क्या ‘आम आदमी’ पार्टी से मज़दूरों को कुछ मिलेगा ?
(बिगुल मज़दूर दस्ता द्वारा लुधियाना के मजदूरों में वितरित एक पर्चा)
दुनिया के मज़दूरो, एक हो! इंकलाब जि़न्दाबाद!
मज़दूर भाइयो और बहनो,
आज देश में इस नई पार्टी की काफी चर्चा है। टीवी, अखबारों में आज जोर-शोर से इस पार्टी का प्रचार-प्रसार किया जा रहा है। आम आदमी पार्टी भ्रष्टाचार मुक्त खुशहाल देश का सपना दिखा रही है। साधारण लोग भी भ्रष्टाचार विरोधी इस मुहिम को अपनी समस्याओं के हल का रामबाण नुस्खा समझकर समर्थन कर रहे हैं। आने वाले लोकसभा चुनावों में राहुल गांधी और नरेन्द्र मोदी के बराबर अरविन्द केजरीवाल के भी देश का प्रधानमन्त्री बनने का दावेदार होने की बातें हो रही हैं। सबसे अधिक देश का पढ़ा-लिखा तबका इस पार्टी का मजबूत समर्थक बन रहा है। मजदूर वर्ग भी कांग्रेस-भाजपा से लेकर लालझण्डे वाली चुनावी पार्टियों – सीपीएम-सीपीआई के पूंजीवादी चरित्र को पहचान कर बदलाव की आस में आम आदमी पार्टी की ओर उम्मीद भरी नजर से देख रहा है।
लेकिन मुद्दा यह है कि आम आदमी पार्टी से मजदूर वर्ग को क्या हासिल होगा? सबसे पहले हमें यह जानने-समझने की जरूरत है कि आज देश में मजदूरों की समस्याएं क्या हैं। आज बड़े पैमाने पर ठेकेदारी प्रथा का बोलबाला है। जिसके कारण सौ में से 95 मजदूरों का रोजगार सुरक्षित नहीं है। मजदूरों के सिर पर हमेशा काम से छंटनी की तलवार लटकी रहती है। महंगाई के हिसाब से आमदनी नहीं बढ़ती, जिसके कारण घर का खर्च चलाने के लिए मजदूरों को ज्यादा घंटे काम करना पड़ रहा है, ज्यादा उत्पादन देने के लिए ज्यादा तेजी से काम करना पड़ता है और ज्यादा मशीनें चलानी पड़ती हैं। इसके कारण मजदूरों में बेकारी भी बढ़ती है। मजदूरों के लिए इ.एस.आई. के जरिए मुफ्त इलाज की सुविधा नहीं है और सरकारी अस्पतालों में डाक्टरों और दवाइयों की कमी है। कारखानों में आये दिन हादसे होने के कारण मजदूरों का अपाहिज होना और मौत होना आम बात बन चुकी है। मालिक मजदूरों की सुरक्षा की तरफ कोई ध्यान नहीं देता। फैक्टरियों में अन्य श्रम कानून भी लागू नहीं हैं। महंगाई बेहिसाब बढ़ रही है, लेकिन सरकार मजदूरों के लिए सस्ते राशन का कोई प्रबंध नहीं कर रही है। मजदूर इलाकों में मजदूरों के बच्चों के पढ़ने के लिए सरकारी स्कूल न के बराबर हैं। हम मजदूरों को इन सारे मुद्दों पर सोचना चाहिए कि क्या आम आदमी पार्टी मजदूरों की इन सभी समस्याओं के प्रति गम्भीर है या नहीं? दिल्ली में 49 दिनों तक चला इस पार्टी का शासन क्या मजदूरों के लिए कोई सुख का सन्देशा लाया है?
दिल्ली में विधानसभा चुनावों से पहले आम आदमी पार्टी ने मजदूरों से वादा किया था कि ठेकेदारी के तहत काम करने वाले मजदूरों को पक्का किया जाएगा, चाहे वे सरकारी विभागों में हो या प्राइवेट फैक्टरियों में। वादा किया गया था कि मालिकों से श्रम कानूनों का पालन करवाया जाएगा। लेकिन 49 दिनों की सरकार ने मजदूरों के साथ किया एक भी वादा पूरा नहीं किया। दिल्ली मेट्रो में काम करने वाले ठेका मजदूरों ने केजरीवाल के घर पर धरना दिया और उसे ठेकेदारी प्रथा खत्म करने के वादे की याद दिलाई, लेकिन केजरीवाल सरकार ने उनसे कोई बात तक नहीं की। पक्का किया जाने की मांग पर अध्यापकों द्वारा लगाए गए धरने को डण्डे के जोर पर और नौकरी से निकाल देने की धमकी देकर खत्म करवाया गया। 6 फरवरी को दिल्ली के ठेका मजदूरों ने दिल्ली मजदूर यूनियन के बैनर तले हजारों की संख्या में दिल्ली सचिवालय पर धरना दिया । आप सरकार के श्रम मन्त्री ने सरेआम कह दिया कि हमारी सरकार ठेका प्रथा खत्म नहीं कर सकती क्योंकि उसे उद्योगपतियों के हितों का भी ध्यान रखना है। दिलचस्प बात यह है कि इस मन्त्री महोदय का खुद का भी चमड़े का कारखाना है, जिसमें मजदूरों को कोई अधिकार नहीं दिया जाता।
17 फरवरी को भारतीय पूंजीपतियों के राष्ट्रीय संगठन सी.आई.आई. की मीटिंग में केजरीवाल ने असल बात कह ही दी। उसने कहा कि उसकी पार्टी पूंजीपतियों को बिजनेस करने के लिए बेहतर माहौल बनाकर देगी। विभिन्न विभागों के इंस्पेक्टरों द्वारा चेकिंग करके मालिकों को तंग किया जा रहा है, यह इंस्पेक्टर राज खत्म कर दिया जाएगा। उसने तो यह भी कहा कि पूंजीपति तो 24-24 घंटे सख्त मेहनत करते हैं और ईमानदार हैं, लेकिन भ्रष्ट अधिकारी और नेता उन्हें तंग-परेशान करते हैं। पूंजीपतियों की ईमानदारी के बारे में तो सभी मजदूर जानते ही हैं कि वे कितनी ईमानदारी के साथ मजदूरों को तनख्वाहें और पीसरेट देते हैं और कितने श्रम कानून लागू करते हैं। बाकी रही बात श्रम विभाग, इनकम टैक्स, सेल्स टैक्स आदि विभागों द्वारा चेकिंग की, तो अगर कोई चोर नहीं है, तो उसे अपने हिसाब-किताब की जांच करवाने में क्या आपत्ति है। रोजाना अखबारों में खबरें छपती हैं कि पूंजीपति बिना बिल के सामान बेचते हैं और टैक्स चोरी करके सरकारी खजाने को चूना लगाते हैं। कारखानों द्वारा बिजली चोरी की खबरें भी अखबारों में पढ़ने को मिलती हैं। सोचा जा सकता है कि केजरीवाल के ”ईमानदार” पूंजीपति कितने पाक-साफ हैं। उसने यह भी कहा कि सरकार का काम सिर्फ व्यवस्था देखना है, बिजनेस करना तो पूंजीपतियों का काम होना चाहिए यानी रेलें, बसें, स्कूल, अस्पताल, बिजली, पानी आदि से संबंधित सारे सरकारी विभाग पूंजीपतियों के हाथों में होने चाहिए। जैसाकि अब हो भी रहा है, जिन विभागों में पूंजीपतियों ने हाथ डाला है, ठेके पर भर्ती करके मजदूरों की मेहनत को लूटा है और कीमतें बढ़ाकर आम जनता की जेबों पर डाके ही डाले हैं। तेल-गैस और बिजली के दाम बढ़ना इसी के उदाहरण हैं।
मज़दूर साथियो, इन सारी बातों पर गौर करने की जरूरत है कि अगर कथनी और करनी में फर्क है तो असली चरित्र तो करनी से ही तय होगा। इसलिए आम आदमी पार्टी की कारगुजारियों से पता चलता है कि भारतीय पूंजीपतियों को एक “ईमानदार” चेहरे वाली पार्टी मिल गई है, जो भाजपा-कांग्रेस और ऐसी ही अन्य पार्टियों से मोहभंग कर चुकी साधारण दबी-कुचली जनता को भ्रमा कर पूंजीपतियों को मजदूरों-मेहनतकशों के संघर्षों की आग से कुछ समय तक और बचा सकती है। पूंजीपतियों द्वारा मजदूर-मेहनतकश जनता की भयंकर लूट से ध्यान हटाकर सिर्फ नेताओं और सरकारी अधिकारियों के भ्रष्टाचार को सब समस्याओं की जड़ बताया जा रहा है। यह मजदूर वर्ग के साथ धोखा है। हम कहना चाहते हैं कि इन महाभ्रष्ट पूंजीपतियों को पाक-साफ बताकर आम आदमी पार्टी भ्रष्टाचार के खिलाफ आखिर कौन सी लड़ाई लड़ रही है? और इस लड़ाई से मजदूरों- मेहनतकशों को क्या हासिल होगा? जवाब है – कुछ नहीं। असल में पूंजीपतियों के भ्रष्टाचार और सरकारी ढांचे में फैले भ्रष्टाचार, दोनों के खिलाफ एक साथ लड़ाई लड़कर ही मजदूरों-मेहनतकशों की जिन्दगी में बेहतरी आएगी।
साथियो, इतिहास बताता है कि मजदूरों को जब भी कुछ हासिल हुआ है तो सिर्फ जन-संघर्ष के द्वारा ही हासिल हुआ है। इन चुनावी धंधेबाजों के पीछे चलने के बजाय मजदूरों को अपनी वर्गीय ताकत को पहचानना होगा, फैक्टरियों, मोहल्लों से लेकर देश-स्तर के पैमाने पर क्रान्तिकारी जनसंगठन खड़े करने होंगे, जिनके दम पर ही हक-अधिकार हासिल हो सकते हैं। भ्रष्टाचार समेत तमाम सामाजिक बुराइयों के खात्मे के लिए हमें इसी रास्ते पर चलना होगा।
जारीकर्ता – बिगुल मजदूर दस्ता
सम्पर्क – मजदूर पुस्तकालय, राजीव गाँधी कालोनी, फोकल प्वाइण्ट, लुधियाना। फोन नं- 9646150249
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मज़दूरों के महान नेता लेनिन