों ने बड़ी संख्या में भागीदारी की।
ज्ञात हो कि गत 31 जुलाई को मोदी सरकार द्वारा तमाम श्रम क़ानूनों को ढीला और कमज़ोर करने के लिए प्रस्ताव पेश किया गया जिसमें फ़ैक्टरी ऐक्ट 1948, ट्रेड यूनियन ऐक्ट 1926, औद्योगिक विवाद अधिनियम 1948, ठेका मज़दूरी क़ानून 1971, एप्रेंटिस ऐक्ट 1961 शामिल हैं। जहाँ पहले फ़ैक्टरी ऐक्ट 10 या ज़्यादा मज़दूरों (जहाँ बिजली का इस्तेमाल होता हो), तथा 20 या ज़्यादा मज़दूरों (जहाँ बिजली का इस्तेमाल न होता हो) वाली फ़ैक्टरियों पर लागू होता था, अब इसे क्रमशः 20 और 40 मज़दूरों वाले कारख़ानों के लिए प्रस्तावित किया गया है। यानी उससे कम मज़दूरों वाले कारख़ानों पर कारख़ाना क़ानून लागू ही नहीं होगा। इस तरह अब मज़दूरों की बहुसंख्या को क़ानूनी तौर पर मालिक हर अधिकार से वंचित कर सकता है। इसके अलावा सरकार एक तिमाही में ओवरटाइम की सीमा को 50 घण्टे से बढ़ाकर 100 घण्टे करने की तैयारी में है। वहीं दूसरी तरफ मज़दूरों के लिए यूनियन बनाना और भी मुश्किल कर दिया गया है। पहले किसी भी कारख़ाने या कम्पनी के 10 प्रतिशत मज़दूर मिलकर यूनियन पंजीकृत करवा सकते थे लेकिन अब यह संख्या 30 प्रतिशत करने का प्रस्ताव है। ठेका मज़दूरी क़ानून, 1971 अब सिर्फ़ 50 या इससे ज़्यादा मज़दूरों वाली फ़ैक्टरी पर लागू करने की बात कही गयी है। औद्योगिक विवाद क़ानून में बदलाव किया गया है जिससे अब 300 से कम मज़दूरों वाली फैक्टरी को मालिक कभी भी बन्द कर सकता है और इस मनमानी बन्दी के लिए मालिक को सरकार या कोर्ट से पूछने की कोई ज़रूरत नहीं है। साथ ही फ़ैक्टरी से जुड़े किसी विवाद को श्रम अदालत में ले जाने के लिए पहले कोई समय-सीमा नहीं थी, अब इसके लिए भी तीन साल की सीमा का प्रस्ताव लाया गया है। एप्रेंटिस ऐक्ट में संशोधन कर सरकार ने मालिकों को छूट दे दी है कि वे बड़ी संख्या में स्थायी मज़दूरों की जगह ट्रेनी मज़दूरों को भर्ती करके काम करायें। साथ ही किसी भी विवाद में अब मालिकों के ऊपर से किसी भी किस्म की क़ानूनी कार्रवाई का प्रावधान हटाने की बात कही गयी है।
20 अगस्त को सुबह से ही राजधानी तथा अन्य इलाकों से आये मज़दूर जन्तर-मन्तर पर इकट्ठा होने लगे थे तथा सभा चल रही थी। इसके बाद भारी संख्या में मज़दूर संसद की ओर बढ़े जहाँ पुलिस ने उन्हें रोक दिया। मोदी सरकार के ख़िलाफ़ ज़ोरदार नारों के बीच मज़दूरों ने प्रधानमंत्री का पुतला फूँककर अपना आक्रोश प्रकट किया।
प्रदर्शन में आये मज़दूरों को सम्बोधित करते हुए बिगुल मज़दूर दस्ता की शिवानी ने कहा कि मोदी सरकार द्वारा श्रम क़ानूनों में बदलाव के पीछे वही घिसे-पिटे तर्क दिये जा रहे हैं जो 1990 के दौर में उदारीकरण-निजीकरण की नीतियों को लागू करते समय दिये गये थे, यानी ये बदलाव “रोज़गार” पैदा करने तथा मज़दूरों की दशा सुधारने और सुरक्षा बढ़ाने के नाम पर किये गये हैं। वैसे 24 वर्षों से जारी उदारीकरण-निजीकरण की जन–विरोधी नीतियाँ जनता के सामने जग-जाहिर हैं। इन वर्षों में अमीरी-ग़रीबी की खाई लगातार गहराती गयी है। बेरोज़गार नौजवानों की फौज सड़कों पर खड़ी है। आज बेहतर शिक्षा-स्वास्थ्य-भोजन-आवास जैसी बुनियादी सुविधाएँ लगातार मेहनतकश आबादी से छीनी जा रही हैं। असल में श्रम क़ानूनों की धज्जियाँ उड़ाने का मकसद रोज़गार बढ़ाना नहीं बल्कि पूँजीपतियों को मज़दूरों को लूटने के लिए और ज़्यादा छूट देने की है तभी इस बजट में पूँजीपति घरानों को 5.32 लाख करोड़ रुपये की भारी छूट दी गयी है। वैसे इसकी असल शुरुआत तो राजस्थान में वसुंधरा सरकार ने दो महीने पहले ही कर दी थी, जो मॉडल अब केन्द्र सरकार लागू कर रही है।
नौजवान भारत सभा के फेबियन ने अपनी बात में कहा कि मोदी सरकार की पक्षधरता स्पष्ट हो गयी है कि वह किसके पक्ष में खड़ी है। आज इन श्रम क़ानूनों में बदलाव का प्रस्ताव देश के विकास के नाम पर किया जा रहा है लेकिन सच्चाई यह है कि देश की एक बड़ी आबादी के सामने आज भी अस्तित्व का प्रश्न है। दिशा छात्र संगठन की वारुणि ने कहा कि यह प्रस्ताव मज़दूरों को मालिकों के रहमोकरम पर छोड़ देने के लिए लाया गया है। केन्द्र सरकार को सबसे पहले तो यह सुनिश्चित करना चाहिए कि देश के हर नागरिक को संविधान प्रदत्त मौलिक अधिकारों में से अहम अधिकार सम्मानपूर्वक जीवन जीने का अधिकार सुनिश्चित करना चाहिए जबकि यह सरकार देश की बड़ी आबादी से उनका रहा-सहा हक़ भी छीन रही है।
120 दिनों से भिवाड़ी में अपनी माँगों को लेकर संघर्ष कर रहे श्रीराम पिस्टन एण्ड रिंग्स कामगार यूनियन के महेश ने कहा कि इस पूरी लड़ाई में हमारा यही अनुभव रहा कि सरकार ने सिर्फ़ मालिकों की सुनी है और हमारी माँगों के प्रति ग़ैरजिम्मेदाराना रवैया रहा है। लेकिन हम तब तक लड़ते रहेंगे जब तक हमारी माँगें नहीं मानी जातीं।
गुड़गाँव मज़दूर संघर्ष समिति के अजय ने कहा कि मज़दूर अपनी मेहनत से सबकुछ पैदा करते हैं। इसलिए यह लड़ाई पूरे मज़दूर वर्ग की लड़ाई है। यह तबतक नहीं रुकेगी जबतक हमें हमारे हक़ नहीं मिलते। निर्माण मज़दूर यूनियन नरवाना (हरियाणा) के रमेश ने कहा कि यह सरकार का मज़दूर विरोधी क़दम है। इसका विरोध पुरजोर ढंग से किया जाना चाहिए।
प्रदर्शन में करावल नगर मज़दूर यूनियन की महिला मज़दूरों ने बड़ी संख्या में भागीदारी की और गीत प्रस्तुत किया। इन सारे बदलावों के मद्देनजर मज़दूरों ने प्रदर्शन कर अपना विरोध दर्ज किया और केन्द्रीय श्रम मन्त्री तथा प्रधानमन्त्री को ज्ञापन सौंपा। देश भर से आये मज़दूर संगठनों और छात्र युवा संगठनों के प्रतिनिधियों ने अपनी बात रखी। इनमें उत्तर पश्चिमी दिल्ली मज़दूर यूनियन, स्त्री मज़दूर संगठन दिल्ली, गरम रोला मज़दूर एकता समिति वजीरपुर, गुड़गाँव मज़दूर संघर्ष समिति, करावल नगर मज़दूर यूनियन, श्रीराम पिस्टन एण्ड रिंग्स कामगार यूनियन भिवाड़ी, निर्माण मज़दूर यूनियन नरवाना (हरियाणा), उद्योगनगर मज़दूर यूनियन, मंगोलपुरी मज़दूर यूनियन, दिल्ली मेट्रो रेल ठेका कामगार यूनियन, दिल्ली कामगार यूनियन, दिशा छात्र संगठन, विहान सांस्कृतिक टोली और नौजवान भारत सभा शामिल थे।
मज़दूर बिगुल, सितम्बर 2014
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मज़दूरों के महान नेता लेनिन