कोरोना की दूसरी लहर में बदहाल राजस्थान
स्वास्थ्य सेवाओं ने दम तोड़ा, डेढ़ साल हाथ पर हाथ धरे बैठी रही गहलोत सरकार
– रवि
कोरोना की दूसरी लहर में राजस्थान बिल्कुल बदहाल हो गया है। यहाँ की स्वास्थ्य सेवाओं ने दम तोड़ दिया है। यह लेख लिखे जाने तक राजस्थान में कुल ऐक्टिव कोरोना केस 1,98,000 हो गये थे। जबकी रोज़ 150 लोग कोरोना से दम तोड़ रहे हैं। राजस्थान में कोरोना की संक्रामकता का अन्दाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि कोरोना की पहली लहर में 50 दिन में 1 लाख मरीज़ आये थे जबकि इस बार दूसरी लहर में 5 दिन में ही 1 लाख से ज़्यादा पाॅज़िटिव केस आ गये। यह लेख लिखे जाने तक राजस्थान में कोरोना से 5346 मौंते हो चुकी हैं जिसमें 6 मई को ही 161 मौतें हो गयी थीं जबकि पाॅज़िटिविटी रेट 37 आ रहा है जो कि बहुत ज़्यादा है। जहाँ जक ज़िलोें की बात की जाय तो जयपुर, जोधपुर, अलवर और उदयपुर कोरोना से सर्वाधिक प्रभावित हैं। इनमें भी जयपुर और जोधपुर सबसे अधिक प्रभावित हैं। जहाँ ऐक्टिव केस 6 मई तक क्रमशः 46206 और 24797 थे। दूसरी लहर में सबसे बड़ी बात यह है कि इस बार संक्रमण गाँवों तक व्यापक रूप से फैल चुका है। सरकारी डेटा के हिसाब से 35 प्रतिशत कोरोना केस गाँवों में आ रहे हैं। यह सभी कोरोना केस वह हैं जो रिपोर्ट हो रहे हैं। कोरोना केसों और इससे होने वाली मौंतों का वास्तविक आँकडा 5 से 10 गुना तक है। शहरों में तो ज़िला मुख्यालयों पर स्थित सरकारी व कुछ प्राइवेट अस्पतालों में कोरोना जाँच की सुविधा है लेकिन ग्रामीण क्षे़त्रों में यह उपलब्ध नहीं है वहाँ पर टेस्टिंग के लिए ज़िला मुख्यालयों पर जाना पड़ता है जो कि तक़रीबन 50 कि.मी. से 100 कि.मी. तक होते हैं। उसके बाद भी 3-4 दिन रिपोर्ट आने में लग जाते हैं तब तक मरीज़ बहुत लोगों को संक्रमित कर चुका होता है और कई बार तो रोगी की मौत भी हो जाती है। गाँवों में बहुत से लोग कोरोना को मामूली खाँसी-ज़ुकाम, बुख़ार मानकर झोला छाप डाॅक्टरों से इलाज करवाते हैं जो कि इलाज के नाम पर रोगी को ग्लूकोस चढा देते हैं या एण्टीबायोटिक और खाँसी-ज़ुकाम की दवा देते हैं। वहाँ न तो मास्क लगाया जाता है और न ही भौतिक दूरी का ध्यान रखा जाता है। सोशल मीडिया पर कई ऐसे वीडियो भी सामने आये हैं कि ग्रामीणों को खुले मैदान में ग्लूकोज़ व आॅक्सीजन चढ़ायी जा रही है। कई गाँवों और क़स्बों में सरकार की तरफ़ से रेण्डम सेम्पलिंग भी की जा रही है जिसमें हर 3 में से 2 लोग पाॅज़िटिव आ रहे हैं इसी से गाँवों और क़स्बों में कोरोना की भयावहता का अन्दाज़ा लगाया जा सकता है। कई गाँवों में तो 70 प्रतिशत तक कोरोना संक्रमण फैल गया है।
कोरोना को रोकने के लिए राजस्थान की अशोक गहलोत सरकार ने 19 अप्रैल से 3 मई तक का मिनी लाॅकडाउन लगाया था जिसे “जन अनुशासन पखवाड़ा” नाम दिया गया जिसे बाद में बढ़ाकर 17 मई तक कर दिया गया। लेकिन इस दोरान कोरोना केस कम होने की बजाय बढ़ गयेे। जयपुर में तो रोज़ 3000 से अधिक केस पिछले दस दिनों से आ रहे हैं तथा जोधपुर में 2000 से अधिक केस आ रहे हैं। इसके अलावा राजस्थान में रोज़ाना होने वाली मौतों का आँकड़ा भी 150 से ऊपर बना हुआ है। पूरे राजस्थान में रोज़ 17000 से ज़्यादा केस पिछले दस दिनों से आ रहे हैं। जबकि 7 मई को तो यह सारे रिकाॅर्ड तोड़ते हुए कोरोना आने के बाद के अब तक के सबसे ज़्यादा केस 18231 रिपोर्ट किये गये अकेले जयपुर में ही 4902 कोरोना पोज़िटिव केस रिपोर्ट हुए। “जन अनुशासन पखवाड़े” की असफलता की वजह से गहलोत सरकार ने 10 मई से 24 मई तक राजस्थान में सख़्त लाॅकडाउन लागू कर दिया। उसमें मनरेगा के तहत होने वाले कार्य और सार्वजनिक यातायात को भी बन्द कर दिया गया। राजस्थान में रिकवरी रेट भी देश के अन्य राज्यों से कम है जो कि मात्र 71.6 प्रतिशत है।
लाॅकडाउन का बढ़ते कोरोना केसों पर तो कोई ख़ास असर नहीं पड़ा लेकिन इसका मज़दूर वर्ग, रेहड़ी पटरी लगाने वालों, आॅटो रिक्शा चालकों, छोटी मोटी प्राइवेट नौकरी करने वालों और गाँवों और क़स्बों से आकर जयपुर जैसे शहरों में किराये पर रहने वाले छात्रों व प्रतियोगी परीक्षार्थीयों पर बहुत बुरा असर पड़ा है। इधर एक साल से अर्थव्यवस्था और रोज़गार के बहुत बुरे हालात थे। अब कोरोना की दूसरी लहर और सरकार के द्वारा अनियोजित तरीक़े से लगाये गये लाॅकडाउन ने मज़दूर वर्ग और ग़रीब आबादी की कमर ही तोड़ दी है। सरकार को लाॅकडाउन लगाने से पहले ग़रीब आबादी और मज़दूर वर्ग को आर्थिक सहायता उपलब्ध करवानी चाहिए। जो मज़दूर, छात्र और प्रतियोगी परीक्षार्थी शहरों में किराये पर रहते हैं उनका किराया सरकार को माफ़ करना चाहिए। यदि विशेष परिस्थिति हो तो सरकार की तरफ़ से मकान मालिक को किराये का भुगतान किया जाये।
कोरोना को देश में आये डेढ़ साल हो गया है लेकिन केन्द्र और राज्य सरकारें सोती रहीं। इस दौरान चिकित्सा सुविधाओं को बढ़ाना चाहिए था। आॅक्सीजन और वेण्टिलेटर की अस्पतालों में व्यवस्था की जानी चाहिए थी। डाॅक्टरों और नर्सों की नयी भर्ती की व्यवस्था की जानी चाहिए थी। लेकिन मोदी सरकार ने जनता को ताली और थाली बजाने के सिवाय कुछ नहीं दिया। कोरोना की दूसरी लहर में बहुत सी मौतें आॅॅक्सीजन और अस्पताल में बेड नहीं मिलने की वजह से हुई हैं। यह वह ज़िन्दगियाँ हैं जो बचायी जा सकती थीं। लाॅकडाउन केवल सरकारों को समय उपलब्ध कराता है ताकि इस दौरान वे चिकित्सा सुविधाओं को बढ़ा सकें, नये अस्पताल बना सकें। लेकिन जो सरकारें पिछले डेढ़ साल से सोयी हुई हैं वो 15 दिन या एक महीने के लाॅक डाउन में चिकित्सा सुविधाएँ और डाॅक्टरों की संख्या बढ़ायेंगी यह मानना निराधार है। दरअसल यह इस पूँजीवादी व्यवस्था में बहुत दूर की कोड़ी है।
कोरोना महामारी की दूसरी लहर के बीच अभी भी कुछ लोग ऐसे हैं जो यह मानते है कि कोरोना नाम की कोई बीमारी ही नहीं है या ज़्यादा से ज़्यादा यह एक मामूली मौसमी फ़्लू है और यह जो मौतें कोरोना से हो रही हैं वह भय से हो रही हैं। एक दूसरे टाइप के लोग हैं जिनमें मुख्यतः लिबरल और “मार्क्सवादी” शामिल हैं उनका मानना यह है कि कोरोना दुनिया की फ़ार्मेसी कम्पनियों और डब्ल्यूएचओ का षड्यंत्र है। अभी हाल ही ही में “व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी” पर एक नयी थ्योरी आयी है कि यह मौतें दरअसल कोरोना से नहीं हो रहीं बल्कि 5जी की टेस्टिंग की वजह से हो रही हैं। ऐसे षड्यंत्र सिद्धान्तकारों और कोविडियट्स की मूर्खता का तो भगवान ही मालिक है। लेकिन ऐसे लोग पिछड़ी चेतना की जनता को भी प्रभावित करते हैं जिसकी वजह से आम जनता भी कोरोना के प्रति लापरवाह हो जाती है जिसका नुक़सान आम जनता को कोरोना संक्रमित होकर और कुछ केसों में तो अपनी जान से हाथ धोकर भी उठाना पड़ता है।
इसलिए आम जनता को भी कोरोना की दूसरी लहर को देखते हुए जहाँ तक सम्भव हो घर से बिना काम बाहर नहीं निकलना चाहिए अगर काम से निकलना भी पड़े तो कोविड प्रोटोकॉल का पालन अवश्य करना चाहिए। जैसे दो गज़ की दूरी, मास्क लगाना और हाथ धोना या हाथों को सेनेटाइज़ करना। वैसे तो पूँजीवाद में कोई भी महामारी विकराल रूप धारण कर सकती है। लेकिन अगर केन्द्र में मोदी सरकार जैसी फ़ासिस्ट सरकार हो तो फिर यह एक नरसंहार की हद तक जा सकती है। कोरोना की दूसरी लहर से होने वाली मौंतो की ज़िम्मेदार केन्द्र में बैठी मोदी सरकार और राज्य सरकारें है।
मज़दूर बिगुल, मई 2021
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