असली मुद्दों से ध्यान भटकाने में लगे संघियों के झूठे और ज़हरीले प्रचार का पर्दाफ़ाश करना होगा!

– भारत

कोरोना की दूसरी लहर ने जो क़त्लेआम मचाया है, यह हम सब जानते हैं। इन्सानों को मौत के आँकड़ों में तब्दील करने में फ़ासीवादी मोदी सरकार ने सबसे बड़ा योगदान दिया। जहाँ एक तरफ़ स्वास्थ्य व्यवस्था चरमरा रही थी, वहीं दूसरी तरफ़ सरकार चुनाव लड़ने में मस्त थी। कोरोना वायरस से पूरे देश में सरकारी आँकड़ों के हिसाब से अब तक 3.5 लाख मौतें हो चुकी हैं। पर असल आँकड़ा इससे कहीं ज़्यादा है यह जगज़ाहिर है। श्मशान में ही लाशों को कई घण्टों तक इन्तज़ार करना पड़ रहा था। कई रिपोर्टें भी बताती है कि एक श्मशान में जहाँ एक दिन में सैकड़ों शव जलाये जा रहे थे, पर वहीं सरकारी आँकड़ों में मौत की संख्या 10-12 ही होती थी। गंगा में बह रही लाशें असल सच्चाई बता रही हैं कि स्थिति कितनी भयंकर हो गयी हैं। एक बड़ी आबादी जिन्हें बचाया जा सकता था, उन्हें ऑक्सीजन दवाइयों की कमी के कारण मरना पड़ा। साफ़ है यह हालात सिर्फ़ महामारी के कारण उत्पन्न नहीं हुए, बल्कि इस फ़ासीवादी निजाम द्वारा बरती गयी बर्बर लापरवाही का परिणाम है।
इसी कारण आम जनता में भी सरकार के ख़िलाफ़ ग़ुस्सा है। यही वजह है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आर.एस.एस.) भी अपनी सरकार की इस नाकामी पर पर्दा डालने के लिए पूरी ताक़त से लगा हुआ है। संघ अब अपने शैतानी शापित शाखाओं के माध्यम से और सारे मीडिया तंत्र का इस्तेमाल करके ध्यान भटकाने के लिए साम्प्रदायिक प्रचार, लिंचिंग जैसे मुद्दों को फिर उठा रहा है।
देश को मौत की घाटी में तब्दील करके संघ इस समय सबको “सकारात्मक” रहने का सन्देश दे रहा है। इसी को लेकर इन्होंने अभियान की शुरुआत की जिसमें जग्गी वासुदेव, रविशंकर जैसे और भी ठग शामिल हुए। साथ ही गोदी मीडिया के माध्यम से भी इस हत्यारों ने ‘सकारात्मकता’ को बड़े स्तर पर फैलाया। याद ही होगा कि पिछले साल जब करोड़ों मज़दूर भूखे-प्यासे हज़ारों किलोमीटर चले थे और सरकार ने भी उनके लिए कोई इन्तज़ाम नहीं किया था, तब ये गोदी मीडिया तब्लीगी जमात का मुद्दा खड़ा कर रहा था। ठीक उसी तर्ज़ पर चलते हुए इस बार भी गोदी मीडिया आर.एस.एस की ‘पॉजिटिविटी’ के धुन अलाप रहा है। ज़ाहिर है इनसे और कोई उम्मीद भी नहीं की जा सकती।
इस समय सक्रिय तरीक़े से संघ का आईटी सेल भी बड़े स्तर पर अफ़वाहें फैलाने से लेकर तमाम झूठे मुद्दों को प्रचारित कर सरकार की नाकामी छुपाने में लगा है। इनके द्वारा फैलायी एक अफ़वाह ने तूल पकड़ा कि एक बूढ़े आर.एस.एस के कार्यकर्ता ने अस्पताल में किसी युवा के लिए अपना बेड छोड़ दिया। बड़े-बड़े टीवी चैनल से लेकर हर जगह यह ख़बर प्रसारित की गयी और आर.एस.एस को आदर्श के रूप में पेश किया गया। परन्तु अन्ततः यह संघ द्वारा फैलाया गया झूठ ही निकला और उनकी ये ‘आदर्श’ गाथा धरी की धरी रह गयी। उसी अस्पताल के कर्मचारियों ने बताया कि ऐसी कोई घटना नहीं हुई, बल्कि उस दिन तो अस्पताल में कई बेड ख़ाली थे।
ये तिलचट्टे संघी कोरोना की वैक्सीन की कमी को भी नकार रहे हैं और कह रहे हैं कि जनसंख्या इतनी है कि सबके लिये वैक्सीन लगाना या स्वास्थ्य सुरक्षा मुहैया कराना सम्भव भी नही है। गंगा को माँ बोलने वाले ये संघी, गंगा में तैर रही लाशों पर चुप्पी साधे बैठे हैं और इन्हीं का फ़ासिस्ट चेला योगी निर्लज्जता के साथ गंगा के पास दबी लाशों से कफ़न उतरवा रहा है, ताकि सच्चाई छुपायी जा सके। दूसरी तरफ़ संघ के प्रमुख मोहन भागवत का कहना है कि यह सरकार को दोष देने का समय नहीं है। उसने तो यह भी कहा है कि जो लोग दवा और ऑक्सीजन के बिना मर गये, वे “मुक्त” हो गये। आई.टी सेल के माध्यम से ये लोग राष्ट्रवाद, लव-जिहाद, जनसंख्या नियंत्रण, जाति-धर्म के नाम पर ज़हर फैलाने का काम निरन्तर कर रहे हैं ताकि असल मुद्दों से हमारा ध्यान भटक सके। पूरा का पूरा गोदी मीडिया इनके झूठ को फैलाने में दिनो-रात जुटा हुआ है। इसके अलावा, संघी कार्यकर्ता और अन्धभक्त लोगों में तरह-तरह का झूठा और ज़हरीला प्रचार कर रहे हैं।
इसी के साथ फ़ासिस्ट अपने प्रिय काम, यानी दंगे करवाने में भी योजनाबद्ध ढंग से लगे हुए हैं। इसी की एक बानगी हरियाणा के मेवात में दिखी जहाँ विगत 16 मई को 27 वर्षीय युवक आसिफ़ खान की तक़रीबन 20 लोगों के समूह ने पीट-पीटकर हत्या कर दी। मेवात की स्थिति चिन्ताजनक बनी हुई है। यूट्यूब और सोशल मीडिया पर वीडियो डाल-डाल कर मेवात के सामाजिक ताने-बाने में ज़हर घोला जा रहा है। अपराधी-लम्पट-गुण्डा गिरोहों के द्वारा सरेआम भड़काऊ बयान और धमकियाँ दी जा रही हैं। आज ऐसे ही दंगों की इन फ़ासिस्टों को ज़रूरत है, ताकि जो कोरोना में जो नरसंहार इन्होंने किया है, उस पर से जनता का ध्यान हट जाये और इससे उपजे ग़ुस्से को दंगों की तरफ़ मोड़ दिया जाये।
कोरोना संकट ने पहले से ही संकट में फँसी पूँजीवादी व्यवस्था के संकट को और गहरा कर दिया है, इसलिये पूँजीपति वर्ग ने अपने ज़ंजीर से बँधे अपने कुत्ते को खूँखार तरीक़े से सबको रौंदने के लिये कह दिया है। दिल्ली दंगों के सफल आयोजन के बाद ये फ़ासीवादी अब पूरे देश को दंगों की आग में झोंक सकते हैं। सत्ता में बने रहने के लिए ये कुछ भी कर सकते हैं। इसीलिए सकारात्मकता के प्रचार के पीछे लिंचिंग और दंगों की योजनाएँ बनायी जा रही हैं।
इनके ज़हरीले प्रचार की असलियत को पहचानकर उसे नंगा करना होगा वरना फ़ासिस्ट अपराधियों का यह गिरोह देश को ख़ून के दलदल में धँसा देगा। लोगों की जान का इनके लिए क्या महत्व है, यह तो इन्होंने पिछले डेढ़ साल में अच्छी तरह दिखा दिया है।

मज़दूर बिगुल, जून 2021


 

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