आपस की बात
किस आम आदमी की दुहाई दे रही हैं राजनीतिक पार्टियाँ!
भारत, सूरजपार्क, बादली, दिल्ली
आज की सुखि़र्यों में एक ऐसी चीज़ ख़ास बनी हुई है, जो आज तक कभी ख़ास नहीं हुई। वो ख़ास चीज़ है ‘आम आदमी’। भाजपा से लेकर कांग्रेस तक, सारी राजनीतिक पार्टियाँ आम आदमी की बात करने में लगी हुई हैं। पर सवाल यह उठता है कि यह ‘आम आदमी’ आखि़र है कौन? यह सबसे बड़ा सवाल है। चुनावबाज़ पार्टियाँ किसे आम आदमी कहती हैं और किस आम आदमी के स्वराज की बात करती हैं? चलिये इसकी जाँच-पड़ताल करते हैं।
आम आदमी से आजकल सबका मतलब है – मध्यवर्ग। अब आप कहेंगे कि इसमें वर्ग कहाँ से आ गये, आम आदमी तो सभी हैं, बस अमीरों को छोड़कर। तो चलिये आप बताइये, क्या आप उसे आम आदमी कहेंगे, जिसके पास अपना एक फ़्लैट है, उसमें एसी लगा है, 60 हज़ार रुपया कमाता है और एक कार ख़रीद रखी है। तो आप कहेंगे – नहीं, उसके पास तो सारी सुख-सुविधाएँ हैं, तो वो आम आदमी कैसे हो सकता है! हाँ, आपने सही बात कही। पर आजकल के समाज में आपको ग़लत ठहराया जायेगा, क्योंकि उस आदमी को भी महँगाई, भ्रष्टाचार से जूझना पड़ रहा है। उसने भी सरकार से उम्मीदें लगा रखी हैं कि सरकार उसके लिए कुछ करेगी, तो देखा जाये तो वो भी आम आदमी है।
फिर आप कहेंगे कि निम्नवर्ग भी तो आम आदमी में आता है। अगर मध्यवर्ग का विकास होगा तो निम्नवर्ग का भी तो विकास होगा। चलिये अब चुनावी पार्टियों की राजनीति के बारे में जानते हैं, जिससे आप भी समझ जायेंगे कि सिर्फ़ मध्यवर्ग ही आम आदमी है, ना कि निम्नवर्ग। और विकास भी मध्यवर्ग और और उच्चवर्ग का ही होता है।
राजधानी की ‘आम आदमी पार्टी’ (आप) का उदाहरण लेते हैं, जिसका घोषणापत्र राजनीतिक क्रान्ति की और आम आदमी के विकास की बात करता है। कांग्रेस और भाजपा की राजनीति तो पूरे देश के सामने नंगी हो चुकी है, इसलिए उनके बारे में बात नही करेंगे।
‘आप’ भ्रष्टाचार मुक्त भारत का नारा देकर सत्ता में आयी और उसके वादों ने राजनीतिक क्रान्ति का सन्देश दिया। ‘आप’ के घोषणापत्र पर थोड़ा नज़र डालते हैं और देखते हैं कि इसमें निम्नवर्ग यानी मज़दूरों व आम मेहनतकश जनता के हित में कितनी बातें हैं और वे भ्रष्टाचार किसे कहते हैं? सबसे पहले ‘आप’ भ्रष्टाचार कहती किसे है? उनके अनुसार – कोई आदमी रिश्वत देता है या लेता है तो वह भ्रष्टाचार है। वो सिर्फ़ रिश्वतखोरी को ही भ्रष्टाचार मानते हैं। ‘आप’ सिर्फ़ इसी भ्रष्टाचार को मिटाने की बात करती है, क्योंकि यही सबसे बड़ा भ्रष्टाचार है, उनके और मध्यवर्ग के अनुसार। अब हम जानते हैं कि सबसे बड़ा भ्रष्टाचार क्या है? एक मज़दूर फ़ैक्टरी में 8-12 घण्टे काम करता है और उसे न्यूनतम मज़दूरी तक नहीं मिलती, उसे फ़ण्ड-बोनस, ईएसआई या अन्य कोई भी सुविधा नहीं मिलती और उसे कभी भी काम से निकाला जा सकता है। क्या ये सबसे बड़ा भ्रष्टाचार नहीं है?
‘आप’ इस भ्रष्टाचार को ख़त्म करने की बात क्यों नहीं करती? वह तो केवल मध्यवर्ग के विकास की बातें करती है। वे सबको 700 लीटर पानी देने का वायदा करते हैं। पर वहाँ जहाँ पानी के मीटर लगे हुए हैं और पानी के मीटर तो सिर्फ़ दिल्ली के 40 फ़ीसदी घरों में ही लगे हैं, वे भी मध्यवर्ग के लोग हैं।
भ्रष्टाचार तो सड़ रहे पेड़ का पत्ता है, अगर पेड़ को सड़ने से बचाना है, तो हमें जड़ से उसे सही करना होगा और जड़ तो पूँजीवाद है। मान लीजिये, अगर भारत से भ्रष्टाचार मिट भी जाये तो उससे जो हर रोज़ 3000 बच्चे कुपोषण से मरते हैं, उनका क्या फ़ायदा होगा? आज़ादी के बाद भी किसान आत्महत्या कर रहे हैं, यह भ्रष्टाचार ख़त्म होने से कैसे रुकेगा? भारत में 30 करोड़ लोग झुग्गी-झोपड़ियों में रहते हैं और 84 करोड़ जनता की बुनियादी ज़रूरतें (रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा, स्वास्थ्य) पूरी नहीं हो पा रही हैं। इन आँकड़ों से आप समझ ही गये होंगे कि ये आँकड़े मध्यवर्ग नहीं, निम्नवर्ग के आँकड़े हैं, जिसके विकास के लिए किसी चुनावबाज़ पार्टी के पास कोई योजना नहीं है।
अगर भ्रष्टाचार मिट भी गया (वैसे जब तक पूँजीवाद ख़त्म नहीं होता, भ्रष्टाचार तो रहेगा ही) तो क्या फ़ायदा। उसका फ़ायदा तो केवल मध्यवर्गीय लोगों को ही होगा जो आम आदमी हैं, उस निम्नवर्ग को नहीं, जो मेहनतकश है।
मज़दूर बिगुल, मार्च-अप्रैल 2014
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मज़दूरों के महान नेता लेनिन