कारखाना इलाक़ों से
जय भारत मारुती कम्पनी में मज़दूरों के काम के भयंकर हालात!

आनन्द, गुड़गाँव

नील मेंटल प्रोडक्ट लिमिटेड व जय भारत मारुती ग्रुप ये दोनों नाम एक ही मालिक की फैक्ट्री के हैं। यह कम्पनी मोहम्मदपुर गाँव खाण्डसा रोड सेक्टर 37 गुड़गाँव मे स्थित है। यह कम्पनी हीरो, होण्डा, महिन्द्रा, (सुजुकी मोटरसाइकिल) व मारुति सुजुकी आदि दो पहिया व चार पहिया वाहन निर्माता कम्पनियों की वेंडर कम्पनी है। जो कि इन तमाम कम्पनियों के पार्ट पुर्जे बनाती है। यह कम्पनी माल उत्पादकता मे सर्वश्रेष्ठता के कई पुरस्कार पा चुकी है। इसलिए इस कम्पनी को (जे.बी.एम.) जय भारत मारुति ग्रुप भी कहा जाता है। यह कम्पनी माल उत्पादन व अकूत मुनाफा कमाने मे तो सर्वश्रेष्ठ है ही साथ मे मज़दूरों के श्रम की लूट व जबरदस्त शोषण करने में भी सर्वश्रेष्ठ है।

सर्वप्रथम तो यह कम्पनी किसी भी मज़दूर को कम्पनी के तहत नही भर्ती करती है। सड़क से मज़दूरों को पकड़कर काम करवाने के लिए इस कम्पनी ने 12 ठेकेदार रख रखे हैं। जिसके माध्यम से मज़दूरों को भर्ती होना होता है। मशीनों के माध्यम से बहुत ही कठिन व उन्नत टेक्नोलोजी के काम को भी टुकड़ों मे बाँटकर एकदम इतना आसान बना दिया है कि किसी भी मशीन को 10-12 साल का बच्चा भी चला लेगा जैसे-लर्निंग मशीन, सी.एन.सी. मशीन, पंचिग मशीन, ड्रिल मशीन, मिग वेल्ड़िग मशीन, पावर प्रेस मशीन आदि-आदि सभी मशीनें इतनी आसान बना दी हैं। कि उन मशीनों में पीस रखकर सिर्फ एक बटन दबाना होता है।

कम्पनी के अन्दर के नियम व कानून इतने ज्यादा सख्त हैं कि जल्दी कोई मज़दूर उस कम्पनी मे टिकता ही नहीं है। हर मशीन का एक मैक्सिमम (अधिकतम) टारगेट सेट कर रखा है। और उस टारगेट को पूरा करवाने के लिए कम्पनी की तरफ से स्थाई (परमानेण्ट) सुपरवाइज़र हर लाइन में रखा है जो सारी मशीनों की जानकारी रखता है। कम्पनी के सुपरवाइजर के नीचे ठेकेदार का सुपरवाइजर है जिसकी तनख़्वाह भी काफी ऊँची है। मुख्य उत्पादन का दारोमदार इनके कन्धों पर होता है लेकिन यह खुद मेहनत नहीं करते बल्कि मज़दूरों से करवाते हैं और अनुशासन बनाऐ रखने का पूरा काम करते हैं। ठेकेदार का काम है सड़क से पकड़कर मज़दूरों को कार्यस्थल पर पहुँचाना और इसके अलावा ठेकेदार का और कोई काम नहीं, काम कैसे लेना है कितने समय तक रुकना है यह अन्दर सुपरवाइजर तय करेगा। इसके अलावा कम्पनी का नियम यह है, कि अगर 5 मिनट देर से आऐ तो एक घण्टा काट लिया जाएगा, या छुट्टी के समय 2 मिनट पहले कार्ड पंच कर दिया तो आधा घण्टा काट लिया जाऐगा। सण्ड़े को आना अनिवार्य है अगर सण्डे को नहीं आये तो 100 रू काट लिऐ जाऐंगे। ड्यूटी टाइम 12 घण्टे तो रुकना ही है इसके अलावा 4 घण्टे और रुकना पड़ेगा। मतलब 16 घण्टे का कार्यदिवस अगर बहुत जरूरी है तो हफ्ते मे एक-दो बार 12 घण्टे के बाद छुट्टी ले सकते हो अगर हफ्ते मे 2-3 बार 12 घण्टे में छुट्टी कर ली तो गेट के बाहर। कहने के लिए तो ठेकेदार 8 घण्टे के 7500 सौ रु कहकर भर्ती लेता है मगर ज्यादा से ज्यादा 6500 रु से आगे किसी को भी नहीं देता और और उसी मे 14 पर्सेण्ट ई.एस.आई. व पी.एफ., खाना व अन्य तमाम खर्चे काटे जाते हैं। (अगर कोई महीने भर काम करके छोड़ दे तो उसको हरियाणा रेट 5547 रु का हिसाब मिलेगा और ऊपर से 200-300 रु ठेकेदार गुण्ड़ागर्दी के नाम पर जबरदस्ती काट लेता है।)

3-4 दिन अगर काम करके छोड़ दिया तो रु नहीं मिल सकते, भगवान भी नहीं दिला सकता क्योंकि कम्पनी मालिक व ठेकेदारों से भगवान भी डरता है। और मज़दूरों की कोई एकता है नहीं जो संघर्ष के दम पर अपना हक हासिल कर सकें और अकसर 25-30 पर्सेण्ट लड़के 3-4 दिन के बाद नहीं टिक पाते और इन सभी मज़दूरों का जायज हक ठेकेदारों की जेब मे चला जाता है। इन तमाम परिस्थतियों के बावजूद जो मज़दूर काम पर लगे भी रहते हैं उनको एडवाँस व वेतन के लिए ठेकेदारों के पीछे-पीछे कुत्तों की तरह दुम हिलाकर घूमना पड़ता है। जैसे ठेकेदार ने काम पर क्या रख लिया हमको पालतू कुत्ता बना लिया हो।

लम्बे समय से इस कम्पनी में कभी भी कोई यूनियन नहीं बन पायी और न ही बन सकती है क्योंकि कम्पनी के अन्दर मज़दूरों को इतने टुकड़ों मे बाँट रखा है। और अतिउत्पादन की वजह से हर मज़दूर 12 घण्टे मे ही थककर इतना चूर हो जाता है कि वो वापस शाम को काम पर आयेगा इसके अलावा और कुछ सोच ही नहीं सकता ।

और यह दमघोंटू हालात सिर्फ जे.बी.एम. कम्पनी मे ही नहीं हैं, मैने कई कम्पनियों मे काम किया है। व कई मज़दूरों ने जैसा बताया उस हिसाब से लगभग यही परिस्थतियाँ आज गुड़गाँव की अधिकतर कम्पनियों मे है। और ज्यादातर कम्पनियों मे मज़दूरों के संगठन न बन पाने का कारण भी आज कम्पनी मालिकों की यही नीतियाँ हैं। ऐसे समय मे आज हम मज़दूरों को एक नये सिरे से सोचना होगा ओर इलाकाई आधार पर वर्ग एकजुटता बनानी होगी। क्योंकि इलाकाई आधार का संगठन ही आज हम मज़दूरों की माँगों को पूरा करने का एक जरिया है।

मज़दूर बिगुल, अगस्‍त 2014

 


 

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