देश के अनेक राज्यों में जारी ‘जन स्वास्थ्य अधिकार मुहिम’ का आह्वान
स्वास्थ्य के अधिकार के बिना जीने का अधिकार बेमानी है! जागो, एकजुट हो, आवाज़ उठाओ!

कहते हैं कि जब रोम जल रहा था तब वहाँ का राजा नीरो बाँसुरी बजा रहा था। भविष्य में हमारे देश के बारे में कहा जायेगा कि जब भारत कोरोना महामारी की आग में जल रहा था तो मोदी सरकार ऊपर से और तेल छिड़कने का काम कर रही थी। कोरोना महामारी की दूसरी लहर ने लाखों लोगों को निगल गया। बीमारी से ज़्यादा लोग बेरहम सरकार की बदइन्तज़ामी और लापरवाही से मारे गये। अप्रैल और मई में सरकारी आँकड़ों के मुताबिक रोज़ाना 4000 से ज़्यादा लोग इस बीमारी से जान गँवा रहे थे, लेकिन असल में इससे कई गुना ज़्यादा मौतें हुई हैं। शहरों की ग़रीब बस्तियों में और गाँव-गाँव में होने वाली मौतों की तो गिनती ही नहीं हुई है।
कई अख़बारों ने मौतों की संख्या कम दिखाने के सरकारी हथकण्डों का पर्दाफ़ाश करके दिखाया है कि मरने वालों की असली संख्या 5 से 10 गुना ज़्यादा होगी। एक प्रसिद्ध अमेरिकी अख़बार ने अपनी जाँच-पड़ताल के आधार पर लिखा कि मई के अन्त तक करीब 42 लाख लोगों की मौत हुई। असल में कितने लोग इस हत्यारी सरकार के आपराधिक निकम्मेपन की भेंट चढ़ गये, इसका पता शायद ही कभी चल पायेगा।
यदि इन लोगों को समय पर अस्पताल, बेड, ऑक्सीजन और सही इलाज मिल गया होता तो इनमें से बहुत सारे आज भी हमारे बीच होते। ये इस मुनाफ़ाखोर-आदमखोर पूँजीवादी व्यवस्था और बेशर्म फ़ासिस्ट मोदी सरकार के हाथों होने वाली हत्याएँ हैं।
फ़ासिस्ट मोदी सरकार ने जनता को मौत के मुँह में धकेल दिया और ख़ुद बैठकर मौत का तमाशा देखती रही। लोगों के इलाज के लिए पैसे नहीं हैं पर सरकार 20 हज़ार करोड़ से नई संसद और मोदी का नया महल बना रही है। पूरे देश की स्वास्थ्य व्यवस्था बुरी तरह से चरमरा गयी है। ऑक्सीजन से लेकर दवाओं तक की खुली कालाबाज़ारी सरकार की नाक के नीचे धड़ल्ले से चलती रही। ज़्यादातर डॉक्टर और स्वास्थ्यकर्मी बेबस और लाचार हैं, लोग बेबसी में अपनों को मरता देखते रहे और सरकारों में बैठे लोग आज भी बेशर्मी से झूठ पर झूठ बोले जा रहे हैं।
महामारी की पहली लहर में भी मोदी सरकार ने इलाज का मुकम्मल इन्तज़ाम करने के बजाय ताली-थाली बजवाई और बिना किसी तैयारी के देश पर लॉकडाउन थोप दिया। करोड़ों मेहनतकशों को मरने के लिए लावारिस छोड़ दिया गया। उसके बाद भी पिछली गलतियों को सुधारने की कोई कोशिश नहीं की और वैज्ञानिकों की चेतावनी के बावजूद महामारी से निपटने की कोई तैयारी नहीं की। उल्टे विधानसभा और पंचायत चुनाव और कुम्भ के ज़रिए बीमारी को पूरे देश में भयंकर तरह से फैल जाने दिया। इसकी कीमत देश की जनता अपनी जान देकर चुका रही है। पूरे एक साल में न तो कोई नया अस्पताल और ऑक्सीजन प्लांट बना, न दवाएँ बनाने का इन्तज़ाम हुआ और न ही डॉक्टरों-नर्सों आदि की भरती की गयी। अरबों-खरबों रुपये के पीएम केयर फण्ड और कोरोना के नाम पर लिये गये अरबों रुपये के कर्ज़ का किसी को कुछ अता-पता नहीं है। जब बड़े पैमाने पर टीके लगानेे का समय था तब मोदी सरकार वैक्सीन को दूसरे देशों को बेच रही थी।
अब अगर कोरोना की तीसरी लहर आ गयी, या और कोई महामारी फैल गयी, तो भी लोग फिर से पहले की मौत के मुँह में झोंके जायेंगे क्योंकि अब भी मोदी सरकार ने कोई तैयारी नहीं की है और भाजपा व संघ परिवार अभी से सिर्फ़ चुनाव की तैयारी में लग गये हैं।
आज़ाद भारत ने ऐसी आपदा पहले कभी नहीं देखी थी। मगर मोदी सरकार जैसी लापरवाह, निर्मम, बर्बर और जनद्रोही सरकार भी हम पहली बार ही देख रहे हैं।
दूसरी लहर के इस क़दर विकराल होने का प्रमुख कारण ही सरकार का अमानवीय और जनद्रोही रवैया है। सरकार कोरोना महामारी को अपने हाल पर छोड़कर तमाम दमनकारी-जनविरोधी कानून जनता पर थोपने में जुट गयी थी। अरबों-खरबों रुपये के पीएम केयर फण्ड और कोरोना के नाम पर लिये गये अरबों रुपये के क़र्ज़ का किसी को कुछ अता-पता नहीं है। न तो व्यापक तौर पर कोविड केयर सेण्टर खड़े किये गये और न ही जीवनरक्षक दवाओं और ज़रूरी सामान की कोई खेप बुरे वक्त के लिए रखी गयी। पिछले डेढ़ वर्षों में मोदी सरकार की अक्षम्य लापरवाही के चलते कोरोना की दूसरी लहर जनता के जान-माल को लीलने में लगी है। तमाम राज्य सरकारों ने भी इस दौरान कोरोना संक्रमण की रोकथाम के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाये।
अपनी नाकामी को छिपाने के मकसद से केन्द्र व राज्य सरकारों द्वारा फिर से बिना किसी योजना के आंशिक या पूर्ण लॉकडाउन थोप दिया गया। लॉकडाउन वाले राज्यों में कोरोना के साथ-साथ लोगों के घरों में भुखमरी ने भी दस्तक दे दी है। बेशक कोरोना एक वास्तविक महामारी है और इसकी संक्रमण दर बहुत ज़्यादा है, मगर बिना किसी तैयारी के किये जाने वाले लॉकडाउन की वजह से महामारी पर तो असरदार ढंग से काबू पाया नहीं जा सकता, उल्टे करोड़ों मेहनतकशों को ग़रीबी और भुखमरी में धकेल दिया जाता है। बहुत आवश्यक होने पर, डॉक्टरों और विशेषज्ञों के बहुलांश की सिफ़ारिश पर पूरी तैयारी के बाद ही लॉकडाउन कुछ समय के लिए लगाया जा सकता है, लेकिन ऐसा तब ही होना चाहिए जब सरकार प्रत्येक नागरिक तक सार्वभौमिक राशनिंग प्रणाली से खाद्य सामग्री पहुँचाना सुनिश्चित करे और प्रत्येक नागरिक को सीधे ट्रान्सफर या भुगतान के माध्यम से न्यूनतम आमदनी मुहैया कराये। इसलिए हम बिना किसी तैयारी के थोपे जा रहे अनियोजित लॉकडाउन का विरोध करते हैं और जनता से अपील करते हैं कि केन्द्र और राज्य सरकारों पर खाद्य सामग्री के वितरण और न्यूनतम आमदनी के लिए दबाव डाला जाये।
वास्तव में, कोरोना संक्रमण का महामारी में तब्दील होना मुनाफ़े पर खड़ी पूँजीवादी व्यवस्था की ही देन है जिसमें जनता के जीवन का कोई मूल्य नहीं है। उस पर हमारे देश में शासन कर रही मानवद्रोही फासिस्ट मोदी सरकार ने इस महामारी को कई गुना और बढ़ा दिया है। दुनिया के बहुत सारे देश इस समय मास्क फ्री तक हो रहे हैं। कई देश अपने ज़्यादातर नागरिकों को कोरोना वैक्सीन का टीका नि:शुल्क दे चुके हैं। स्पेन जैसे पूँजीवादी देश तक ने तमाम प्राइवेट अस्पतालों का राष्ट्रीकरण कर उन्हें सरकारी नियन्त्रण के मातहत ला दिया था। लेकिन हमारे यहाँ मोदी सरकार वैज्ञानिकों, स्वास्थ्यकर्मियों और काबिल लोगों की बातों को हवा में उड़ाकर भयंकर आपदा को न्योता दे रही थी। पिछले एक साल के दौरान भारत ने दुनिया को ऑक्सीजन और दवाओं से लेकर वैक्सीन तक का रिकॉर्ड मात्रा में निर्यात किया और अब देश के लोग इन्हीं चीज़ों की कमी से अपनों को मरता हुआ देखने को मजबूर हैं। सरकारी नाकारापन-निकम्मापन इस हद तक बढ़ गया है कि आज देश के करोड़ों लोग इसका खामियाजा भुगत रहे हैं।
जब कोरोना की दूसरी लहर के ख़िलाफ़ तैयारी का समय था तब हुक्मरान बड़ी-बड़ी रैलियाँ करके, कुम्भ जैसे बड़े धार्मिक आयोजनों को अनुमति देकर आपदा को हज़ार गुना बढ़ाने का षड्यन्त्र रच रहे थे। जब व्यापक वैक्सीनेशन का समय था तब मोदी जी कोरोना को हरा देने के लिए अपनी पीठ थपथपा रहे थे! आज जो लोग मर रहे हैं वे सिर्फ़ कोरोना महामारी के चलते नहीं बल्कि वे फ़ासिस्ट मोदी सरकार की अक्षम्य लापरवाही के चलते भी मर रहे हैं। तमाम अन्य पार्टियों की राज्य सरकारें भी मौत के इस ताण्डव की भागीदार हैं।
इतनी बड़ी आपदा के समय भी सरकार की तैयारी शून्य देखी गयी। पिछले एक साल के अन्दर ही स्वास्थ्य ढाँचे में व्यापक सुधार किया जा सकता था। क्या स्पेन की तरह हम भी स्वास्थ्य के ढाँचे का राष्ट्रीकरण करके युद्ध स्तर पर कोरोना का मुकाबला नहीं कर सकते थे? क्या दूसरी लहर से ऐन पहले चुनावी रैलियाँ किया जाना देश की जनता के ख़िलाफ़ किये जाने वाले किसी भी अपराध से कम है? असल में मोदी सरकार के एजेण्डे में जनता का जान-माल हो तभी तो वह महामारी से गम्भीरतापूर्वक निबटने की कोई योजना बनाती। इनको आपदा प्रबन्धन कि बजाय जनता को जाति-धर्म के नाम पर लड़ाकर पूँजीपतियों की तिजोरियाँ भरने का प्रबन्धन ही आता है और वही ये कर भी रहे हैं! इसका हालिया उदहारण तमाम प्राइवेट कम्पनियों को वैक्सीन बेचकर मुनाफ़ा पीटने की छूट देना भी है।
इस मुनाफ़ाखोर व्यवस्था और मोदी सरकार की आपराधिक लापरवाहियों को लोग अगर चुपचाप बर्दाश्त करते रहे तो कल को बहुत देर हो जायेगी। आज पुरज़ोर तरीक़े से यह माँग उठानी होगी कि देश की समूची स्वास्थ्य व्यवस्था का राष्ट्रीकरण करके उसे सरकारी नियन्त्रण में लाया जाये। जब तक स्वास्थ्य सेवाएँ निजी हाथों में रहेंगी तब तक हम इसी तरह अपने परिजनों को अपनी आँखों के सामने दम तोड़ते हुए देखते रहेंगे। कोरोना महामारी के इस भीषण दौर में जनता की जीवन रक्षा के लिए सरकार को इसी वक़्त सभी निजी अस्पतालों, नर्सिंग होमों व पैथोलॉजी लैबों का राष्ट्रीकरण कर अपने नियन्त्रण में लेना चाहिए। हर प्रकार के ज्ञान का उद्भव पूरे समाज के मेहनतकशों के श्रम के बूते ही सम्भव होता है इसलिए ज्ञान पर किसी भी तरह का पेटेण्ट नहीं होना चाहिए। कोरोना वैक्सीन को भी हर तरह के पेटेण्ट से मुक्त करके इसके उत्पादन को भरसक बढ़ाया जाना चाहिए।
‘जन स्वास्थ्य अधिकार मुहिम’ के तहत बिलकुल न्यायसंगत माँगें उठायी जा रही हैं। जीवन जीने के हक़ के लिए, जिसमें स्वास्थ्य का अधिकार सर्वोपरि है, इंच दर इंच संघर्ष करके ही हम अपनी और अपनों की जानें बचा सकते हैं। मौजूदा आपदा ने हमें यह भी दिखा दिया है कि मुनाफ़े पर आधारित पूँजीवादी व्यवस्था महामारी, मौत, भुखमरी, बेरोज़गारी और असुरक्षा के सिवाय हमें कुछ और नहीं दे सकती है। पूँजीवादी व्यवस्था में स्वास्थ्य व्यवस्था लोगों की जान बचाने के लिए नहीं बल्कि अधिक से अधिक मुनाफ़ा पीटने के लिए ही काम करती है। इस संकट ने एक मानवकेन्द्रित व्यवस्था के निर्माण की ज़रूरत को हमारे सामने फिर से रेखांकित कर दिया है।

‘जन स्वास्थ्य अधिकार मुहिम’ की मुख्य माँगें :

1. पूरे देश में समूची स्वास्थ्य व्यवस्था का तत्काल राष्ट्रीकरण करो! सभी को एक समान सार्वभौमिक और निशुल्क स्वास्थ्य सेवाएँ प्रदान करो और स्वास्थ्य के अधिकार को मूलभूत अधिकार घोषित करो!
2. सभी निजी अस्पतालों, नर्सिंग होमों, पैथोलॉजी लैबों, दवा कम्पनियों, कोरोना वैक्सीन फैक्टरियों और चिकित्सा-सामग्री निर्माण उद्योगों का राष्ट्रीकरण करो! कोरोना वैक्सीन को पेटेण्ट से मुक्त करो!
3. आबादी के अनुपात में व्यापक पैमाने पर डॉक्टरों व स्वास्थ्यकर्मियों की तत्काल पक्की भर्ती करो!
4. मज़दूरों की तत्काल भर्ती कर नए ऑक्सीजन प्लांट चालू करो!
5. सभी नागरिकों को मास्क, दस्तानों व सैनेटाइज़र का निशुल्क वितरण किया जाये! तुरन्त प्रभाव से सभी ज़रूरतमन्दों तक ऑक्सीजन और जीवनरक्षक दवाएँ निशुल्क पहुँचायी जायें!
6. ऑक्सीजन और दवाओं की कालाबाज़ारी करने वालों पर फ़ास्ट ट्रैक कोर्टों के माध्यम से कठोर से कठोर कार्यवाई की जाये!
7. सभी स्टेडियमों, बैंक्वेट हॉलों, होटलों और खाली सरकारी इमारतों को सरकारी कोविड सेण्टरों में तब्दील करो!
8. देश के प्रत्येक नागरिक तक सार्वभौमिक राशन वितरण प्रणाली से भोजन की आपूर्ति की जाये!
9. मज़दूरों-कर्मचारियों की कोरोना संक्रमण से सुरक्षा की व्यवस्था की जाये तथा संक्रमितों को सवैतनिक अवकाश दिया जाये!
10. बिना किसी तैयारी के थोपे जा रहे अनियोजित लॉकडाउन को तत्काल रोका जाये। लॉकडाउन की काबिल डॉक्टरों-वैज्ञानिकों के बहुलांश द्वारा संस्तुति करने पर भी इसे तभी लागू किया जाये जब सरकार प्रत्येक नागरिक तक खाद्य सामग्री पहुँचाया जाना सुनिश्चित करे और प्रत्येक नागरिक को सीधे न्यूनतम आमदनी मुहैया कराये।
इस मुहिम से जुड़ने के लिए यहाँ सम्पर्क करें :
https://www.facebook.com/RightToPublicHealth

मज़दूर बिगुल, जून 2021


 

‘मज़दूर बिगुल’ की सदस्‍यता लें!

 

वार्षिक सदस्यता - 125 रुपये

पाँच वर्ष की सदस्यता - 625 रुपये

आजीवन सदस्यता - 3000 रुपये

   
ऑनलाइन भुगतान के अतिरिक्‍त आप सदस्‍यता राशि मनीआर्डर से भी भेज सकते हैं या सीधे बैंक खाते में जमा करा सकते हैं। मनीऑर्डर के लिए पताः मज़दूर बिगुल, द्वारा जनचेतना, डी-68, निरालानगर, लखनऊ-226020 बैंक खाते का विवरणः Mazdoor Bigul खाता संख्याः 0762002109003787, IFSC: PUNB0185400 पंजाब नेशनल बैंक, निशातगंज शाखा, लखनऊ

आर्थिक सहयोग भी करें!

 
प्रिय पाठको, आपको बताने की ज़रूरत नहीं है कि ‘मज़दूर बिगुल’ लगातार आर्थिक समस्या के बीच ही निकालना होता है और इसे जारी रखने के लिए हमें आपके सहयोग की ज़रूरत है। अगर आपको इस अख़बार का प्रकाशन ज़रूरी लगता है तो हम आपसे अपील करेंगे कि आप नीचे दिये गए बटन पर क्लिक करके सदस्‍यता के अतिरिक्‍त आर्थिक सहयोग भी करें।
   
 

Lenin 1बुर्जुआ अख़बार पूँजी की विशाल राशियों के दम पर चलते हैं। मज़दूरों के अख़बार ख़ुद मज़दूरों द्वारा इकट्ठा किये गये पैसे से चलते हैं।

मज़दूरों के महान नेता लेनिन

Related Images:

Comments

comments