डॉक्टरों-नर्सों पर फूल बरसाने की सरकारी नौटंकी, मगर अपना हक़ माँगने पर सुनवाई तक नहीं
- गीतिका
दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के नर्सिंग स्टाफ़ के लोग लम्बे समय से अपनी माँगों को अनसुना किये जाने से नाराज़ थे और बार-बार की उपेक्षा से तंग आकर बीते 14 दिसम्बर को एम्स में कार्यरत 5000 नर्सिंग स्टॉफ ने अनिश्चितकालीन हड़ताल की घोषणा कर दी थी। उनकी मुख्य मांगें थीं छठे केंद्रीय वेतन आयोग की अनुशंसाओं को लागू करना और कॉन्ट्रैक्ट आधारित भर्ती ख़त्म करना। एम्स के कर्मचारियों का कहना है कि सरकार द्वारा लागू की जा रही नीतियाँ घोर मज़दूर विरोधी हैं। इससे मरीजों के इलाज़ से भी खिलवाड़ होगा। संविदा पर भर्ती करके सरकार और अस्पताल प्रशासन कर्मचारियों की मूलभूत सुविधाओं को ख़त्म कर रहा है। कोविड महामारी के दौरान अपनी जान जोखिम में डाल कर काम कर रहे मेडिकल स्टॉफ और डॉक्टर्स के लिये सरकार ने जुमलेबाजी के अलावा और कुछ नहीं किया। ताली-थाली और फूल बरसाने की नौटंकी की असलियत इसी से पता चल जाती है कि जब चिकित्सक, कर्मचारी अपनी जायज़ माँगों को लेकर सड़कों पर उतरते हैं तो उन्हें लाठी-डण्डे और खोखले वायदों के अलावा और कुछ नहीं मिलता। कहीं डॉक्टरों को महीनों तक वेतन नहीं मिलता तो कहीं नर्सों की रोज़गार सुरक्षा ही ख़तरे में डाल दी जाती है। केन्द्रीय कर्मचारियों के लिए सातवें वेतन आयोग की सिफ़ारिशें लागू हो चुकी हैं, लेकिन एम्स की नर्सों को अभी छठे वेतन आयोग की सिफ़ारिशों की ही माँग उठानी पड़ रही है।
सत्ता में आने के बाद से मोदी सरकार ने हर सेक्टर में निजीकरण को तेज़ रफ़्तार से लागू किया है। देशभर में छात्र-चिकित्सक-कर्मचारी इसके विरोध में आवाज़ बुलंद कर रहे हैं। एम्स के स्टाफ़ व अन्य अस्पतालों के चिकित्सक-कर्मचारी भी सरकार की नीतियों का लगातार विरोध कर रहे हैं। 13 नवंबर को नर्सों की यूनियन ने निदेशक को एक पत्र लिखा जिसमें उन्होनें तीन मांगे रखी थी और साथ ही साथ ये चेतावनी भी दी थी कि अगर उनकी मांगे न मानी गयी तो वे हड़ताल करेंगे। 1 महीने तक प्रशासन ने कोई सुध-बुध नहीं ली तो लगभग 5000 नर्स 14 दिसम्बर से अनिश्चित कालीन हड़ताल पर चले गये । उनकी मुख्य मांगे थी-
1. उनको लिखित आय रू० 18,640 मिले। अभी उन्हे 17,140 रू० दिये जाते है। वेतन के संबंध में उन्हें छठे वेतन आयोग की अनुसंशा के अनुरूप वेतन मिले|
2. अनुबंध पर भर्ती खत्म की जाये|
3. लिंग के आधार पर स्त्रियों को मिलने वाला 80% आरक्षण खत्म किया जाये ताकि पुरूषों को बेरोजगारी का सामना न करना पड़े|
4. नर्सों के लिए आवास की व्यवस्था हो|
5. न्यू पेंशन स्कीम लागू हो|
6. काडर रिस्ट्रक्चरिंग हो|
7. 20 साल पुराने प्रोफेसर कुसुम वर्मा कमेटी की सिफ़ारिशों को लागू किया जाये|
8. एम्स में नर्सों की कमी को दूर किया जाये। सभी एम्स में नर्सों के आपसी ट्रान्सफर की व्यवस्था हो|
9. नर्सिंग प्रशासन मजबूत हो इसमें अस्पताल प्रशासन का दखल न हो|
10. नर्सों के लिए कैंटीन, जिमखाना और मनोरंजन की सुविधा की व्यवस्था की जाये|
11. उन्हें भी केन्द्रीय कर्मचारियों की तरह तदर्थ बोनस मिले|
प्रशासन का रुख इस हड़ताल के प्रति बहुत निंदनीय रहा। निदेशक गुलेरिया ने एक तरफ कहा कि यूनियन की 23 में से अधिकांश मांगे मान ली गयी हैं और दूसरी तरफ गुपचुप तरीके से कांट्रैक्ट पर अयोग्य और अनुभवहीन 170 नर्सों की भर्ती करली साथ ही हड़तालियों को डराया धमकाया भी गया। हाई कोर्ट ने नर्सों की हड़ताल पर यह कह कर रोक लगा दी कि यह ग़ैर क़ानूनी है|
एम्स प्रशासन कि तरफ से कोर्ट में यह कहा गया कि नर्सों कि मांगों पर विचार किया जा रहा है। उसके बाद दिल्ली के एम्स में नर्सिंग यूनियन ने अस्पताल प्रशासन के साथ करीब दो घंटे तक चली बैठक के बाद मंगलवार रात यानि 16 दिसम्बर को अपनी हड़ताल खत्म कर दी। अगली सुनवाई 18 जनवरी को होगी। बैठक के दौरान यूनियन को आश्वासन दिया गया कि उनके सभी ‘स्थानीय मुद्दों’ को तत्काल हल किया जाएगा जबकि मंत्रालय से संबन्धित मामलों को जल्द से जल्द अलग से निपटाया जाएगा|
नर्स का पेशा मानवीय तो है ही पर किसी भी स्वास्थ्य कार्य में ऐसा अवलंब है जिसके बिना अस्पतालों में भर्ती मरीज़ो का इलाज किया ही नहीं जा सकता। एक डॉक्टर दवा और इलाज कि विधि लिखता है लेकिन उसको अमल में एक नर्स लाती है। यह चिकित्सा अगर मरीज को न दी जाए तो क्या वह ठीक हो पायेगा? नर्सों को अपनी ताकत को समझना होगा। डॉक्टर के बिना अस्पतालों का काम-चलाऊ काम तो चल भी सकता है लेकिन नर्सों के बिना अस्पताल ठप हो जाएंगे। अगर उन्होने अपनी हड़ताल जारी रखी होती तो प्रशासन उनकी मांगे मानने को मजबूर हो जाता। सिर्फ़ आश्वाशन पर उनका पीछे हटना अफसोस जनक रहा।
इसके बजाय उन्हें आगे लड़ना चाहिए था और अपनी ताकत को बढ़ाने के लिए ये कदम उठाने चाहिए थे-
1. दिल्ली के एम्स से शुरू हुई इस हड़ताल में अन्य राज्यों के एम्स को भी जोड़ना चाहिए था
2. सिर्फ़ एम्स ही नहीं अन्य सरकारी – ग़ैररसरकारी अस्पतालों की नर्सों को साथ लेना चाहिए था
3. अन्य विभागों की यूनियनों से अपने लिए सहयोग व समर्थन की अपील जारी की जानी चाहिए थी
मज़दूर बिगुल, जनवरी 2021
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