बैक्सटर मेडिसिन कम्पनी में यूनियन बनाने के लिए मज़दूरों का संघर्ष!

गुड़गाँव संवाददाता

Baxter workers struggle-6गुड़गाँव के आईएमटी मानसेर में दवा कम्पनी बैक्सटर मेडिसिन ने 27 मई 2014 को बिना किसी पूर्व सूचना के ‘ए’ शिफ्ट में ड्यूटी पर आये मज़दूरों में से 17 नेतृत्वकारी मज़दूरों को निलम्बन का पत्र पकड़ा दिया। कम्पनी की तानाशाही के खि़लाफ़ मज़दूरों ने संघर्ष का रास्ता चुना और अपने बाहर निकाले गये साथियों की बहाली के लिए एकजुट होकर प्रशासन के दरवाज़े पर दस्तक दी।

बैक्सटर कम्पनी के मज़दूरों के हालात और संघर्ष की शुरुआत

अमेरिका की बैक्सटर मेडिसिन कम्पनी ख़ासकर किडनी की महँगी दवाएँ बनाती हैं। पूरे विश्व में इसकी लगभग 54 शाखाएँ हैं। भारत में गुड़गाँव, मानेसर के अतिरिक्त महाराष्ट्र के औरंगाबाद और चेन्नई में इसके तीन प्लाण्ट हैं।

बैक्सटर लिमिटेड प्लाण्ट नम्बर 183, सेक्टर-5, आईएमटी मानेसर गुड़गाँव में लगभग 302 स्थाई मज़दूर, जिसमें एक तिहाई संख्या महिला मज़दूरों की है, पिछले 11 साल से काम कर रहे हैं। आज भी कुछ मज़दूरों को छोड़कर सबकी तनख़्वाह 8000 रुपये के लगभग ही है। जो मज़दूर साल-छः महीने पहले आये हैं, उनकी तनख़्वाह 5700 रुपये है। इस अन्याय और लूट के खि़लाफ़ मज़दूरों ने यूनियन बनाने का फ़ैसला किया और 3 सितम्बर 2013 को यूनियन रजिस्टेशन के लिए लेबर कोर्ट में फ़ाइल लगाने के बाद ही एक महीने के अन्दर 47 मज़दूरों को (जिसमें 5 महिला मज़दूर भी थी) बिना बताये गेट पर ही रात के 12 बजे ट्रान्सफ़र लेटर पकड़ा दिया गया, बालुज, औरंगाबाद के प्लाण्ट में शिफ्ट होने के लिए। मज़दूरों ने दूसरे प्लाण्ट में जाने से साफ़ मना कर दिया और लेबर कोर्ट में अनफ़ेयर लेबर प्रैक्टिस का केस लड़ा, जिसमें कोई हल नहीं निकला। मजबूरन पहली बार मज़दूरों ने 18 फ़रवरी 2014 को कम्पनी में हड़ताल की। कम्पनी मैनेजमेण्ट को मज़दूरों के आगे झुकना पड़ा और 19 फ़रवरी को समझौता हुआ कि 3 मार्च तक सभी मज़दूरों को काम पर वापस लिया जायेगा।

Baxter workers struggle-3इन 47 मज़दूरों की 6 महीने ज़बरन छुट्टी का इनको कोई मुआवज़ा नहीं दिया। ऊपर से अर्जित अवकाश (ईएल) व बोनस भी काट लिया गया। इसके बाद 21 मई को यूनियन के सक्रिय कार्यकर्ता, कैशियर अशोक को कम्पनी ने सस्पेण्ड कर दिया और साथ में मारपीट भी की। मज़दूरों के विरोध करने पर कम्पनी प्रशासन ने ग्राम पंचायत के लोगों को बुलाया, जिसके बाद गाँव के स्थानीय लोग लाठी-डण्डे लेकर आये और मज़दूरों के साथ धक्का-मुक्की व गाली-गलौच की।

मैनेजमेण्ट के लोग महिला मज़दूरों को ट्रेनिंग के नाम पर होटलों में बुलाते हैं और जो महिला मज़दूर नहीं जाती हैं, उनकी तनख़्वाह काट लेते हैं। अभी पिछले दिनों ही भिवाड़ी में एक होटल बुक करके तीन दिनों के लिए कुछ लड़कों व लड़कियों को ट़ेनिंग के लिए बुलाया। लड़कियों ने सुरक्षा की दृष्टि से या अन्य कारणों से जाने से मना कर दिया तो उनका 3 दिन का वेतन काट लिया गया। मज़दूरों की यूनियन न बन पाये इसलिए 27 तारीख़ को 17 नेतृत्वकारी मज़दूरों को कम्पनी ने निकाल दिया। और मैनेजमैण्ट ने कम्पनी गेट पर यह परचा चिपका दिया कि इन 18 मज़दूरों को छोड़कर जो इस अण्डरटेकिंग फ़ार्म पर साइन करेगा, वह काम कर सकता है। इसमें लिखा है कि मैं अपनी मर्जी से, ख़ुशी से बिना बैर-भाव के काम करूँगा और अगर ग़लती करता हूँ तो कम्पनी मेरे खि़लाफ़ कोई भी ऐक्शन ले सकती है।

प्लाण्ट मैनेजर चेतन ठक्कर और ऑपरेशन मैनेजर विकास सिंह ने कम्पनी मालिक को यह आश्वासन दिया कि आप चिन्ता न करें, हमे 10 दिन का समय दें, हम यह यूनियन का चक्कर ख़त्म करके, नयी भर्ती करेंगे और प्रोडक्शन बढ़ाकर देंगे। अब सड़क से लड़कों को पकड़-पकड़कर भर्ती किया जा रहा है। और पूरे कुशल काम में बेगार करायी जा रही है।

27 मई को 17 मज़दूरों को सस्पेण्ड करने के बाद मज़दूरों ने आन्दोलन का रास्ता चुना। मज़दूर कड़ी धूप में दिनभर गेट पर ही बैठे रहे। 28 मई को वे ए.एल.सी. के पास सोहना चौक गुड़गाँव गये। वहाँ ए.एल.सी. ने पुलिस को बुलाकर सभी 300 मज़दूरों को उठवा दिया। 29 को मज़दूरों ने डी.एल.सी. को ज्ञापन देकर अपनी समस्या बतायी। डी.एल.सी. ने भी लुभावनी बातें करके आश्वासन दिया और मामले की खानापूर्ती की। उसके बाद से सभी महिला व पुरुष मज़दूर कम्पनी गेट पर ही धरना दे रहे हैं। 10 जून को बैक्सटर के मज़दूरों ने अपनी यूनियन का झण्डा फ़ैक्टरी गेट पर लगाया और अपनी एकजुटता का ज़बरदस्त प्रदर्शन किया।

 

मज़दूर बिगुल, जून 2014

 


 

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