लाखों लोगों को मौत के हवाले करके फ़ासिस्ट सत्ताधारी फिर अपने चुनावी खेल में लग गये हैं!
उन्हें भरोसा है कि उनका झूठा प्रचार और नफ़रत की अफ़ीम फिर सर चढ़कर बोलेंगे और लोग सबकुछ भूल जायेंगे!
इनके ख़ूनी इरादों को नाकाम करने के लिए एकजुट होकर उठ खड़ा होना होगा!
– सम्पादकीय
पिछले दिनों प्रसिद्ध अन्तरराष्ट्रीय ऑनलाइन समाचार पत्रिका ‘द कन्वर्सेशन’ ने कोरोना महामारी से निपटने वाले दुनिया के सबसे ख़राब नेताओं पर एक रपट छापी। इसमें दुनिया के 5 ऐसे सरकार के प्रमुखों का जिक्र है जो अपने देश में महामारी को निपटने में सबसे बुरी तरह नाकाम रहे। कहने की ज़रूरत नहीं कि इसमें सबसे आगे विश्वगुरू भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं। उनके पीछे ब्राज़ील के ज़ैर बोलसोनारो, बेलारूस के अलेक्सान्द्र लुकाशेंको, पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और मैक्सिको के राष्ट्रपति एंड्रेस ओब्राडोर का नाम है। इन सभी ने अपनी मूर्खता, लापरवाही और लोगों की जान को कुछ न समझने के चलते अपने मुल्क में महामारी को भयंकर जानलेवा रूप लेने दिया। इन सभी ने बार-बार चेतावनियों को अनसुना करके महामारी को गम्भीरता से नहीं लिया, विज्ञान की अवहेलना की और महामारी से लड़ने के लिए अनिवार्य स्वास्थ्य सुविधाओं और क़दमों पर ज़रूरी ध्यान नहीं दिया।
अपने देश के सत्ताधारियों की करतूतों का सबसे विनाशकारी नतीजा झेला भारत की जनता ने। लाखों लोग मौत के मुँह में समा गये, लाखों परिवार उजड़ गये, हज़ारों बच्चे बेसहारा हो गये। एक करोड़ से ज़्यादा लोगों ने अपना रोज़गार खो दिया और करोड़ों लोग लोग आर्थिक तबाही के कगार पर पहुँच गये हैं। एक ऐसी मानवीय और सामाजिक आपदा हमारे सामने खड़ी है, जिसका सामना करने के लिए न हमारी व्यवस्था तैयार है और न ही हमारा समाज। मोदी सरकार की अनर्थकारी और लुटेरी नीतियों के कारण अर्थव्यवस्था महामारी के पहले ही गर्त में जा चुकी थी, महामारी के दौरान सरकारी क़वायदों ने इसका पूरा भट्ठा बैठा दिया है। महामारी दुनिया के तमाम देशों के लिए थी, मगर ऐसी आर्थिक बदहाली और कहीं नहीं आयी। लगातार दूसरे साल भारत का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) बढ़ने के बजाय बुरी तरह सिकुड़ गया। इन हालात में आने वाले दिन मेहनतकशों और निम्न मध्य वर्ग के लोगों के लिए भयावह बेरोज़गारी और बदहाली लेकर आने वाले हैं।
कोरोना महामारी की दूसरी लहर बीते साल गर्मियों के अन्त तक ही दुनिया के कुछ हिस्सों में विकसित हो चुकी थी। बेल्जियम, ईरान, चेक गणराज्य, दक्षिण कोरिया, जर्मनी, स्पेन, अमेरिका आदि देशों के कुछ हिस्सों में इसका फैलना शुरू हो गया था। इस साल की शुरुआत तक दूसरी लहर का संकट जगजाहिर हो चुका था और दूसरी सरकारों ने तैयारियाँ शुरू कर दी थीं। मगर भारत का प्रधानमंत्री तैयारी करने के बजाए अपनी शेखी बघारने में लगा हुआ था। जनवरी में मोदी ने दावा किया कि हमने कोरोना को सफलतापूर्वक नियंत्रित कर लिया है, और दुनिया को भी इसका मंत्र दे दिया है। पूरी भक्त मण्डली अपने साहब की वाहवाही में पगलाई हुई थी। इसके ठीक तीन महीने बाद, 23 अप्रैल को पिछले 24 घण्टों में सबसे अधिक मरीज़ों के मामले में भारत दुनिया में नम्बर एक बन गया था। और उसके बाद यह संख्या बढ़ती ही चली गयी।
केन्द्र सरकार को महामारी से निपटने के लिए ज़रूरी सलाह देने के लिए बनी कोविड-19 पर राष्ट्रीय वैज्ञानिक टास्कफ़ोर्स की फ़रवरी और मार्च के अहम महीनों में कोई बैठक तक नहीं की गयी। राष्ट्रीय आपदा प्रबन्धन अधिनियम के तहत गठित 11 दलों में से एक ने सरकार को दूसरी लहर के बाबत स्पष्ट चेतावनी दी थी और इसके बरक्स तैयारी के लिए विस्तृत सिफ़ारिशें की थी। इनमें सबसे ख़ास बात यह थी कि भारत तुरन्त 60,000 टन ऑक्सीजन का आयात करे और 150 ज़िला अस्पतालों को दुरुस्त करे। ख़ास तौर पर इन अस्पतालों में ऑक्सीजन की कमी को पूरा करने के लिए 162 प्रेशर स्विंग एब्सॉर्पशन संयंत्र लगाये जायें। इन संयंत्रों पर केवल 200 करोड़ रुपये की लागत आनी थी।
मगर ऐसे ज़रूरी क़दम उठाने के बजाय इन फ़ासिस्ट हत्यारों ने पाँच राज्यों में विधानसभा और उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव, कुम्भ, और क्रिकेट मैच का तमाशा करवाकर इस महामारी को विकराल रूप लेने में अहम भूमिका निभाई।
मौत और बर्बादी का ऐसा ताण्डव मचाने के बाद भी ये फ़ासिस्ट ग़लती मानने के बजाय चोरी और सीनाज़ोरी वाले अन्दाज़ में झूठे दावे किये जा रहे हैं। लेकिन वे भी जानते हैं कि इस बार मौतों का जो सैलाब आया था उसने किसी को भी नहीं छोड़ा है। बड़ी संख्या में मोदीभक्त और भाजपा-संघ के समर्थक व कार्यकर्ता भी महामारी और सरकारी बदइन्तज़ामी का शिकार हुए हैं। ऐसे में उनके पास एकमात्र रास्ता है साम्प्रदायिकता के प्रेत को फिर से काम पर लगाना, जिसके वे पुराने माहिर हैं। पिछले कुछ दिनों की घटनाएँ आने वाले समय में इनके मंसूबों की ओर इशारा कर रही हैं।
नालायक योगी सरकार लोगों के लिए ऑक्सीजन, दवा, अस्पताल का इन्तज़ाम तो दूर, पार्थिव शरीरों का सम्मान सहित अन्तिम संस्कार तक करा पाने में नाकाम रही। यह बस अपने निकम्मेपन के सबूतों को छिपाने में ही लगी रही। इसके लिए कहीं श्मशान घाट को नज़रबन्द किया गया, कहीं शवों की फ़ोटो लेने पर रोक लगायी गयी, तो कहीं नदी किनारे रेत में दबाये शवों से कफ़न तक नोचवा लिये गये। ऑक्सीजन की कमी की बात करने वालों की सम्पत्ति ज़ब्त करने का फ़रमान जारी करने से लेकर अपनी शिकायतें लेकर गये डॉक्टरों पर एफ़आईआर कराने तक के काम करके भी योगी सरकार असन्तोष और विरोध के स्वरों को रोक नहीं पायी। ऐसे में देश के सबसे अधिक आबादी वाले प्रदेश का मुखिया अपने असली रंग में आ चुका है और खुलकर साम्प्रदायिक नफ़रत का खेल खेल रहा है। हाई कोर्ट के आदेश की अहवेलना करते हुए स्थानीय प्रशासन ने लखनऊ से लगे बाराबंकी ज़िले में ग़रीबनवाज़ अल महरूफ़ मस्जिद को बुलडोजर चलाकर ज़मींदोज कर दिया। स्थानीय लोगों के मुताबिक मस्जिद पिछले 100 सालों से खड़ी थी। मस्जिद गिराने के बाद पूरे इलाक़े में साम्प्रदायिक तनाव का माहौल बना हुआ है। उधर हरियाणा के गुड़गाँव ज़िले में 30 वर्षीय आसिफ़ का एक उन्मादी भीड़ ने क़त्ल कर दिया। अपने काम से वापस लौट रहे आसिफ को “जय श्री राम” का नारा लगाने के लिए बाध्य करते हुए मार दिया गया। एक बार फिर से धर्म के नाम पर लिंचिंग करने का काम किया जा रहा है। अब पूरे मेवात क्षेत्र में भड़काऊ वीडियो और पोस्ट के ज़रिए साम्प्रदायिक नफ़रत का माहौल गरमाया जा रहा है। ग़ाज़ियाबाद में एक बुज़ुर्ग को “जय श्री राम” बुलवाने के नाम पर घण्टों तक टॉर्चर किया गया, उनकी दाढ़ी काट दी गयी और जब इसका व्यापक विरोध होने लगा तो उल्टे अनेक मुस्लिमों और सामाजिक कार्यकर्ताओं पर ही “वैमनस्य फैलाने” का मुक़दमा दर्ज करा दिया गया।
जिस तरह पुराने ज़माने के राजा-महाराजा हर वक़्त युद्ध की तैयारियों में लगे रहते थे; चाहे जनता अकाल या बाढ़ से त्रस्त हो, सेनाएँ खड़ी करने के लिए उनकी वसूली चलती रहती थी, ठीक उसी तरह से इन फ़ासिस्टों को हर क़ीमत पर चुनाव जीतने और सत्ता में बने रहने से ही मतलब होता है। सत्ता में बने रहने के लिए वे कुछ भी कर सकते हैं ताकि अपने पूँजीपति आक़ाओं की वे सेवा करते रह सकें और “हिन्दू राष्ट्र” के अपने विनाशकारी प्रोजेक्ट को आगे बढ़ा सकें।
अब हमें और आपको यह तय करना है कि हम इनके ख़तरनाक मंसूबों को कामयाब होने देंगे, या इनके ख़ूनी इरादों को नाकाम करने के लिए एकजुट होकर उठ खड़े होंगे!
मज़दूर बिगुल, जून 2021
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