दिल्ली इस्पात मज़दूर यूनियन की स्थापना
बिगुल संवाददाता
गरम रोला मज़दूर एकता समिति के नेतृत्व में संगठित हुए मज़दूरों ने अपने संगठन को विस्तारित करते हुए उसे वज़ीरपुर व दिल्ली के अन्य इलाकों के मज़दूरों की यूनियन के रूप में पंजीकृत कराने का फैसला किया है। यह फैसला मज़दूरों ने 27 अगस्त को अपनी आम सभा में ध्वनि मत के जरिये पारित किया व दिल्ली इस्पात मज़दूर यूनियन की स्थापना की।
पिछले 6 जून से वज़ीरपुर औद्योगिक क्षेत्र में गरम रोला मज़दूर एकता समिति के नेतृत्व में चली हड़ताल में सिर्फ गरम रोला के मज़दूर ही नहीं बल्कि ठन्डा रोला, प्रेस, रिक्शा, कटर, पोलिश, तेज़ाब व अन्य फैक्टरियों के मज़दूर भी सक्रिय थे। सही मायने में गरम रोला के मज़दूरों की हड़ताल को वज़ीरपुर के स्टील लाईन के मज़दूरों ने मिलकर लड़ा था। यह हड़ताल पूर्ण रूप में नहीं जीती जा सकी इसका कारण भी इस एकता का स्वतःस्फूर्त खड़ा होना था ना कि सचेतन प्रयास द्वारा खड़ा किया जाना था। 8 घंटे के काम की माँग को असल में सिर्फ़ गरम रोला की फ़ैक्टरियों में लागू करवा पाना लगभग नामुमकिन था परन्तु गरम रोला के जुझारू मज़दूरों ने कई फैक्टरियों में 8 घंटे के काम को 3 महीने तक लागू भी करवाया। यह लड़ाई तो महज़ एक शुरुआत थी जिसने मज़दूरों को लड़ने की एक दिशा दी है। दिल्ली इस्पात मज़दूर यूनियन गरम रोला, ठंडा रोला, प्रेस लाईन, तेज़ाब और स्टील लाईन के सभी मज़दूरों के बीच बनी एकता का ठोस रूप है।
27 अगस्त को हुई आम सभा ने पहले तो ध्वनि मत से यूनियन को जल्द से जल्द पंजीकृत करवाने की सहमति ली। वैसे तो यह बात अपने में ही बड़ी अचरज भरी है कि यूनियन को जल्द से जल्द पंजीकृत करवाने के लिए भी आम सहमति लेनी पड़ी परन्तु यह ज़रूरी था क्योंकि गरम रोला मज़दूर एकता समिति में सदस्य रहे रघुराज ने अन्दरखाने में प्रचार किया था कि यूनियन को अभी पंजीकृत नहीं करना चाहिए। यही दिखाता है कि रघुराज गरम रोला मज़दूर एकता समिति के भीतर मालिकों का दलाल था। वह मालिकों को सिर्फ़ उस हद तक झुकाना चाहता था जिससे कि उसका भी धंधा चलता रहे और मालिक भी परेशान न हों और मज़दूर को थोड़ी बहुत रियायतें मिल जायें। दूसरा तथ्य जिसने यह उजागर किया व रघुराज के असली चरित्र को नंगा किया वह था उसके द्वारा यूनियन का हिसाब न प्रस्तुत करना। लम्बे समय से कमेटी के अन्य सदस्य (सनी, बाबूराम, फिरोज़, अम्बिका, शिवानी व अन्य) जोर देकर कह रहे थे कि यूनियन का हिसाब आम सभा में रखा जाये व हर मज़दूर को यूनियन का हिसाब देखने का अधिकार होना चाहिए मगर रघुराज लम्बे समय से न–नुकुर कर रहा था। धीरे-धीरे यह न–नुकुर “साफ़ नहीं” में बदल गयी थी। इसपर बाबूराम, सनी, अम्बिका, शिवानी व कमेटी के अन्य सदस्यों ने आम सभा बुलाकर फैसला लेने को कहा तो रघुराज ने इंकार कर दिया। परन्तु कमेटी के अन्य सदस्यों ने आम सभा बुलाने का आह्वान किया और जमकर इसका प्रचार भी किया जिससे कि मज़दूरों की आम सभा में यूनियन पंजीकरण व हिसाब सम्बन्धी बात हो सके। हड़ताल के दौरान समिति के सदस्य रघुराज ने ट्रेड यूनियन को पंजीकृत करवाने, यूनियन का हिसाब खुला करने व कमेटी बैठकों द्वारा व आम सभा द्वारा यूनियन के फैसले लिए जाने का पहले दबे व बाद में खुलकर विरोध किया। यूनियन के हिसाब को खुला करने व सहयोग को रघुराज के ट्यूशन छात्र के निजी खाते में जमा करने के प्रश्न पर कमेटी में पहले भी बात हो चुकी थी जिसपर रघुराज टालने वाला रवैया अपनाता रहा। दरअसल किसी भी ट्रेड यूनियन सरीखे व्यापक जन संगठन में रघुराज जैसे ग़द्दारों के घुसने का हमेशा ही खतरा होता है। परन्तु ट्रेड यूनियन जनवाद जहां लागू होता है वहां ऐसे तत्वों का दम घुटने लगता है। जब तक हड़ताल चल रही थी रघुराज ने हड़ताल में प्रत्यक्ष रूप में हड़ताल को तोड़ने की भूमिका नहीं निभायी जिस कारण वह यूनियन में सक्रिय रहा। परन्तु यूनियन पंजीकरण के मुद्दे पर रघुराज ने खुल कर विरोध किया और उसका मज़दूर विरोधी चरित्र नंगा हो गया जिसपर मज़दूरों ने उसे धक्के मारकर अपनी यूनियन से बाहर पफ़ेंक दिया। दरअसल किसी भी ट्रेड यूनियन में जनवाद के जरिये ऐसे तमाम तत्वों की छँटाई हो जाती है और मज़दूर विरोधी तत्वों और मालिकों के एजेंटों को देर सबेर सही मायने में जनवाद लागू कर रही क्रान्तिकारी ट्रेड यूनियन बाहर का रास्ता दिखाती है।
तीसरा तथ्य जो रघुराज के असली चरित्र को उजागर करता है वह यह है कि मज़दूरों द्वारा खदेड़े जाने के बाद रघुराज जब पुलिस थाने में मज़दूरों के ख़िलाफ़ पुलिस केस दर्ज कराने पहुंचा तो कमेटी सदस्यों ने भी तुरंत रघुराज के खि़लाफ़ एक पुलिस शिकायत दर्ज की। शिकायत पर जब पुलिस ने कार्रवाई की तब रघुराज ने सभी पुलिस वालों के हाथ जोड़े और जब वे उसे हवालात में बन्द करने लगे तो वज़ीरपुर का भाजपा नेता सुरेश भारद्वाज, जो फैक्टरी मालिक भी है और कईं फैक्टरी मालिक (बंसल, लीलु) रघुराज को रिहा करवाने पहुँचे। अब यह सुविदित है कि मालिक के आदमी के लिए ही मालिक पुलिस थाने पहुँचते हैं। यही वे तथ्य हैं जो साबित करते हैं की रघुराज मालिको का एजेंट है। कमेटी बैठको में जब तमाम मुद्दों पर सवाल उठे तो रघुराज ने कमेटी बैठक में आने से मना कर दिया और मज़दूरों को आम सभा में आने से मना करने लगा। परन्तु रघुराज की इच्छाओं के विरुद्ध 27 अगस्त को मज़दूरों की भारी संख्या का जुटान हुआ। जुटान की ख़बर मिलते ही रघुराज अपने चेले-चपाटों के साथ सभा को भंग करने राजा पार्क पहुँच गया जिसपर मज़दूरों ने रघुराज और उसके साथ उसके भाई व अन्य लग्गू-भग्गुओं की जमकर पिटाई की व नारेबाज़ी करके राजा पार्क से खदेड़ दिया और अपनी सभा जारी रखी। सभा के अंत में मज़दूरों ने अपनी 11 सदस्य कार्यकारी समिति का चुनाव किया। यूनियन के पंजीकरण के लिए रोज़ कैम्प लगाकर सदस्यता दी जा रही है और यूनियन पंजीकरण की प्रक्रिया शुरू कर दी गयी है।
मज़दूर बिगुल, सितम्बर 2014
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मज़दूरों के महान नेता लेनिन