एक मज़दूर परिवार की एक सुबह
– भारत
टिमटिमाती आँखें, सर पर हल्के-हल्के बाल, अपने पैरों को घसीटते हुए बच्चा खड़ा होने की कोशिश कर रहा था। बच्चे ने हरे रंग का कच्छा पहना था और हरी धारीदार टी-शर्ट। उम्र मुश्किल से एक वर्ष होगी। अचानक उसके चेहरे पर हल्की मुस्कान आयी, जैसे उसने कोई नयी तरकीब सोची हो और वह घुटनों के बल आगे बढ़ने लगा। बच्चे की आँखें देखकर पता चल रहा था कि वह अभी थोड़ी देर पहले ही रोकर चुप हुआ है।
आस-पास उससे बड़े तीन बच्चे भी थे। इस समय वही इसके अभिभावक थे। साँवला चेहरा, लम्बे बाल, दुबला शरीर, आँखों में ढेर-सा काजल लगाये आठ साल की एक लड़की घर के दरवाज़े पर बैठी थी। उसकी एक बग़ल में उसके जितना ही लड़का था, जिसकी नाक बार-बार बह रही थी और मैली आस्तीन से वह उसे पोंछ रहा था। उसका मुँह हमेशा खुला रहता था। तीसरी लड़की इन पतले-दुबले बच्चों में थोड़ी बलिष्ठ थी और उसने बालों को दो हिस्से में बाँटकर चुटिया बनायी हुई थी। घर के दरवाज़े की सीढ़ियों पर बैठे तीनों के चेहरे बिल्कुल शान्त थे, जैसे अभी कोई गम्भीर बातचीत ख़त्म करके बैठे हों।
उनके घर के बाहर पतली-सी गली में दोनों तरफ़ नालियाँ भरी पड़ी थीं। गन्दा पानी गली में बह रहा था और बदबू फैली हुई थी। कुछ देर पहले तीनों बच्चे वहीं पकड़म-पकड़ाई खेल रहे थे कि दो चुटिया वाली लड़की की चप्पल टूट गयी और पूरे पैर में कीचड़ लग गया। पैर तो उसने धो लिये पर टूटी चप्पल का क्या करें, ये उनकी समझ नहीं आ रहा था। इसलिए सब शान्त बैठे थे और डरे हुए थे कि शाम को जब माँ लौटेगी तो पिटाई करेगी। इसी चक्कर में वे छोटू को सँभालने की अपनी ज़िम्मेदारी भूल गये और बच्चे ने अपना कच्छा गीला कर दिया। पतली-दुबली लड़की रानी उठी और उसका गीला कपड़ा बदलने के लिए उसे उठाकर कमरे में ले गयी। सोनू और रोशनी, जिसकी चप्पल टूटी थी, का भी ध्यान भटक गया और वह दोनों भी अपनी दोस्त रानी के कमरे में टीवी देखने चले गये।
*
सुबह-सुबह पिंकी हड़बड़ी में उठी क्योंकि उसे देर हो गयी थी। सुबह के आठ बजने वाले थे और अभी तक उसने खाना भी नहीं बनाया था। पिंकी का चेहरा हल्का पीला नज़र आ रहा था, आँखों के नीचे काले घेरे पड़ने लगे थे। पिछले कई दिनों से ठीक से आराम न मिलने की थकान दुबले शरीर और चेहरे पर साफ़ झलक रही थी और अब पूरे दिन तो आराम नहीं मिलने वाला था।
पिंकी को एक पल के लिए यह भी ख़्याल आया कि अभी खाना नहीं बनाये, तो थोड़ा आराम कर सकती है, पर फ़ौरन यह बात दिमाग़ में कौंध गयी कि अगर खाना नहीं बनाया तो छोटू और रानी को दोपहर का खाना नहीं मिल पायेगा और उसे और उसके उसके पति रामलाल को भी बाहर ही खाना पड़ेगा। कुल जमा-जोड़ करके एक सौ तीस के क़रीब ख़र्चा हो जायेगा। सबकुछ तो महँगा ही होता जा रहा है। अभी तो कमरे का किराया भी देना था और कमेटी भी भरनी थी। पिंकी आह भरकर घुटनों पर हाथ रखकर उठी और खाना बनाने में लग गयी।
उसने आटा गूँथा और तवे पर रोटियाँ सेंकने लगी। एक बर्नर वाले चूल्हे की पाइप छोटे पाँच किलो के सिलेण्डर से जुड़ी थी। बारह गज के प्लॉट पर बने घर में एक तरफ़ छोटे से खाट पर रामलाल सो रहा था। क़द-काठी में लम्बा रामलाल इस समय बिल्कुल सिकुड़ के सो रहा था। उसका मुँह बार-बार खुल जा रहा था। उसके शरीर पर बैठी मक्खियों और उसी कमरे में खाना बनने से हो रही गर्मी के कारण वह न तो सो पा रहा था और न ही थकान के कारण जाग पा रहा था। ऊबड़-खाबड़ फ़र्श पर चटाई बिछी थी, जिस पर रानी और छोटू सो रहे थे। इस उमस और गर्मी के कारण उनकी भी नींद उचटने लगी। तभी पिंकी ने आवाज़ दी, “रानी के पापा उठ जाओ! रनिया तू भी उठ जा! जाकर पानी भर ला।”
ऊँघते हुए रामलाल ने पूछा, “टैम क्या हो गया है?”
रोटी बेलते हुए पिंकी बोली, “8:30 हो गये हैं! आधा घण्टा ही बचा है, अभी खाना भी खाना है, नहाना भी है। जल्दी करो, उठ जाओ! अगर आज भी लेट हो गये तो आधी दिहाड़ी ही मिलेगी। कल वह हरामी सुपरवाइज़र बोला था न कि जो लेट आयेगा उसकी ग़लती है, आधे दिन का पैसा नहीं मिलेगा।”
जैसे ही रामलाल ने यह बात सुनी, वह एकदम फुर्ती में आ गया और नहाने के लिए दौड़ा। रोटी बन चुकी थी और पिंकी ने कढ़ाई में सब्ज़ी चढ़ा दी थी, सब्ज़ी ढँक कर पिंकी भी नहाने की तैयारी करने लगी।
नौ बजने में पन्द्रह मिनट बचे थे। रामलाल नहा-धोकर आ गया, कपड़े पहनकर, तैयार हो गया और रोटी नमक के साथ खाने लगा। रानी भी उठ गयी थी और आँखें पोंछते हुए दस लीटर की बाल्टी लिये पानी लेने बाहर चली गयी थी। कमरे के बाहर बरामदा था, जिसमें थोड़ी खुली जगह थी, उसके तीनों किनारों पर किराये के कमरे बने हुए थे और एक साइड पर शौचालय। गेट के बग़ल में ऊपर के कमरों में जाने के लिए सीढ़ियाँ थीं। उसी बरामदे की थोड़ी खुली जगह के बीच में एक नल लगा था, जिसमें सुबह और शाम पानी आता था। सोनू और रोशनी भी रानी जैसी हालत में ही पानी भरने आये हुए थे। एक छोटू ही था जो कोई काम नहीं कर सकता था, इसलिए वह सो रहा था।
पिंकी भी फटाफट नहाकर आ गयी, पर अब खाना खाने का समय नहीं बचा था। उसने तुरन्त अपनी और रामलाल की रोटी बाँध ली और उसे काले कपड़े के चौकोर झोले में डाल लिया। रामलाल भी दो रोटी खाकर तैयार हो चुका था। रामलाल ने पिंकी को टोका, “खाना क्यों नहीं खा रही हो? खाओगी नहीं तो काम कैसे करोगी लंच तक?”
कंघी करते हुए पिंकी ने जवाब दिया, “कोई बात नहीं, दस बजे कम्पनी में चाय आयेगी, तब चाय के साथ दो रोटी खा लूँगी। नाश्ते की रोटी भी मैंने डाल ली है।” रामलाल आश्वस्त हो गया और चप्पल पहनकर कमरे से बाहर निकल गया।
पूरे नौ बज गये थे। आधी बाल्टी पानी लेकर रानी वापस आ गयी थी। पिंकी ने रानी को बताया, “पानी और भी भर लियो, अगर पानी आये तो बड़े ड्रम में भी डाल दियो और छोटू को भी खिला दियो। समझ गयी ना!!” यह बात रानी रोज़ सुनने की आदी हो गयी थी और इसलिए अनमने ढंग से उसने कहा, “हाँ मम्मी भर लूँगी, मैं खिला दूँगी।” चप्पल पहनकर जैसे ही पिंकी निकलने वाली थी, तभी छोटू उठ गया और रोना शुरू कर दिया। जैसे उसे आहट हो गयी हो कि माँ जा रही है। तुरन्त रानी भागी, छोटू को गोद में उठाया और चुप कराने लगी। पिंकी एकदम रुक गयी और रानी को बोली, “छोटू को चुप करा दे, मैं जा रही हूँ।” पर मन ही मन वह बेचैन हो रही थी और सोच रही थी कि छोटू को पहले चुप करा दे। पीछे से पतली-सी आवाज़ ने चिल्लाकर कहा, “जल्दी चलो लेट हो रहा है!” छोटू रोये जा रहा था, उसकी आँखों में आँसू भर-भर गिर रहे थे। रानी उसे चुप नहीं करा पायी और हार मानकर माँ को पकड़ाने लगी। काले झोले को नीचे रखते हुए पिंकी ने छोटू को गोद में लिया और उसे दूध पिलाने लगी। कुछ ही मिनट में छोटू शान्त हो गया और पिंकी ने उसे अपनी बेटी को थमा दिया। उसने झट से झोला उठाया और भागकर कमरे के बाहर चली गयी, जहाँ उसका पति इन्तज़ार कर रहा था। दोनों भागते-भागते बरामदा लाँघकर लॉज से बाहर निकल गये।
माँ-बाप के जाने के बाद रानी ने रोज़ की तरह ही घर की साफ़-सफ़ाई करना शुरू किया। सबसे पहले उसने खाट पर से बिस्तर उठाकर अपने नन्हे-नन्हे हाथों से उसे गेट पर झाड़ा, फिर उसी तरह फैलाकर बिछा दिया। फिर नीचे लेटे छोटू को जो अभी नींद में था, खाट पर लिटा दिया। छोटू की थोड़ी-सी नींद खुली फिर फ़र्श के मुक़ाबले आरामदेह जगह पाकर वह सो गया। उसके बाद रानी खाट के नीचे से झाड़ू उठाकर कमरे में लगाने लगी। चूल्हे पर से बिखरा आटा हटाया, नमक के डिब्बे को सिलेण्डर के बग़ल में खड़ा किया और उसके बग़ल में मसाले के डिब्बे व तेल को रखा। खाट के बग़ल में रखी अटैची पर से धूल हटायी। ऊपर दीवार में लगी पत्थर की पटिया पर टीवी रखा हुआ था। रानी ने खाट पर चढ़कर टीवी से भी धूल साफ़ की और सारा कूड़ा निकालकर बाहर कर दिया।
इतना काम करने के बाद रानी कमरे से बाहर निकली और वहीं उसे सोनू और रोशनी मिल गये। सोनू पहले पास के सरकारी स्कूल में जाता था लेकिन लॉकडाउन के कारण स्कूल बन्द थे। रानी और रोशनी तो पहले भी स्कूल नहीं जाती थीं क्योंकि फिर घर में छोटे बच्चे का ध्यान कौन रखता? रानी ने छोटू को उठाया और तीनों पहुँच गये घर के गेट पर खेलने। उनके माँ-बाप फ़ैक्टरी से रात नौ बजे के पहले नहीं लौटने वाले थे। लौटने के बाद थकी-हारी पिंकी किसी तरह खाना बनाती, खाना बनाते-खाते वे थीड़ी देर टीवी देखते और फिर सब थककर सो जाते – अभाव, थकान और काम के बोझ से भरे एक और दिन की शुरुआत करने के लिए।
मज़दूर बिगुल, जुलाई 2021
‘मज़दूर बिगुल’ की सदस्यता लें!
वार्षिक सदस्यता - 125 रुपये
पाँच वर्ष की सदस्यता - 625 रुपये
आजीवन सदस्यता - 3000 रुपये
आर्थिक सहयोग भी करें!
बुर्जुआ अख़बार पूँजी की विशाल राशियों के दम पर चलते हैं। मज़दूरों के अख़बार ख़ुद मज़दूरों द्वारा इकट्ठा किये गये पैसे से चलते हैं।
मज़दूरों के महान नेता लेनिन