“माननीयों” के मुक़दमे साल-दर-साल लम्बित क्यों?
– गीतिका
अभी हाल ही में विधायकों के लम्बित मामलों पर कुछ ख़बरें आयीं। सीबीआई ने विभिन्न लम्बित मामलों और जाँचों के तहत 19 अगस्त को एक स्थिति रिपोर्ट प्रस्तुत की है। जिसमें ख़ास बातें इस प्रकार हैं :
- सांसदों और विधायकों के ख़िलाफ़ सीबीआई के 37 मामले लम्बित हैं। सबसे पुराना लम्बित मामला पटना में है जहाँ 12 जून 2000 को आरोपी के ख़िलाफ़ आरोपपत्र दाख़िल किया गया है।
- प्रवर्तन निदेशालय की स्थिति रिपोर्ट के अनुसार, धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002 के तहत अपराधों से उत्पन्न मामलों में कुल 51 संसद सदस्य, वर्तमान और पूर्व दोनों आरोपी हैं।
- पिछले दो साल से कम वक़्त में लम्बित क्रिमिनल केस में 17 प्रतिशत बढ़ोत्तरी हुई है।
- देश भर में राजनेताओं के ख़िलाफ़ 4,442 अपराधिक मामलों में सुनवाई चल रही है। इनमें से 2,556 मामले मौजूदा सांसदों और विधायकों के ख़िलाफ़ लम्बित हैं।
सुप्रीम कोर्ट को सभी हाईकोर्ट द्वारा मुहैया कराये गये आँकड़ों से यह ख़ुलासा हुआ।
सुप्रीम कोर्ट को बताया गया कि 122 सासंद और विधायक मनी लॉण्ड्रिंग के मामले में आरोपी हैं और ईडी उनके ख़िलाफ़ जाँच कर रही है।
वहीं 121 अन्य के ख़िलाफ़ सीबीआई ने मामला दर्ज किया है। सांसदों के ख़िलाफ़ धनशोधन रोकथाम क़ानून के तहत दर्ज मामलों में से 28 मामलों में जाँच लम्बित है और 10 मामले निचली अदालतों में आरोप तय किये जाने के चरण में हैं।
शीर्ष अदालत को यह भी बताया गया कि 2013 के मुज़फ़्फ़रनगर दंगों से सम्बन्धित 77 मामले उत्तर प्रदेश सरकार ने दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 321 के तहत वापस ले लिये और इसका कोई कारण नहीं बताया। इन वापस लिये केसों में कुछ केस उम्र क़ैद की सज़ा के प्रावधान वाले थे।
आख़िर क्या वजह है कि जेलें बेगुनाहों से भरी हैं और अपराधी बरी हैं। वजह यह है कि न्याय-क़ानून व्यवस्था आदि आम तौर पर केवल मज़दूरों-मेहनतकशों के लिए होते हैं। कहने के लिए पूँजीवादी जनवाद क़ानून के समक्ष स्वतंत्रता की बात करता है। लेकिन वास्तव में, इनका असली मक़सद अमीरों और उनकी सम्पत्ति की सुरक्षा होती है। जहाँ अमीर ही अमीरों के ख़िलाफ़ अपराध करते हैं, वहीं पर हमें अमीरों की सज़ाओं के कुछ उदाहरण मिलते हैं। लेकिन जहाँ निशाने पर ग़रीब मेहनतकश जनता होती है, वहाँ हमें अमीरों को सज़ा के उदाहरण बिरले ही देखने को मिलते हैं। लेकिन अगर कभी कोई ग़रीब-मेहनतकश आवाज़ उठाता है या वे मिलकर आन्दोलन या हड़ताल करते हैं, तो समूचा पुलिस महकमा, न्यायपालिका और नौकरशाही चाक-चौबन्द होकर “क़ानून” करने को हाज़िर हो जाती है। यह इस समूची पूँजीवादी व्यवस्था और उसके क़ानूनी तंत्र की असलियत को उजागर करता है।
क्रान्तिकारी जर्मन कवि व नाटककार ब्रेष्ट की एक कविता ‘वो सबकुछ करने को तैयार’, की पंक्तियाँ हैं :
क़ानूनी किताबें उनकी….
जज और जेलर तक उनके…
सभी अफ़सर उनके…
पूँजीवादी दौर में सत्ता का चरित्र वास्तव में पूँजीपति वर्ग की तानाशाही का ही होता है। यह संसदीय जनवाद और पूँजीवादी चुनावों की चादर में लिपटा होता है। पूँजीपति वर्ग की कोई पार्टी ज़्यादा दमनकारी रवैया रखती है, तो कोई थोड़ा उदार होने का दिखावा करती है, यानी थोड़ी लीपापोती करती है। अपने देश में आजकल भाजपा के नेतृत्व में एक फ़ासीवादी सरकार का शासन है जो मज़दूरों-मेहनतकशों के ख़िलाफ़ खुले दमन के तौर-तरीक़ों का इस्तेमाल करती है।
जब तक वर्ग क़ायम हैं, क़ानून सत्ता द्वारा अपने वर्ग हित को साधने और विरोधी वर्ग को क़ाबू में रखने के लिए ही इस्तेमाल किया जायेगा। कोई ईमानदार आदमी व्यवस्था में घुसकर व्यवस्था को बदल नहीं सकता। आप जस्टिस लोया की हत्या भूले नहीं होंगे। इसी तरीक़े से 28 जुलाई को एडिशनल डिस्ट्रिक्ट जज उत्तम आनन्द की बिहार के धनबाद में हत्या कर दी गयी। वह झरिया के एम.एल.ए. संजीव सिंह के क़रीबी रणंजय सिंह के केस की सुनवाई कर रहे थे। सी.सी.टी.वी. फ़ुटेज में साफ़ दिख रहा है कि ऑटो जज को जानबूझकर टक्कर मार रहा है। ऑटो चालक ने अपना गुनाह भी क़बूल कर लिया था मगर 27 अगस्त को सीबीआई ने हाईकोर्ट को जो रिपोर्ट सौंपी है उसके बारे में चीफ़ जस्टिस डॉ. रवि रंजन और जस्टिस सुजीत नारायण प्रसाद की अदालत ने कहा कि रिपोर्ट में जज के ख़िलाफ़ कोई षड्यंत्र या टक्कर मारने के उद्देश्य का कोई ज़िक्र नहीं है।
क्या अभी भी आपको लगता है कि न्यायपालिका का पूँजीवादी व्यवस्था से स्वतंत्र अपना कोई अस्तित्व है? अगर कुछ केसों में कभी-कभी जनता के पक्ष में न्याय दे दिया जाता है तो सिर्फ़ इसलिए कि आम जनता का पूँजीवादी व्यवस्था से मोहभंग न हो। पर ये अपवाद केवल नियम को सही साबित करते हैं और नियम यह है कि पूँजीवाद में न्याय तक पहुँच केवल पूँजीपति वर्ग और उसकी चाकरी करने वाले खाते-पीते मध्यवर्ग की है। मज़दूर वर्ग और आम मेहनतकश आबादी के लिए इसका तानाशाही वाला चरित्र एकदम साफ़ होता है।
मज़दूर बिगुल, अक्टूबर 2021
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मज़दूरों के महान नेता लेनिन