लुधियाना के टेक्सटाइल तथा होजरी मज़दूरों ने ‘मज़दूर पंचायत’ बुलाकर अपनी माँगों पर विचार-विमर्श कर माँगपत्रक तैयार किया
राजविंदर
बीते 11 अगस्त को लुधियाना के टेक्सटाइल तथा होजरी मज़दूरों ने “मज़दूर पंचायत” की। यह पंचायत टेक्सटाइल होजरी कामगर यूनियन के आह्नवान पर बुलाई गई। पंचायत का मकसद मज़दूरों की समस्याओं और माँगों-मसलों पर विचार करते हुए इस साल तनख्वाह-पीस रेट बढ़ोतरी और कारखानों में श्रम कानून लागू करवाने हेतु माँगपत्र तैयार करना था।
पंचायत में लगभग एक हजार मज़दूरों ने भाग लिया और माँगों-मसलों पर अलग-अलग कारखानों से आए मज़दूरों ने अपनी बात रखी। आज के समय फ़ैक्ट्रियों में मज़दूरों के साथ हो रही धक्केशाही के खिलाफ मज़दूरों ने तीखा रोष प्रकट किया और इस पर रोक लगाने के लिए संगठन की जरूरत की बात भी की। मगर इस के साथ ही उन्होंने पुरानी ट्रेड यूनियनों के द्वारा मज़दूरों से की गई गद्दारी के चलते कई शंकाएं भी जताए। आज के समय में बढ़ रही महंगाई के कारण बढ़ रही मुश्किलों के बारे में बात करते हुए कुछ प्रतिनिधियों ने कहा कि महंगाई के हिसाब से तनख्वाह तथा पीस-रेट नहीं बढ़े हैं। इस के चलते मज़दूरों को काम के घंटे और काम का बोझ बढ़ाना पड़ रहा है। मालिकों को महंगाई के हिसाब से बढ़ोतरी देने की बात कहने पर मालिक डराने-धमकाने तक पहुंच जाते हैं। यहाँ तक कि कई वार बिना पैसे दिए भी काम से निकाल देते हैं। इसलिए आज मज़दूरों को सामूहिक रूप में अपनी माँगें मालिकों के आगे रखनी चाहिए। बहुत से मज़दूरों ने पक्की भर्ती और तनख्वाह पर काम होने तथा ठेकेदारी प्रथा की समाप्ति की माँग रखने पर भी ज़ोर दिया।
इन मसलों पर बात रखते हुए यूनियन के नेताओं ने संगठन की जरूरत तथा यह बात कि सिर्फ संगठित शक्ति के द्वारा ही मज़दूरों की सुनवाई हो सकती है, पर बल दिया। इसका उदाहरण पिछले तीन सालों से जारी संघर्ष है। यूनियन ने पीस-रेट बढ़ोतरी, कारखानों में ई.एस.आई. कार्ड बनवाने, वार्षिक बोनस लेने और कारखानों में मज़दूरों के साथ होती बदसलूकी बंद करवाके साबित कर दिखाया है। ठेका प्रथा की समाप्ति की माँग पर बात रखते हुए यूनियन के नेताओं ने कहा कि यह एक बड़ी माँग है जिस पर अनिवार्यत: संघर्ष किया जाना चाहिए। क्योंकि पीस-रेट बढ़ने पर मालिक धागे की क्वालिटी बदल कर दोबारा से मज़दूर की कुल तनख्वाह को पहले के ही स्थान पर ला खड़ा करते हैं, इसलिए पक्की तनख्वाह जो एक सम्मानज़नक जीवन जीने के लिए जरूरी हो, लागू होने पर ही मालिक अपनी घटिया चालों से मज़दूरों को परेशान नहीं कर पायेंगे। मगर यह माँग एक बड़ी लामबंदी की माँग करती है। क्योंकि आज पूरे देश में ही ज़ोर-शोर से ठेका प्रथा लागू की जा रही है, यहाँ तक कि सरकारी विभागों में भी ठेके पर भर्ती हो रही है, इसलिए मौजूदा समय में संगठित शक्ति को देखते हुए हमें वही माँगें आगे रखनी चाहिए जो सीमित एकता से हासिल की जा सकती हों, मगर विचार-विमर्श बड़ी माँगों पर भी होना चाहिए।
यूनियन के नेताओं ने मज़दूर पंचायत के उदेश्य के बारे में बात करते हुए कहा कि संगठन में जनवादी कार्यप्रणाली बहुत जरूरी है तथा संगठन में फैसले समूह की सहमति से लिये जाने चाहिए। इस से मज़दूरों को यह अहसास भी होता है कि यह माँगें-मसले उनके अपने हैं तथा उन्हें ही इस के लिए लड़ना होगा। अपने इस उदेश्य में यूनियन अब तक सफल रही है और यह लगातार तीसरा साल है जब माँगपत्र तैयार करने के लिए मज़दूर पंचायत बुलाई जा रही है। पिछले दो सालों में यूनियन 72 दिनों की हड़ताल भी कामयाबी के साथ चला चुकी है और उसने मालिकों को झुका के ही दम लिया था। इसी परंपरा को आगे बढ़ाते हुए इस साल भी मज़दूर पंचायत बुलाई गई है। बड़ी संख्या में मज़दूरों की भागीदारी निश्चित करने के लिए यूनियन ने 24,000 पर्चे लुधियाना के टेक्सटाइल तथा होजरी मज़दूरों में नुक्कड़ सभाएं कर और कमरे-कमरे जाकर बाँटे और उनको मज़दूर पंचायत में आने के लिये प्रेरित किया। इस पर्चे में यहाँ बॉक्स में दी जा रही माँगों को उभारा गया।
पंचायत में माँगों पर आम सहमति बनी। इन माँगों के आधार पर शीघ्र ही यूनियन एक माँगपत्र तैयार करेगी। इस माँगपत्र को संबंधित फैक्ट्री के मज़दूर हस्ताक्षर कर अपने फैक्ट्री मालिक को देंगे। इसी माँगपत्र की एक-एक प्रति शहर के श्रम विभाग के अधिकारियों और डीसी को भी सौंपी जाएगी। इन माँगों पर कोई कारवाई न होने की सूरत में सभी मज़दूर फिर से इकट्ठा हो कर संघर्ष के रूप पर सहमति बना करके संघर्ष को आगे बढ़ाएँगे। ज़ोरदार नारों के साथ मज़दूर पंचायत समाप्त हुई।
(1) इस वक्त लागू पीस रेटों और वेतन पर 30 प्रतिशत की वृद्धि की जाए। बढ़ी महँगाई को देखते हुए यह माँग पूरी तरह उचित है।
(2) 10 या 10 से ज्यादा मज़दूरों वाले कारखानों में सभी मज़दूरों के ई.एस.आई. कार्ड तत्काल बनाए जाएँ और जिन मज़दूरों का कार्ड बन्द कर दिया गया है उसे तत्काल चालू किया जाए। कानून के मुताबिक ई.एस.आई. के लिए अंशदान के रूप में मज़दूरों का हिस्सा 8 घण्टे की दिहाड़ी से बने वेतन का 1.75 प्रतिशत से अधिक न काटा जाए।
(3) सभी मज़दूरों को कम से कम 8.33 प्रतिशत की दर से बोनस दिया जाए। पिछले बकाया बोनस का भुगतान तुरन्त किया जाए।
(4) 20 या 20 से ज्यादा मज़दूरों वाले कारखानों में सभी मज़दूरों का ई.पी.एफ. चालू किया जाए। अंशदान के रूप में मज़दूरों का हिस्सा 8 घण्टे काम के हिसाब से बने मासिक वेतन का 12 प्रतिशत से ज्यादा न काटा जाए और मालिक भी 12 प्रतिशत का अपना हिस्सा दे जो मज़दूर के ई.पी.एफ. खाते में जमा करवाए, जिसकी रसीद सभी मज़दूरों को दी जाए।
(5) सालाना राष्ट्रीय अवकाश, त्योहारों पर अवकाश और कैजुअल छुट्टियाँ वेतन सहित दी जाएँ। पहली मई की अन्तरराष्ट्रीय छुट्टी लागू की जाए।
(6) सभी मज़दूरों के फैक्ट्री पहचान-पत्र बनाए जाएँ।
(7) रात के समय चलने वाले कारखानों को बाहर से ताले लगाना बन्द किया जाए। क्योंकि रात को हादसा होने की सूरत में मज़दूरों की कोई सुरक्षा नहीं होती जिसके चलते मज़दूरों की जान भी चली जाती है।
(8) कारखानों में साफ पीने का पानी, साफ टायलेट-बाथरूम और आराम करने के लिए कमरे का प्रबन्ध किया जाए। औरत मज़दूरों के लिए भी ऐसा ही प्रबन्ध अलग से किया जाए।
(9) वेतन व एडवांस 21 व 22 तारीख को दिया जाए। वेतन व एडवांस वाले दिन मज़दूरों को दिन रहते छुट्टी की जाए ताकि रात के समय होने वाली छीना-झपटी से उनका बचाव हो सके।
(10) स्त्री मज़दूरों को पुरुष मज़दूरों के बराबर पीस रेट दिया जाए। बच्चों को साथ लेकर आने वाली स्त्री मज़दूरों के बच्चों की देखभाल के लिए फ़ैक्ट्रियों में शिशु-घर और प्रशिक्षित आया का प्रबन्ध किया जाए।
(11) शहर के बाहरी इलाकों में स्थित कारखानों में मज़दूरों को काम पर लेकर जाने और छोडऩे के लिए मालिक बसों आदि का प्रबन्ध करें।
(12) कारखानों में मज़दूरों की सुरक्षा के पूर्ण प्रबन्ध किए जाएँ और हादसा होने की सूरत में उचित मुआवजा मिलने की गारण्टी की जाए।
(13) मज़दूरों को संगठन बनाने का संवैधानिक अधिकार लागू किया जाए। अगुवाओं को काम से निकालने जैसी मज़दूर विरोधी और गैर-कानूनी कारवाई पर रोक लगाई जाए।
(14) उपरोक्त माँगों सहित कारखानों में सभी श्रम कानून लागू किए जाएँ।
मज़दूर बिगुल, अगस्त 2013
‘मज़दूर बिगुल’ की सदस्यता लें!
वार्षिक सदस्यता - 125 रुपये
पाँच वर्ष की सदस्यता - 625 रुपये
आजीवन सदस्यता - 3000 रुपये
आर्थिक सहयोग भी करें!
बुर्जुआ अख़बार पूँजी की विशाल राशियों के दम पर चलते हैं। मज़दूरों के अख़बार ख़ुद मज़दूरों द्वारा इकट्ठा किये गये पैसे से चलते हैं।
मज़दूरों के महान नेता लेनिन