हरियाणा के मेवात में साम्प्रदायिक माहौल बिगाड़ने में लगे नफ़रत के सौदागर!
जारी है महापंचायतों का दौर, कहीं दूसरे मुज़फ़्फ़रनगर की तैयारी तो नहीं हो रही है?

– इन्द्रजीत

आपको पता होगा कि पिछली 16 मई को खेड़ा खलीलपुर, नूह जिला मेवात (हरियाणा) के रहने वाले 27 वर्षीय युवक आसिफ़ खान की तक़रीबन 20 लोगों के समूह के द्वारा पीट-पीटकर हत्या कर दी गयी थी। अन्तिम जानकारी के अनुसार पुलिस के द्वारा इस मामले में 16 नामज़द समेत 20 पर एफआईआर दर्ज की गयी है और 8 हत्यारोपियों को गिरफ्तार किया है। इनमें से 7-8 हत्यारोपी आसिफ़ के गाँव के ही हैं तथा उनका सम्बन्ध भाजपा और संघ परिवार से बताया जा रहा है।
फ़िलहाल मेवात की स्थिति चिन्ताजनक बनी हुई है। यूट्यूब और सोशल मीडिया पर वीडियो डाल-डाल कर मेवात के सामाजिक ताने-बाने में ज़हर घोला जा रहा है। अपराधी-लम्पट-गुण्डा गिरोहों के द्वारा सरेआम भड़काऊ बयान और धमकियाँ दी जा रही हैं। भीड़ के “पौरुष” को ललकारा जा रहा है और पुलिस प्रशासन किसी अनहोनी के इन्तजार में ठोस कार्रवाई करने की बजाय चुप्पी साधे बैठा हुआ है। संघ और भाजपा समर्थक तत्त्व हत्यारोपियों को निर्दोष बता रहे हैं तथा बड़ी-बड़ी “महापंचायतों” के माध्यम से हज़ारों लोगों की भीड़ इकट्ठी कर रहे हैं। इनमें करनी सेना से जुड़ा सूरज पाल अम्मू, भारत माता वाहिनी का चीफ़ दिनेश ठाकुर, पलवल भाजपा आईटी सेल का अध्यक्ष सुनील, भारतीय किसान संघ का हरियाणा का अध्यक्ष ओम सिंह चौहान, बिट्टू बजरंगी, जुनैद हत्याकाण्ड का मुख्या आरोपी नरेश कुमार समेत बहुत से फ़ासिस्ट तत्त्व पहुँच रहे हैं। इसके अलावा हत्यारोपियों के समर्थन में लोनी भाजपा विधायक नन्द किशोर गुर्जर, जामिया के छात्रों पर गोली चलाने वाला कपिल गुर्जर समेत बहुत से लोगों ने ज़हर उगला है। अभी हरियाणा में कोरोना की बन्दिशें जारी हैं इसके बावजूद इतनी बड़ी-बड़ी तथाकथित महापंचायतों का आयोजन सरकार और प्रशासन की शह पर ही सम्भव है।
संघ और भाजपा के लोग और समर्थक साम्प्रदायिक तत्त्वों, बलात्कारियों और हत्यारों के समर्थन में पूरी मुश्तैदी से जुट जाते हैं। मेवात में भी कुछ अविश्वसनीय नहीं हो रहा है। कठुआ, दादरी, बुलन्दशहर, उन्नाव, मुजफ्फरनगर से लेकर देश भर में हमें यही चीज़ दिखायी दी थी। यही नहीं दंगाइयों-बलात्कारियों के गलों में फूल मालाएँ डालते हुए भी संघी-भाजपाई ही पाये जाते हैं। हरियाणा के पुलिस प्रशासन को चाहिए कि बाकी बचे हत्यारोपियों को भी तुरन्त प्रभाव से गिरफ्तार करे और उनको सख्त सजा दिया जाना सुनिश्चित करे। साम्प्रदायिक तत्त्वों की मेवात का माहौल ख़राब करने की कोशिश पर तुरन्त लगाम लगाये। हालाँकि इसकी उम्मीद कम ही है।
मेवात की हिन्दू-मुस्लिम जनता को आपसी भाईचारा और जुझारू एकजुटता बनाकर साम्प्रदायिक माहौल का मुक़ाबला करना चाहिए। मेवात में जनता के भाईचारे को पलीता लगाने का काम मुख्य तौर पर संघ-भाजपा और तमाम हिन्दुत्ववादी संगठन कर रहे हैं। इसके अलावा कुछ अस्मितावादी और साम्प्रदायिक राजनीति करने वाले ओवैसी जैसों के चेले-चपाटे भी इस काम में संघियों को अप्रत्यक्ष तौर पर सहयोग दे रहे हैं। मेवात हरियाणा-राजस्थान के सबसे पिछड़े क्षेत्रों में से एक है। पढ़ाई-लिखाई और रोज़ी-रोज़गार का यहाँ भट्ठा गोल है। इसके बावजूद भी साम्प्रदायिक तत्त्वों की दाल यहाँ आसानी से गल रही है। मेवात के शिक्षित युवाओं और प्रबुद्ध नागरिकों की यह ज़िम्मेदारी बनती है कि साम्प्रदायिक अलगाव की खाई को पाटा जाये। हमें साम्प्रदायिक सद्भाव के साथ-साथ अमन कमेटियों का गठन भी करना चाहिए। ये अमन कमेटियाँ न केवल मेहनतकश हिन्दू-मुसलमान जनता के बीच शान्ति-भाईचारे के लिए काम करें बल्कि दंगाई भीड़ के ख़िलाफ़ भी जुझारू तरीके से दीवार बनकर खाड़ी हो जायें ताकि मेवात में अमन-चैन को सुनिश्चित किया जा सके। मेवात क्षेत्र के अन्दर साम्प्रदायिक तत्त्वों का मुक़ाबला मेहनतकश जनता की वर्ग-एकजुटता के दम पर ही किया जा सकता है।
आज मेवात में हो रही ये महापंचायतें हमें एक और चीज़ की याद दिलाती हैं। वह चीज़ है 2013 में पश्चिमी उत्तरप्रदेश में भड़काये गये साम्प्रदायिक दंगे। तब भी गाँवों में ऐसी ही बड़ी-बड़ी तथाकथित महापंचायतों का आयोजन किया गया था जिनमें भाजपा और संघ परिवार के लोगों ने खुलकर ज़हर उगला था। और इसका परिणाम भी हमने देख लिया था। आज किसान आन्दोलन का चेहरा बने टिकैत बन्धु भी तब मुस्लिम विरोधी माहौल बनाने के लिए खुलकर खेल रहे थे।
जिन लोगों को यह लगता है कि मौजूदा किसान आन्दोलन का चरित्र फ़ासीवाद विरोधी है और किसान आन्दोलन के कारण ग्रामीण किसान आबादी आरएसएस और हिन्दुत्ववादी ताक़तों के ख़िलाफ़ हो गयी है, वे सिर्फ़ मुगालते में जी रहे हैं और खुद को व जनता के हितों को धोखा दे रहे हैं। मेवात में तथाकथित महापंचायतों में दरी पर बैठने वाली बड़ी आबादी खेती-किसानी से जुड़ी आबादी ही तो है जिसे तमाम फ़ासीवादी तौर-तरीकों से भड़काया जा रहा है और जिसके सामने नकली दुश्मन को खड़ा किया जा रहा है।
फ़ासीवाद मुनाफ़े की गिरती दर के दौर में संकटग्रस्त पूँजीवादी व्यवस्था की एक परिघटना है। फ़ासीवादी ताक़तें पूँजीपति वर्ग के सबसे प्रतिक्रियावादी हिस्सों की नुमाइन्दगी करती हैं। यह टुटपूँजिया वर्गों का एक प्रतिक्रियावादी सामाजिक आन्दोलन होता है। लोगों की निम्नचेतना, जड़ता, पुरातनपंथी सोच और तर्क-विवेकहीनता फ़ासीवादी विचारधारा के लिए मुफ़ीद ज़मीन मुहैया कराते है।
उच्च जातियों की तथाकथित महापंचायतों और खाप पंचायतों के कर्ता-धर्ता असल में खुद ग्रामीण शासक वर्ग होते हैं या इसके अनौपचारिक प्रतिनिधि होते हैं। गाँव के धनिक वर्ग द्वारा जुटायी जाने वाली तथाकथित महापंचायतें एक ओर एमएसपी जैसी जनविरोधी माँग पर धनी किसान आन्दोलन के साथ हैं तो दूसरी ओर इनका साम्प्रदायिक और पुरातनपन्थी चरित्र भी किसी से छुपा हुआ नहीं है। हरियाणा के गठवाला खाप के प्रतिनिधि रहे दादा बलजीत मलिक तो भाजपा की टिकट पर चुनाव भी लड़ चुके हैं।
धनी किसानों का अवसरवादी नेतृत्व एकदम साफ़ नज़र है कि उसे भाजपा-आरएसएस और फ़ासीवाद से कोई मतलब नहीं उसे सिर्फ़ अपना अतिरिक्त मुनाफ़ा या एमएसपी की गारण्टी चाहिए। आम गरीब किसान आबादी को ऐतिहासिक विरासत के तौर पर साम्प्रदायिक और जातिवादी मानस मिले ही हुए हैं। और इसी चीज़ का फ़ायदा तमाम अवसरवादी तत्त्व और फ़ासीवादी शक्तियाँ उठाती रही हैं। इस सच को स्वीकार करने की बजाय कुछ “यथार्थवादी” लोग भी आन्दोलन के चरित्र की मनमुआफ़िक व्याख्या करने में लगे हैं।
मौजूदा किसान आन्दोलन के फ़ासीवाद विरोधी होने के सच को हमने तब भी देख भी लिया था जब ग़ाज़ीपुर धरने से जामिया के छात्रों को धक्के देकर भगा दिया गया था और उनके ख़िलाफ़ पुलिस को बुला लिया गया था! जब कुछ जनवादी चरित्र रखने वाली किसान यूनियन उगराहां ने राजनीतिक बन्दियों की रिहाई के लिए प्रदर्शन किया तो बाकी के पूरे नेतृत्व ने कार्यक्रम से खुद को अलग करके जोगिन्द्र सिंह उगराहां को कैसे जात बाहर कर दिया था!
भारत में फ़ासीवाद का मुकाबला वर्ग आधारित जनता की फ़ौलादी एकजुटता के दम पर ही किया जा सकता है। महज़ आर्थिक माँगों के लिए संगठित टुटपूँजिया वर्गों के आन्दोलन से फ़ासीवाद को ज़्यादा परेशानी नहीं होगी। झूठी उम्मीद रखना नाउम्मीद होने से भी ख़तरनाक होता है।

मज़दूर बिगुल, जून 2021


 

‘मज़दूर बिगुल’ की सदस्‍यता लें!

 

वार्षिक सदस्यता - 125 रुपये

पाँच वर्ष की सदस्यता - 625 रुपये

आजीवन सदस्यता - 3000 रुपये

   
ऑनलाइन भुगतान के अतिरिक्‍त आप सदस्‍यता राशि मनीआर्डर से भी भेज सकते हैं या सीधे बैंक खाते में जमा करा सकते हैं। मनीऑर्डर के लिए पताः मज़दूर बिगुल, द्वारा जनचेतना, डी-68, निरालानगर, लखनऊ-226020 बैंक खाते का विवरणः Mazdoor Bigul खाता संख्याः 0762002109003787, IFSC: PUNB0185400 पंजाब नेशनल बैंक, निशातगंज शाखा, लखनऊ

आर्थिक सहयोग भी करें!

 
प्रिय पाठको, आपको बताने की ज़रूरत नहीं है कि ‘मज़दूर बिगुल’ लगातार आर्थिक समस्या के बीच ही निकालना होता है और इसे जारी रखने के लिए हमें आपके सहयोग की ज़रूरत है। अगर आपको इस अख़बार का प्रकाशन ज़रूरी लगता है तो हम आपसे अपील करेंगे कि आप नीचे दिये गए बटन पर क्लिक करके सदस्‍यता के अतिरिक्‍त आर्थिक सहयोग भी करें।
   
 

Lenin 1बुर्जुआ अख़बार पूँजी की विशाल राशियों के दम पर चलते हैं। मज़दूरों के अख़बार ख़ुद मज़दूरों द्वारा इकट्ठा किये गये पैसे से चलते हैं।

मज़दूरों के महान नेता लेनिन

Related Images:

Comments

comments