इज़रायली बर्बरता की कहानी – एक डाक्टर की ज़ुबानी
डॉ. मैड्स गिल्बर्ट – एक सच्चा डॉक्टर जिसने ज़ुल्म और अन्याय के ख़िलाफ़ संघर्ष का पक्ष चुना
नवगीत
तीन दिन के युद्धविराम के बाद शुक्रवार (8 अगस्त) को फिर से गाजा पट्टी पर इजराइल द्वारा हमले शुरू हो चुके हैं जिनका सबसे पहला निशाना छत पर खेल रहा एक 10 साल का बच्चा बना। 8 जुलाई से जारी इस बर्बर नरसंहार में अब तक इजराइल 1800 से ऊपर फिलिस्तीनी आम नागरिकों को कत्ल कर चुका है और 10,000 के लगभग लोग घायल हैं। मगर इजरायली जियनवादियों के अपराध यहीं तक नहीं रुक जाते, वो इस से कहीं ज़्यादा अमानवीय स्तर तक गिर चुके हैं। जियनवादी कातिल गिरोह अस्पतालों को भी बमबारी का निशाना बना रहे हैं और अस्पतालों में इलाज के लिए जरूरी सुविधाओं को जानबूझ कर नष्ट कर रहे हैं। फिलिस्तीन के अस्पताल इजरायल द्वारा गाजा पट्टी की गई घेराबन्दी के चलते ताजा हमले से पहले भी बहुत मुश्किल हालतों में काम रहे हैं। दवाओं, सिरिंजों, पट्टियों और मेडिकल साजोसामान की कमी के साथ बिजली, पानी की सप्लाई की कमी का भी सामना कर रहे हैं मगर 8 जुलाई से जारी इजरायली हमले के बाद हालत और खराब हो गई है। मगर दूसरी तरफ ऐसे भी डाक्टर और पैरामेडिकल स्टाफ के लोग हैं जो इन बदतर हालतों में भी घायलों के इलाज के अपने फर्ज से पीछे नहीं हट रहे हैं, और साथ ही इजरायली कुकर्मों के बारे में पूरी दुनिया को अवगत भी करवा रहे हैं। ऐसे ही एक डाक्टर नार्वे के डा. मैड्स गिल्बर्ट हैं जो फिलिस्तीन के सबसे बड़े अस्पताल अल-शिफा अस्पताल में काम कर रहे हैं।
इजरायली हमले में किस तरह से आम लोगों का कत्लेआम किया जा रहा है जिसमें मरने वाले आधे लोग बच्चे तथा औरतें है, डा. गिल्बर्ट उसके चश्मदीद गवाह हैं। न सिर्फ अभी के हमले में ही, डा. गिल्बर्ट 1970 से ही फिलिस्तीनी लोगों पर इजरायल द्वारा किए जा रहे जुल्मों के गवाह हैं। इजरायली बमबारी तथा जमीनी हमले में घायल लोगों में से आधे से ज्यादा लोगों को अल-शिफा अस्पताल में लाया जा रहा है जहाँ पर डा. गिल्बर्ट काम कर रहे हैं। उनके अनुसार, घायलों में ज्यादातर इस कदर तक जख्मी होते हैं कि ऐसे कुछ ही मरीजों को संभालने में अमेरिका के हर आधुनिक सुविधा से लैस बड़े अस्पतालों के भी हाथ-पाँव फूलने लगेंगे। लेकिन अल-शिफा के डाक्टर तथा मेडिकल स्टाफ ऐसे सौ से ज्यादा लोगों को रोज देख रहे हैं और उनका इलाज कर रहे हैं। अस्पताल का स्टाफ 24-24 घण्टे लगातार काम कर रहा है, महीनों से उन्हें कोई तनख़्वाह नहीं मिली है, उनकी आँखें नींद से भारी होती हैं, उनके चेहरे थकावट से पीले पड़े हुए हैं लेकिन घायल लोग लगातार आ रहे हैं जिनके इलाज से वो पीछे नहीं हट सकते। डाक्टरों तथा दूसरे मेडिकल स्टाफ की यह जि़द इजरायली कातिल गिरोहों की आखों में काँच का टुकड़ा बनी हुई है। नतीजतन, अस्पताल, मेडिकल स्टाफ, एंबुलैंस गाडियाँ भी बम्बार-जहाजों तथा टैंकों के निशाने पर हैं। बमबारी से तबाह इमारतों से घायलों को निकालने तथा अस्पताल तक पहुँचाने में लगी मेडिकल टीमों के कई लोग मारे जा चुके हैं और कितने ही खुद घायल हो कर अस्पताल में हैं। इजरायली फौज मेडिकल टीमों को घायलों को बाहर निकालने से रोक रही है और घायलों तक मेडिकल सहायता तक नहीं पहुंचने दे रही है। अल-शिफा अस्पताल के डायरेक्टर डा. नासर के घर को इजरायली जहाजों ने तबाह कर दिया है। अल-शिफा अस्पताल पर लगातार हमले हो रहे हैं, तो दूसरी तरफ गाजा के एक और अस्पताल अल-वफा को इजरायली बमबारी ने पूरी तरह से तबाह कर दिया है। अल-वफा अस्पताल गाजा का एकमात्र ऐसा अस्पताल था जहाँ पर अपने शरीर के अंग खो चुके, अपंग हो चुके मरीजों का इलाज पूरा होने पर उनको फिर से जीवन जीने लायक करने के लिए सुविधाएँ थीं। गाजा के अस्पतालों को बिजली सप्लाई करने वाला प्लांट भी इजरायल ने तबाह कर दिया है और जेनरेटर चलाने के लिए डीजल की भारी किल्लत है। जिन लोगों को इलाज के लिए फिलिस्तीन से बाहर भेजने की जरूरत है, उनके लिए फिलिस्तीन से बाहर निकलने के सारे रास्ते इजरायल तथा मिस्र ने बंद कर रखे हैं। यह जंग के क्रूरतम अपराधों में से एक है। मगर लातिनी अमेरिका के मुल्कों को छोड़कर दुनिया की तमाम सरकारें इन अपराधों पर चुप्प हैं, उल्टा इजरायल का समर्थन भी कर रही हैं।
गाजा पट्टी पर 2009 के इजरायली हमले के बाद डा. गिल्बर्ट ने एक टीवी इंटरव्यू में कहा था कि इतने भयानक घाव और वो भी इतनी बड़ी संख्या में, उन्होंने कभी नहीं देखे जितने उन्होंने गाजा पर इजरायल द्वारा की गई दस दिन की बमबारी के दौरान देखे। स्थिति इस बार उससे भी बुरी है। डा. गिल्बर्ट ने एक ताजा टीवी इंटरव्यू में बताया है कि इजरायली जियनवादी ऐसे बम-गोले इस्तेमाल कर रहे हैं जिनमें भारी धातुओं जैसे टंग्स्टन आदि के टुकड़े लगे रहते हैं। इन टुकड़ों का शिकार होने वाले लोगों के घाव बेहद डरावने होते हैं, ये एक तरह से आदमी के शरीर को चीर देते हैं, ये आदमी की हड्डियों को पूरी तरह से जला देते हैं। इसलिए ऐसे हथियारों का इस्तेमाल जंग के अपराधों में आता है मगर इजरायली हत्यारे लगातार इनका इस्तेमाल कर रहे हैं, और वो इसका इस्तेमाल आम लोगों पर कर रहे हैं। बिलकुल ऐसे अपराध इजरायल के सबसे बड़े समर्थक अमेरिकी साम्राज्यवाद ने वियतनाम में अंजाम दिए थे जब अमेरिकी सेना ने आम वियतनामी लोगों पर नापाम बम गिराए थे। नापाम एक ऐसा ज्वलनशील तरल पदार्थ है जो बम फटने पर जिन लोगों पर गिरता था उनकी चमड़ी से चिपक जाता था और लगातार जलता रहता था जिस कारण आदमी की मौत बेहद भयानक होती थी, और अगर कोई बचता भी था वह जीवन जीने लायक ही नहीं रहता था। असल में दमनकारी ताकतें ऐसे हथियारों का इस्तेमाल करके आम लोगों में भय पैदा करना चाहती हैं और सोचती हैं कि दर्दनाक मौत, भयानक घावों से डरकर लोग अपनी अगुवाई करने वाले संगठन या पार्टी को समर्थन देना बन्द कर देंगे। लेकिन दुनिया में कहीं पर भी ऐसे हथकंडे अपने अधिकारों, अपनी आज़ादी के लिए लड़ रहे लोगों को झुकाने में कामयाब नहीं हुए हैं, उल्टा ऐसे अमानवीय कार्यों से शोषकों के प्रति लोगों की नफरत तथा लड़ने की इच्छा और मजबूत ही होती है। वियतनाम के लोगों ने इजरायल के आका अमेरिका को यही सबक सिखाया था लेकिन शोषक कभी भी सबक नहीं लेते, इसलिए लोग उनको बार-बार पाठ पढ़ाते हैं। फिलिस्तीन में भी इजरायल का हश्र यही होने वाला है। लेकिन इजरायल के ऐसे कुकर्मों के प्रति संयुक्त राष्ट्र की नपुंसक “आलोचना” ने एक बार फिर से इसको बेनकाब किया है। साथ ही, भारत सहित तमाम “लोकतांत्रिक” देशों का किरदार भी समूची दुनियां के सामने जाहिर किया है। भारत की “मोदी सरकार” ने तो संसद में इस मसले पर चर्चा तक नहीं होने दी, वैसे फासिस्टों से और कोई उम्मीद हो भी नहीं सकती।
डा. गिल्बर्ट का फिलिस्तीनी लोगों के मुक्ति-संघर्ष से पुराना नाता रहा है। वे 1970 से फिलिस्तीन तथा लेबनान में काम रहे हैं। वे ऐसे डाक्टर हैं जिनके लिए मानवता की सेवा तथा ज़ुल्म के ख़िलाफ़ संघर्षरत लोगों के साथ होकर लड़ने में मेडिकल विज्ञान की सार्थकता है, जिनके लिए मेडिकल विज्ञान जरूरत से ज़्यादा खाने और कोई काम न करने वाले परजीवियों के मोटापे को कम करने का विज्ञान नहीं है, जिनके लिए मेडिकल विज्ञान का ज्ञान पूँजीपतियों के खोले पांच-सितारा अस्पतालों में बेचने की चीज नहीं है और जिनके मेडिकल विज्ञान का ज्ञान समूची मानवता की धरोहर है न कि मुठ्ठीभर अमीरों के घर की रखैल। वे आज के समय में डा. नार्मन बेथ्यून, डा. कोटनिस, डा. जोशुआ हॉर्न जैसे डाक्टरों की परम्परा को बनाए हुए हैं जिन्होंने वक्त आने पर लोगों का पक्ष चुना था। वे और उनके साथ काम करने अन्य कई डाक्टर तथा कर्मी इस बात का उदाहरण हैं कि आज भी ऐसे डाक्टर मौजूद हैं, भले ही अभी इनकी संख्या कम हो, जो बड़े-बड़े पैकेजों, आरामदायक जीवन को छोड़कर आम लोगों और उनके सुख-दुःख से अपने जीवन को लेते हैं और इस लिए सही मायने में डाक्टर कहलवाने के योग्य हैं।
1970 से फिलिस्तीन तथा लेबनान में काम रहे डा. गिल्बर्ट इस बार भी दुनिया के तमाम लोगों को फिलिस्तीनी लोगों की मदद पर आने का संदेशा जारी करने वाले पहले लोगों में हैं और अन्तरराष्ट्रीय मंचों पर फिलिस्तीनी लोगों का पक्ष रखने वाले तथा इजरायली जियनवादियों के अपराधों की पोल खोलने वाले लोगों में वह हमेशा अगली कतार में रहे हैं। लिहाजा जियनवादियों तथा साम्रज्यवादीयों की चौखट पर माथा रगड़ने वाला मीडिया, इनके टुकड़ों पर पलने वाले बुद्धिजीवी तथा राजनैतिक लोग उनके कट्टर विरोधी हैं। उनके अपने देश नार्वे में ही उनकी “आलोचना” करने वाले कम नहीं हैं। वहाँ की एक नेता सिव जेनसन ने उन्हें “इजरायल के खिलाफ प्रोपेगंडा करने वाला” कहा जिस पर किसी द्वारा कोई सेंसर न लगाने का उसे मलाल है। वैसे यह दिलचस्प है कि सिव जेनसन नार्वे की दक्षिणपंथी पार्टी की नेता हैं, जैसे कि भारत में श्रीमान मोदी जी हैं। ऐसी ही बातें फाक्स न्यूज तथा और कई साम्राज्यवादी मीडिया चैनलों, अखबारों में भी होती ही रहती हैं। इजरायल के लिए तो खैर डा. गिल्बर्ट “सरासर झूठ बोलने वाला” तथा “पागल” व्यक्ति हैं, जो अपनी कल्पना से कहानियाँ गढ़ता है और इजरायल को अफसोस है कि दुनिया भर में मेडिकल कर्मी उसकी बातों पर यकीन करते हैं। डा. गिल्बर्ट इसका एक ही जवाब देते हैं कि इजरायल गाजा की घेराबन्दी उठाकर लोगों को गाजा में आने दे और उन्हें देखने दे कि कौन झूठ बोल रहा है। ऐसा इजरायल कभी नहीं करने वाला, क्योंकि झूठ के पाँव नहीं होते। ऐसे समय में जब फिलिस्तीन के मुद्दे पर अमेरिकी लोकतन्त्र के ध्वजधारक ओबामा की अवाज फटने लगती है, फ्रांस के “समाजवादी” राष्ट्रपति ओलांदे ने फिलिस्तीन के लोगों के पक्ष में प्रदर्शन करने पर रोक लगा दी है, “अच्छे दिनों” की बेसुरी तुरही बजाने वाले मोदी ने भारत की सत्ता पर कब्जा कर लिया है, तो डा. गिल्बर्ट जैसे लोगों की आवाज सुनने तथा उसे ज़्यादा से ज़्यादा लोगों तक लेकर जाने की जरूरत बेहद बढ़ चुकी है। दूसरी तरफ, मेडिकल विज्ञान के क्षेत्र में भी, आज के समय में जब अधिकांश डाक्टर दवा कम्पनियों के कमीशन एजेंट बन चुके हैं और जब ‘हिपोक्रेटस ओथ’ डाक्टरों के लिए एक चोर द्वारा चोरी करने से पहले अपने भगवान का नाम लेने जैसा कुछ बन चुका है, डा. गिल्बर्ट ज़िन्दा जमीर वाले तथा डाक्टर बनने के लिए मेडिकल कालजों में दाखिला लेने वाले नौजवानों के प्रेरणास्रोत हैं। इस के साथ उनका जीवन यह भी दर्शाता है कि एक सच्चा इंसान चाहे वो जीवन के या विज्ञान के किसी क्षेत्र में हो, वह अपने समय में जारी व्यापक जनता के संघर्षों से अलग रहकर नहीं जी सकता, वो अपना पक्ष जरूर चुनता है, और बेशक वह जनता का पक्ष चुनता है।
मज़दूर बिगुल, अगस्त 2014
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