केजरीवाल की हिन्दुत्व व राष्ट्रवाद की राजनीति
– भारत
बीते दिनों आम आदमी पार्टी ने उत्तर प्रदेश में आगामी विधानसभा चुनाव के मद्देनज़र रैली का आयोजन किया। रैली की शुरुआत अयोध्या से की गयी, जहाँ राम मन्दिर बनने वाला है। रैली में आम आदमी पार्टी के नेताओं ने स्पष्ट किया कि यूपी में असल में रामराज्य सिर्फ़ आम आदमी की सरकार ही ला सकती है। मनीष सिसोदिया, संजय सिंह ने कहा कि आम आदमी पार्टी ही सही मायने में ‘सच्चे राष्ट्रवाद’ की वाहक है, भाजपा नहीं!
असल में यही आम आदमी पार्टी (आप) की सच्चाई है और उनकी वैचारिक परिणति भी यही है। ‘मज़दूर बिगुल’ में हमने बहुत पहले ही इस सम्भावना की ओर इशारा किया था कि केजरीवाल की राजनीति दक्षिणपन्थी लोकरंजकतावादी राजनीति है, जिसमें हिन्दुत्व की राजनीति से गलबँहियाँ करने की पूरी सम्भावना है। तब तमाम संशोधनवादी पार्टियाँ और यहाँ तक कि कुछ कम्युनिस्ट पार्टियाँ भी केजरीवाल परिघटना के गुण गा रही थीं। आज केजरीवाल छोटा मोदी बनने के प्रयास में आर.एस.एस. का कच्छा पहन चुका है। जहाँ एक तरफ़ योगी उत्तर प्रदेश को रामराज्य बना ही रहा है, वहीं ‘आप’ भी उत्तर प्रदेश में रामराज्य लाना चाहती है। उत्तराखण्ड को हिन्दुओं की पुण्यभूमि बनाने की बात भी इन्होंने कही। इसी रामराज्य की बानगी सीएए-एनआरसी के आन्दोलन में देखने को मिली जब सच्चा राष्ट्रवाद दिखाते हुए केजरीवाल ने कहा कि दिल्ली पुलिस हमारे कण्ट्रोल में हो तो एक घण्टे में शाहीन बाग़ को ख़ाली करा देंगे। इसके साथ ही पूरे सीएए- एनआरसी आन्दोलन से लेकर उमर ख़ालिद और अन्य राजनैतिक कार्यकर्ताओं की गिरफ़्तारी में इन्होंने भाजपा का समर्थन ही किया। दिल्ली दंगों में भी ये किस प्रकार ‘शान्ति’ क़ायम कर रहे थे यह भी सबके सामने है।
आम आदमी पार्टी का ‘सही-सच्चा राष्ट्रवाद’ उस समय भी दिखा था, जब कश्मीर से धारा 370 हटायी गयी थी। केजरीवाल और उसके सभी सांसदों ने भाजपा द्वारा लाये इस जनविरोधी फ़ैसले का स्वागत किया। केजरीवाल ने कहा था कि उम्मीद है इससे कश्मीर में जल्दी विकास होगा। आम आदमी पार्टी के लिए कश्मीर की जनता का दमन सही राष्ट्रवाद है और विकास का प्रतीक है।
इसके अलावा राम मन्दिर के मुद्दे पर भी केजरीवाल हिन्दुत्व का राग अलापते हुए भाजपा के सुर में सुर मिला रहा था। राम मन्दिर ट्रस्ट घोटाले में भाजपा का विरोध करने की नौटंकी करते हुए इनके नेताओं ने कहा कि भाजपा 115 करोड़ हिन्दुओं की आस्था को चोट पहुँचा रही है। यानी अब आम आदमी पार्टी “हिन्दुओं की तारणहार” बनने का भी दम भरने लगी है। यही दर्शाते हुए आम आदमी पार्टी राम दर्शन, तिरंगा यात्रा से चुनाव में उतर रही है।
‘आम आदमी-आम आदमी’ की रट लगाने, ‘सदाचार और ईमानदारी’ का ढोल बजाने के बावजूद इस पार्टी की विचारधारा और राजनीति विशेष तौर पर छोटे और मँझोले लेकिन साथ ही बड़े पूँजीपतियों, मालिकों, ठेकेदारों, दलालों, बिचौलियों, दुकानदारों और व्यापारियों की सेवा करती है।
तथाकथित प्रगतिशील और उदारवादी तबक़े का एक हिस्सा भी आम आदमी पार्टी को भाजपा के विरोध के लिए ज़रूरी मानता है। इसी कारण दिल्ली के विधानसभा चुनाव में भी इन प्रगतिशीलों ने आम आदमी पार्टी का समर्थन किया था, ताकि भाजपा को हराया जा सके। सत्ता में आये केजरीवाल को छः साल हो गये हैं। तमाम हवा-हवाई दावों के बावजूद दिल्ली के मज़दूरों-मेहनतकशों के हालात बद से बदतर बने हुए हैं। कारख़ानों में श्रम क़ानून लागू नहीं होते, आये-दिन फ़ैक्टरियों में आग लगने से मज़दूरों की मौतें होती हैं। झुग्गियों में रहने वाली दिल्ली की बड़ी आबादी बुनियादी सुविधाओं के अभाव में जी रही है। मज़दूर आन्दोलनों का दमन करने में केजरीवाल भी भाजपा से कम नहीं है। यह पार्टी किस तरह भाजपा की विचारधारा को खाद-पानी डाल रही है, यह इसी से पता चलता है कि कपिल मिश्रा जैसे दंगाई भी इसी पार्टी से निकले हैं।
इसीलिए आज ज़रूरत है भाजपा-कांग्रेस से लेकर आम आदमी पार्टी जैसी पूँजीपति वर्ग की सभी पार्टियों के ख़िलाफ़ अपनी वर्गीय एकजुटता क़ायम कर मज़दूरों-मेहनतकशों की क्रान्तिकारी पार्टी खड़ी करें, जिसका अन्तिम लक्ष्य मज़दूरों का अधिनायकत्व स्थापित करना हो। विशेष तौर पर, मज़दूर वर्ग को यह समझ लेना चाहिए कि हिन्दुत्व की फ़ासीवादी राजनीति और धार्मिक कट्टरपन्थी राजनीति हमारे लिए सबसे ज़्यादा ज़हरीली है, यह हमें और हमारी वर्ग एकजुटता को भीतर से तोड़ देने और हमें पूँजीपतियों का ग़ुलाम बनाने का काम करती है। किसी भी क़ीमत पर हमें धार्मिक उन्माद में नहीं बहना चाहिए और समझना चाहिए कि असल में हमारी एक ही जमात है: मज़दूर वर्गीय जमात; और इसलिए हमारे साझा हित हैं, चाहे हममें से किसी की कोई भी धार्मिक आस्था हो या कोई भी न हो। शासक वर्ग में पहले ही इस तरह की एकता है। इसीलिए पूँजीपति वर्ग के चाहे हिन्दू नुमाइन्दे हों या फिर मुसलमान नुमाइन्दे, वे एक दूसरे की होली-दिवाली और इफ़्तार पार्टी में जाते हैं, एक-दूसरे से रोटी-बेटी के रिश्ते भी अक्सर बनाते हैं, लेकिन हमें बताते हैं कि हम आपस में सिर फोड़ लें। केजरीवाल और आम आदमी पार्टी भी यही राजनीति कर रही है। ये आस्तीन के साँप हैं, जिनसे मज़दूरों को बिल्कुल सावधान रहना चाहिए।
मज़दूर बिगुल, अक्टूबर 2021
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मज़दूरों के महान नेता लेनिन