आग उगलती गर्मी में भी श्रीराम पिस्टन के मज़दूरों का संघर्ष जारी!

बिगुल संवाददाता

Sriram pistons strikeभिवाड़ी स्थित श्रीराम पिस्टन एण्ड रिंग्स के मज़दूर पिछले 15 अप्रैल से अपनी लम्बी हड़ताल जारी किये हुए है। लगभग 60 दिनों से आग उगलती गर्मी में मज़दूर पहले 10 दिन फ़ैक्टरी के अन्दर डेरा जमाये हुए थे और फिर 26 अप्रैल को कम्पनी में हुए बर्बर लाठीचार्ज के बाद कम्पनी गेट पर बैठे हुए हैं। ज्ञात हो कि इस दमन की कार्रवाई में राजस्थान पुलिस ने 26 नेतृत्वकारी मज़दूरों को ज़बरदस्ती गिरफ़्तार करके उन पर हत्या के प्रयास व अन्य कई गम्भीर धाराएँ लगी दीं। फिर भी मज़दूरों ने बर्बर दमन के खि़लाफ़ अपना संघर्ष जारी रखा।

बिना थके संघर्ष में जुटे रहे मज़दूर!

श्रीराम पिस्टन में काफ़ी मज़दूर दूसरे प्रदेशों (हरियाण, यूपी, बिहार, मध्यप्रदेश आदि) या राजस्थान के दूर के ज़िलों से हैं, जो कम्पनी के आस-पास भिवाड़ी, ख़ुशखेड़ा या धारूहेड़ा में किराये के कमरों में रहते हैं। इसलिए यूनियन द्वारा तय किया गया कि सभी मज़दूर घर नहीं जायेंगे और धरना-स्थल पर जुटे रहेंगे। यूनियन ने हड़ताल स्थल पर ही सामूहिक रसोई का प्रबन्ध किया है, जिसमें मज़दूर टीमें बारी-बारी से भोजन बनाती हैं। साथ ही रोज़ सुबह स्थानीय मज़दूर अपने घरों से भोजन तैयार कर लाते हैं, ताकि संघर्ष कमजोर न पड़े। मज़दूरों की आपसी एकजुटता दिखाती है कि मालिक-सरकार मज़दूर के बीच कितनी ही क्षेत्र, धर्म या भाषा की दीवारें खड़ी करें, लेकिन मज़दूर अपने संघर्ष से सीखते हैं कि उनकी असली ताक़त वर्ग एकजुटता में ही है।

श्रीराम पिस्टन एण्ड रिंग्स कामगार यूनियन की माँगें हैं: 26 गिरफ़्तार मज़दूरों को तुरन्त रिहा किया जाये; मज़दूरों पर दर्ज सभी झूठी एफ़.आई.आर. रद्द की जायें व पूरी घटना की उच्चस्तरीय जाँच करवायी जाये; निकाले गये सभी मज़दूरों को तत्काल काम पर लिया जाये; सामूहिक माँगपत्र की माँगें मानी जाये। साथ ही यूनियन का रजिस्‍ट्रेशन तुरन्त किया जाये व प्रबन्धकों की अप्रत्यक्ष दख़लअन्दाज़ी बन्द की जाये।

लेकिन राजस्थान सरकार और श्रम विभाग मज़दूरों की इन जायज़ माँगों पर अन्धा-गूँगा-बहरा बना हुआ है। श्रीराम पिस्टन मैनेजमेण्ट लगातार मज़दूरों की हड़ताल को तोड़ने की सारी तीन-तिकड़म कर रहा है। पहले कम्पनी ने मज़दूरों को सेवा समाप्ति-पत्र भेजकर डराने की कोशिश की। फिर कम्पनी ने अख़बारों के माध्यम से अपील जारी की कि “श्रीराम पिस्टन एण्ड रिंग्स एक परिवार है, जिसे कुछ बाहरी तत्व तोड़ रहे हैं। इसलिए आप परिवार के मज़दूर वापस काम पर आ जाओ, हम उत्पादन शुरू कर रहे हैं”। कम्पनी द्वारा ऐसी पाँच अपीलें निकली जा चुकी हैं। लेकिन मज़दूर भी जानते हैं कि संघर्ष के इस दौर में बिना यूनियन के मज़दूर वापस काम पर जाते हैं तो उनकी हालात पहले से भी बुरी होगी। वैसे भी 7000-8000 रुपये में मज़दूर कहीं भी काम कर लेंगे, लेकिन सिर झुकाकर कम्पनी में नहीं जायेंगे। श्रीराम पिस्टन मैनेजमेण्ट को आज मज़दूर परिवार का हिस्सा नज़र आ रहे हैं, लेकिन 26 अप्रैल को सुबह 4 बजे जब सोते मज़दूरों पर सैकड़ों बाउंसरों व पुलिस ने लाठियों, चाकुओं, रॉडों से हमला किया था, तब मैनेजमेण्ट को परिवार के मज़दूरों का ख़याल नहीं आया। साफ़ है कि हड़ताल ने मज़दूरों को दिखा दिया कि उनका “उपकारी” मालिक तो भेड़ की खाल ओढ़े भेड़िया है।

श्रम विभाग द्वारा बुलायी गयी बैठकों में भी मैनेजमेण्ट का रुख़ मनमर्जी का रहा। शुरुआती कई बैठकों में यूनियन के प्रतिनिधि मौजूद रहे, लेकिन मैनेजमेण्ट अनुपस्थित रहा। असल बात यह है कि आज देश के शासक वर्ग के लिए कल्याणकारी राज्य की ज़रूरत ख़त्म हो गयी, इसलिए चाहे भाजपा की वसुन्धरा सरकार हो या कांग्रेस की हुड्डा सरकार, सबकी नीति एक है कि कैसे पूँजीपतियों के मुनाफ़े के लिए सारे श्रम-क़ानूनों को ताक पर रख दिया जाये। इसलिए मज़दूरो को भी समझ आ रहा है कि चुनावी नौटंकी में साँपनाथ या नागनाथ बदलने से मज़दूरों के हालात नहीं बदलने वाले।

[stextbox id=”black” caption=”बिगुल मज़दूर दस्ता के अभिनव ने कहा”]

Bigul_abhinavगुड़गाँव-मानेसर-धारूहेड़ा-बावल से लेकर भिवाड़ी और खुशखेड़ा तक के कारख़ानों में लाखों मज़दूर आधुनिक गुलामों की तरह खट रहे हैं। लगभग हर कारख़ाने में अमानवीय वर्कलोड, ज़बरन ओवरटाइम, वेतन में कटौती, ठेकेदारी, यूनियन अधिकार छीने जाने जैसे साझा मुद्दे हैं। हमें यह समझना होगा कि आज अलग-अलग कारख़ाने की लड़ाइयों को जीत पाना मुश्किल है। अभी हाल ही में हुए मारुति सुजुकी आन्दोलन से सबक लेना भी ज़रूरी है जो अपने साहसपूर्ण संघर्ष के बावजूद एक कारख़ाना-केन्द्रित संघर्ष ही रहा। मारुति सुजुकी मज़दूरों द्वारा उठायी गयीं ज़्यादातर माँगें – यूनियन बनाने, ठेका प्रथा ख़त्म करने से लेकर वर्कलोड कम करने – पूरे गुड़गाँव से लेकर बावल तक की औद्योगिक पट्टी के मज़दूरों की थीं। लेकिन फिर भी आन्दोलन समस्त मज़दूरों के साथ सेक्टरगत/इलाक़ाई एकता क़ायम करने में नाकाम रहा और केन्द्रीय ट्रेड यूनियन संघों का पुछल्ला बना रहा। इसलिए हमें समझना होगा कि हम कारख़ानों की चौहद्दियों में क़ैद रहकर अपनी माँगों पर विजय हासिल नहीं कर सकते, क्योंकि हरेक कारख़ाने के मज़दूरों के समक्ष मालिकान, प्रबन्धन, पुलिस और सरकार की संयुक्त ताक़त खड़ी होती है, जिसका मुकाबला मज़दूरों के बीच इलाक़ाई और सेक्टरगत एकता स्थापित करके ही किया जा सकता है, जैसाकि बांगलादेश के टेक्सटाइल मज़दूरों ने कर दिखाया है। गुड़गाँव मज़दूर संघर्ष समिति के अजय ने सभा को सम्बोधित करते हुए कहा कि आज हमें एक ओर सेक्टरगत यूनियनें (जैसेकि समस्त ऑटोमोबाइल मज़दूरों की एक यूनियन, समस्त टेक्सटाइल मज़दूरों की एक यूनियन, आदि) बनानी होंगी जो कि समूचे सेक्टर के मज़दूरों को एक साझे माँगपत्रक पर संगठित करें। वहीं हमें समूचे गुड़गाँव-मानेसर-धारूहेड़ा-बावल-भिड़ावी-खुशखेड़ा इलाके के मज़दूरों की एक इलाकाई मज़दूर यूनियन भी बनानी होगी, जो कि इस इलाके में रहने वाले सभी मज़दूरों की एकता कायम करती हो, चाहे वे किसी भी सेक्टर में काम करते हों। ऐसी यूनियन कारख़ानों के संघर्षों में सहायता करने के अलावा, रिहायश की जगह पर मज़दूरों के नागरिक अधिकारों जैसेकि शिक्षा, पेयजल, चिकित्सा आदि के मुद्दों पर भी संघर्ष करेगी। जब तक सेक्टरगत और इलाक़ाई आधार पर मज़दूरों के ऐसे व्यापक और विशाल संगठन नहीं तैयार होंगे, तब तक उस नग्न तानाशाही का मुकाबला नहीं किया जा सकता है, जोकि राजस्थान व हरियाणा में मज़दूरों के ऊपर थोप दी गयी है।

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10405276_721364474576080_750922591439133072_nगुड़गाँव मज़दूर संघर्ष समिति और बिगुल मज़दूर दस्ता ने श्रीराम पिस्टन के मज़दूरों के समर्थन में नुक्कड़ नाटक व क्रान्तिकारी गीत प्रस्तुत किये। मज़दूरों के जुझारू संघर्ष में गुड़गाँव मज़दूर संघर्ष समिति और बिगुल मज़दूर दस्ता के कार्यकर्ता लगातार हड़ताल स्थल पर डटे रहे। और 18 मई मज़दूर के हौसला बढ़ने के नुक्कड़ नाटक “मशीन” का मंचन किया। जिसमें कारख़ानों में मज़दूर के शोषण और संघर्ष की कहानी है। “साथी” टोली ने यूनियन एकजुटता बनाये रखने के लिए पीटर सीगर के गीत का हिन्दी रूपान्तरण “यूनियन हमारी ताक़त” व अन्य कई गीत प्रस्तुत किये।

 

मज़दूर बिगुल, जून 2014

 


 

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