मज़दूर एकता

कान्ति मोहन

fistsमज़दूर एकता के बल पर हर ताक़त से टकरायेंगे
हर आँधी से हर बिजली से, हर आफ़त से टकरायेंगे!
जितना ही दमन किया तुमने उतना ही शेर हुए हैं हम,
ज़ालिम पंजे से लड़-लड़कर कुछ और दिलेर हुए हैं हम,
चाहे काले क़ानूनों का अम्बार लगाये जाओ तुम
कब जुल्मो-सितम की ताक़त से घबराकर ज़ेर हुए हैं हम,
तुम जितना हमें दबाओगे हम उतना बढ़ते जायेंगे
हर आँधी से हर बिजली से, हर आफ़त से टकरायेंगे!
जब तक मानव द्वारा मानव का लोहू पीना जारी है,
जब तक बदनाम कलण्डर में शोषण का महीना जारी है,
जब तक हत्यारे राजमहल सुख के सपनों में डूबे हैं
जब तक जनता का अधनंगे-अधभूखे जीना जारी है
हम इन्क़लाब के नारे से धरती आकाश गुंजायेंगे
हर आँधी से, हर बिजली से, हर आफ़त से टकरायेंगे!
तुम बीती हुई कहानी हो; अब अगला ज़माना अपना है,
तुम एक भयानक सपना थे, ये भोर सुहाना अपना है
जो कुछ भी दिखायी देता है, जो कुछ भी सुनायी देता है
उसमें से तुम्हारा कुछ भी नहीं वो सारा फ़साना अपना है,
वो दरिया झूम के उट्ठे हैं तिनकों से न टाले जायेंगे,
हर आँधी से, हर बिजली से, हर आफ़त से टकरायेंगे।


 

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