राजस्थान में प्रतियोगी परीक्षाओं के पेपर आउट, बेरोज़गार युवाओं के साथ छलावा
– रवि, जयपुर
राजस्थान में 2018 के विधानसभा चुनाव में युवाओं को नौकरी देने के नाम पर कांग्रेस पार्टी सत्ता में आयी। लेकिन कांग्रेस की अशोक गहलोत सरकार ने आम जनता व युवाओं को छलावे के सिवा कुछ नहीं दिया। पूरे कोरोना काल में राज्य सरकार का कुप्रबन्धन हावी रहा। राजस्थान में पेट्रोल और डीज़ल पर वैट की दर सबसे अधिक है। युवाओं और बेरोज़गारों को उम्मीद थी कि गहलोत सरकार नयी भर्तियाँ निकालेगी व युवाओं को रोज़गार के अवसर उपलब्ध करायेगी। लेकिन गहलोत सरकार ने नाममात्र की जो भी नयी भर्तियाँ निकाली उनमें भी लगभग सभी परीक्षाओं के पेपर लगातार आउट हुए हैं और बड़े पैमाने पर नक़ल हुई है। इनमें जेइन भर्ती, लाइब्रेरियन भर्ती, एस.आई. भर्ती और अभी हाल ही में 26 सितम्बर को 31,000 पदों के लिए आयोजित की गयी रीट भर्ती जिसके नम्बरों के आधार पर थर्ड ग्रेड टीचर की भर्ती की जाती है। रीट भर्ती राजस्थान की अब तक की सबसे बड़ी भर्ती परीक्षा है, जिसमें लगभग 16.50 लाख अभ्यर्थियों ने आवेदन किया था। इसमें नक़ल रोकने के नाम पर अभ्यर्थियों को 500 किमी दूर तक परीक्षा केन्द्र दिये गये व इण्टरनेट को बन्द रखा गया। लेकिन फिर भी रीट परीक्षा का पेपर आउट हो गया। कई सेण्टरों पर ब्लूटूथ से नक़ल होने की ख़बरें आयीं। अधिकांश परीक्षा सेण्टरों पर पेपर की सील पहले से ही टूटी हुई मिली। इस परीक्षा के डेढ़ घण्टे पहले पेपर पुलिस कांस्टेबल के मोबाइल में जवाब के साथ पाया गया। इसके बाद और भी बड़े ख़ुलासे हुए। इस मामले में अब तक सैकड़ों लोगों को एसओजी द्वारा गिरफ़्तार किया गया है और बीस सरकारी अधिकारी व कर्मचारियों को निलम्बित किया गया है। जिसमें एसडीएम., ज़िला शिक्षा अधिकारी व सरकारी शिक्षक शामिल हैं। इसका मास्टर माइण्ड बत्ती लाल मीणा अभी तक फ़रार है। उसके कांग्रेस व भाजपा के नेताओं और मंत्रियों के साथ फ़ोटो वायरल हो रहे हैं। इससे ही यह अनुमान लगाया जा सकता है कि पेपर आउट होने के तार कहाँ से जुड़े हुए हैं।
राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अपने आप को गाँधीवादी और एक उदारवादी की तरह पेश करते हैं। परन्तु उनकी सरकार के नाक के नीचे सरेआम प्रतियोगी परीक्षाओं के पेपर आउट हो रहे हैं। इस वजह से जो छात्र और बेरोज़गार युवा कई सालों से प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं वे अपने आपको ठगा-सा महसूस कर रहे हैं। इनमें से अधिकांश युवा मज़दूरों, मेहनतकशों व निम्न मध्यवर्गीय घरों से आते हैं। दरअसल राजस्थान में पिछले दस सालों से पेपर माफ़िया और नक़ल गिरोह काम कर रहा है। जिनका गठजोड़ उच्च स्तर के अधिकारियों और कांग्रेस व भाजपा के नेताओं से है। इससे निम्न मध्यवर्गीय और ग़रीब किसानों के बेटे-बेटियों का बहुत आर्थिक व मानसिक शोषण होता है। कुछ लोग तो एक परीक्षा की तैयारी तीन साल से कर रहे थे। पेपर आउट और नक़ल होने की घटना सामने आने से बहुत-से लोग अवसाद में आ जाते हैं। कुछ तो आत्महत्या जैसे क़दम भी उठा लेते हैं। काश वे अपना जीवन नष्ट करने की बजाय इस व्यवस्था को नष्ट करने के बारे में सोचते!
आज के निजीकरण के दौर में सरकारी नौकरियाँ बहुत सीमित हैं। जो थोड़ी बहुत सरकारी नौकरियों के लिए भर्तियाँ निकलती भी हैं वह पेपर आउट, नक़ल गिरोह व भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाती हैं। निस्सन्देह आज के समय में बेरोज़गार युवाओं को सरकारी नौकरियों के लिए होने वाली भर्ती परीक्षाओं में पारदर्शिता की माँग करनी चाहिए और निजीकरण का विरोध करना चाहिए। लेकिन लम्बी दूरी में इस जानलेवा पूँजीवादी व्यवस्था को बदलने के बारे में भी सोचना चाहिए।
मज़दूर बिगुल, अक्टूबर 2021
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