बावल औद्योगिक क्षेत्र श्रमिक संयुक्त कमेटी ने बुलाया पहला श्रमिक सम्मेलन
बावल क्षेत्र में पिछले 2 माह से अलग-अलग फैक्टरियों के मज़दूर यूनियन बनाने की मांग को लेकर संघर्षरत
बिगुल संवाददाता
बावल (रेवाड़ी) औद्योगिक क्षेत्र में पिछले लम्बे समय से पास्को और मिंडा फुरुकावा कम्पनी के मज़दूर अपनी जायज मांगों को लेकर संघर्षरत हैं। पहली अगस्त को बावल औद्योगिक क्षेत्र श्रमिक संयुक्त कमेटी ने बावल के मज़दूरों के साथ हो रहे शोषण-दमन के खिलाफ गुड़गांव- मानेसर-धारूहेड़ा-बावल के मज़दूरों का सम्मेलन करके ये तय कर दिया है कि बावल के मज़दूर चुपचाप मालिकों-प्रशासन-श्रमविभाग की तानाशाही नहीं बर्दाश्त करेगें। बावल में हुए सम्मेलन में तमाम ट्रेड यूनियनों, मज़दूर संगठनों ने हिस्सा लिया। सम्मेलन की अध्यक्षता एआईएस के महेन्द्र सिंह ने की। मज़दूर सम्मेलन में निम्न प्रस्तावों को पारित किया गया।
1- पास्को आई.डी.पी.सी. में चल रहे विवाद का जल्द से जल्द निपटारा किया जाये व निकाले गए श्रमिकों को कार्य देकर तुरन्त प्रभाव से बहाल किया जाए। 2- मिण्डा फुरुकावा से निकाले गए 145 मज़दूरों को तुरन्त वापस लिया जाए। 3- वाई.के.के. यूनियन प्रधान मनोज कुमार को कार्य पर तुरन्त प्रभाव से बहाल किया जाए। 4- बावल क्षेत्र की सभी कम्पनियों में किसी भी श्रमिक को बिना कारण के नौकरी से नहीं निकाला जाये।
गुड़गांव मज़दूर संघर्ष समिति बावल औद्योगिक क्षेत्र श्रमिक संयुक्त कमेटी द्वारा बुलाये मज़दूर सम्मेलन की सफलता की बधाई देती है। साथ ही पूरे गुड़गांव-मानेसर-धारूहेड़ा- बावल में मज़दूरों की जुझारू एकता के प्रयास को हमें आगे बढ़ाना होगा। हम सभी जानते हैं कि जब तक पूरे आटो सेक्टर के मज़दूरों की सेक्टरगत यूनियन और इलाकाई एकता कायम नहीं होगी तब तक हम अपने संघर्ष को आगे नहीं बढ़ा सकते।
पिछले दिनों मारुति सुज़ुकी में हुए आन्दोलन का अनुभव और इस इलाके में हुए अनेक मज़दूर संघर्षों का अनुभव यही बताता है कि आज मज़दूर अलग-अलग रहकर अपने अधिकारों की हिफ़ाज़त नहीं कर सकते।
मिंडा फुरुकावा इलेक्ट्रिक कम्पनी में एकतरफा तानाशाही के खिलाफ डटे रहे मज़दूर!
रेवाड़ी के बावल औद्योगिक क्षेत्र के सेक्टर-3 में स्थित मिंडा फुरुकावा इलेक्ट्रिक कम्पनी प्रबंधन ने 23 जून को सुबह अचानक 145 मज़दूरों को बर्खास्त कर दिया। जिसमें 14 महिला मज़दूर भी हैं। इसके बाद से मिंडा के मज़दूरों ने गेट पर कम्पनी का चक्का जाम करके अपने संघर्ष की शुरुआत की। असल में मिंडा प्रबंधन पिछले लम्बे समय से मज़दूरों की कायम एकता को तोड़ने के लिए तीन-तिकड़म कर रहा था। मिंडा मज़दूरों ने 2013 अगस्त में प्रंबधन की तानाशाही के खिलाफ अपनी यूनियन बनाने का फैसला किया था। और उसके बाद से मज़दूरों ने तीन बार यूनियन पंजीकरण का आवदेन भी किया, लेकिन हर बार प्रंबधन ने श्रम-विभाग से मिलीभगत करके मिंडा मज़दूरों की यूनियन फाईल रद्द करा दी। फिलहाल मज़दूरों ने 22 अप्रैल को नये सिरे से स्वतंत्र यूनियन की फाईल लगाई है। जिससे प्रबंधन डरा हुआ और इस कारण वह यूनियन के नेतृत्वकारी मज़दूरों को नौकरी से बर्खास्त करके मज़दूरों की एकता तोड़ने का प्रयास कर रहा है। लेकिन इस बार प्रबंधन की एकतरफा कार्रवाई के खिलाफ सिर्फ स्थायी मज़दूर ही संघर्ष नहीं कर रहे बल्कि 400 ठेका मज़दूर और 200 एफटीसी मज़दूर भी कन्धे से कन्धा मिलकर संघर्ष में साथ हैं। मिंडा प्रबंधन ने मज़दूरों को डराने के लिए खुलेआम बांउसर गेट पर बैठा रखे हैं।
पूरे बावल क्षेत्र में पिछले 2 माह से अलग-अलग फैक्टरियों के मज़दूर यूनियन बनाने की मांग को लेकर संघर्ष कर रहे है चाहे वे एहरेस्टी के मज़दूरों हो या पास्को के। इसलिए ये बात साफ है कि आज पूरे गुड़गांव-मानेसर-धारुहेड़ा-बावल में मज़दूरों की कुछ साझा मांग बनाती है जैसे यूनियन बनाने की मांग, ठेका प्रथा खत्म करने की मांग या जबरन ओवरटाईम खत्म करने की मांग। ये सभी हमारी साझा मांगें है इसलिए इनके खिलाफ भी हमें साझा संघर्ष करना होगा क्योंकि हम सभी मज़दूर जानते हैं मालिक-सरकार-पुलिस-प्रशासन गठजोड़ एकजुट होकर मज़दूरों के खिलाफ़ है और इनके खिलाफ़ सिर्फ एक फैक्टरी के आधार पर नहीं जीता जा सकता है बल्कि पूरे आटो सेक्टर या पूरे इलाके के मज़दूरों की फौलादी एकता कायम करके ही मज़दूर विरोधी ताकतों को मुंहतोड़ जवाब दिया जा सकता है। इसलिए हमें अपने फैक्टरी संघर्ष के साथ ही पूरे आटो सेक्टर के मज़दूरों की एकता कायम करने की लम्बी लड़ाई में जुटना होगा।
मिंडा फुरुकावा का इतिहास और मज़दूरों के हालात!
मिंडा फुरुकावा इलेकिट्रक प्रा.लि. में उत्पादन 2008 से हो रहा है। ये मिंडा फुरुकावा आटो कम्पनियों के लिए वायरिंग बनाने का काम करती है। इसकी मुख्य सप्लाई कम्पनी मारुति सुजुकी, निशान, होण्डा है। मौजूदा समय में कम्पनी में लगभग 1000 मज़दूर काम रहे है जिसमें 300 स्थायी मज़दूर हैं 400 ठेका मज़दूर तथा अभी दो माह से 200 मज़दूरों को एफटीसी (फिक्स टर्म कॉण्ट्रैक्ट) के तौर पर भर्ती किया गया है। इन मज़दूरों में 100 से ज्यादा महिला मज़दूर भी हैं। लगभग पांच सालों से काम कर रहे स्थायी मज़दूरों को वेतन के नाम पर 6200 रुपये मिलते हैं जबकि ठेका मज़दूरों को मात्र 5300 रुपये मिलते हैं। मिंडा प्रबंधन पिछले एक साल से जबरन ओवरटाईम करा रहा है जिसमें मज़दूरों से 10-12 घण्टे काम कराना आम बात है।
मज़दूर बिगुल, अगस्त 2014
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