गुड़गाँव और आसपास की औद्योगिक पट्टी से मज़दूर संघर्षों की रिपोर्ट
– शाम मूर्ति
होण्डा के ठेका मज़दूरों का ठेका-प्रथा के ख़िलाफ़ स्थायी रोज़गार के लिए संघर्ष दो महीने से जारी
2019 बदलकर 2020 आ गया पर होण्डा (मानेसर) के 2500 कैज़ुअल मज़दूरों का ठेका प्रथा के ख़िलाफ़ स्थायी रोज़गार के लिए जुझारू संघर्ष दो महीने से जारी है। ये कैज़ुअल मज़दूर सात से बारह साल से कार्यरत हैं। इन कैज़ुअल मज़दूरों के समर्थन में होण्डा यूनियन के प्रधान सहित आठ मज़दूरों का निलम्बन भी अब तक वापिस नही लिया गया है और न ही उनके समझौता पत्र को लागू किया जा रहा है। ऑटो सेक्टर की कई अन्य कम्पनियों में भी यूनियन से हुए समझौतों पत्रों को लागू नहीं किया जा रहा है।
पिछली चार नवम्बर को जब कम्पनी ने मन्दी की आड़ में ठेका मज़दूरों की छँटनी शुरू की तो अगले दिन बाकी के ठेका मज़दूरों ने छँटनी किये गये कैज़ुअल मज़दूरों को वापस लेने की माँग पर काम बन्द कर दिया था और कम्पनी गेट के अन्दर-बाहर दोनों जगह मज़दूर धरने पर बैठ गये थे। चौदह दिनों के बाद कम्पनी प्रबन्धन, श्रम विभाग, केन्द्रीय ट्रेड यूनियनों तथा होण्डा की यूनियन के आश्वासन पर मज़दूर कम्पनी से बाहर आ गये थे और उनसे वादा किया गया था कि दो दिन में ही फै़सला कर दिया जायेगा। लेकिन उसके बाद भी कई बार श्रम विभाग, प्रशासन और हरियाणा सरकार को याददिहानी और गुहार लगाने के बावजूद भी मज़दूरों की अभी तक सुनवाई नहीं हुई।
मानेसर इलाक़े की कुछ यूनियनों के सरपंचों की भूमिका में असल कौन लोग हैं?
पिछले 21 दिसम्बर को होण्डा के संघर्षरत मज़दूरों के धरने को हटाने की साज़िश के तहत कम्पनी ने आईएमटी इलाके़ में, धरनास्थल के पास ही, अपने लगुओं-भगुओं की मदद से तथाकथित पंचायत बुलायी। इसमें फ़तवा जारी किया गया कि अगर मज़दूरों को धरना स्थल से नहीं हटाया जायेगा तो पंचायत इसको सहन नहीं करेगी। अफ़वाह फैलायी गयी कि मज़दूरों के इस प्रदर्शन से पूरे आईएमटी का माहौल ख़राब हो रहा है। यह पूरी पंचायत कम्पनी की ख़ातिरदारी में चली। दरी, जेनरेटर, बाजे, चाय, पानी, नाश्ता सबका इन्तजाम कम्पनी ने किया था।
हालाँकि मज़दूरों द्वारा प्रशासन पर दबाव बनाने के बाद फ़तवा जारी करने वालों को अपना बोरिया-बिस्तरा समेट रफ़ूचक्कर हो जाना पड़ा। मज़दूर अपने जायज हक़ अधिकार के लिए शांतिपूर्ण ढंग से अपना संघर्ष कर रहे हैं। ऐसे में इस तरह की पंचायत लगवाना कंपनी की बौखलाहट को ही दिखलाता है। उसी दिन दोपहर को मज़दूरों ने कमला नेहरू पार्क में अपनी आम सभा की और फिर वहाँ से लेकर लघु सचिवालय तक आक्रोश रैली निकाली और गुड़गाँव के विधायक के पास मुख्यमंत्री के नाम ज्ञापन दिया। मज़दूरों ने कहा कि पिछले 45 दिनों से हम शान्तिपूर्वक धरना-प्रदर्शन कर रहे हैं। आज तक न तो कम्पनी के काम में बाधा डाली और न ही आम नागरिक ने इसका विरोध नहीं किया।
असल में पिछले कुछ दिनों से इलाके के तथाकथित जनप्रतिनिधि जनता के नाम पर वास्तव में कम्पनी के इशारों पर आन्दोलन तोड़ने की कोशिशें कर रहे हैं। ऐसी ही हरकतें इन ताक़तों ने मारुति के आन्दोलन के समय भी की थीं।
हरियाणा की खट्टर सरकार होण्डा कम्पनी के पक्ष में
22 नवंबर को 17 किलोमीटर पैदल यात्रा मजदूरों ने मानेसर के औद्योगिक क्षेत्र में रैली निकालकर उपायुक्त कार्यालय के मार्फ़त मुख्यमंत्री खट्टर को ज्ञापन सौंपा था। 27 नवम्बर को फिर मज़दूरों ने बड़ी बाइक रैली के साथ ही गुड़गाँव में हीरो चौक से लघु सचिवालय तक जुलूस निकालकर एसडीएम को ज्ञापन दिया। इसमें होण्डा के अलावा कई दूसरी यूनियनों और फै़क्ट्रियों के मज़दूर शामिल हुए। फिर 25 दिसम्बर को आन्दोलन के 52वें दिन गुड़गाँव में रैली निकालकर मामले को मण्डल आयुक्त के सामने लाया गया। लेकिन अब तक सरकार ने मज़दूरों की बात ही नहीं सुनी है।
दुष्यन्त चौटाला का मज़दूर विरोधी रवैया भी उजागर
बीते 19 नवम्बर को मज़दूरों के प्रतिनिधि दल ने हरियाणा के उप मुख्यमंत्री दुष्यन्त चौटाला, जोकि श्रम व रोज़गार तथा उद्योग और वाणिज्य मंत्री भी हैं, से मुलाकात कर कार्रवाई की माँग की थी। चौटाला ने जल्द कार्रवाई का आश्वासन भी दिया, लेकिन आज तक कुछ भी नहीं हुआ। दोबारा 22 दिसम्बर को कुछ मज़दूर चौटाला से मिलने गये, लेकिन फिर से निराशा ही हाथ लगी। चौटाला ने सिर्फ़ हरियाणा के मज़दूरों को काम पर लगवाने की बात की, जिसे मज़दूरों ने एकसुर में नकार दिया। मज़दूरों ने जवाब दिया कि सबको पक्का किया जाये न कि सिर्फ हरियाणा के मज़दूरों को। इसके बाद चौटाला ने 27 दिसम्बर को मजदूरों को चण्डीगढ़ बुलाया पर चुपचाप निकल लिया।
शिवम ऑटोटेक लि. के स्थायी मज़दूरों का संघर्ष जारी
शिवम ऑटोटेक लि. मज़दूर यूनियन का धरना भी 12 दिसम्बर से गुड़गाँव में श्रम विभाग के दफ़्तर के सामने जारी है। वे अपनी यूनियन को बचाने, नेतृत्वकारी श्रमिकों के तबादले को रद्द कराने, तय समझौता को लागू करवाने, आदि मसले को लेकर जिला सचिवालय पर धरना दे रहे हैं। कुछ महीने पहले ये मज़दूर अपने 42 श्रमिकों के निलम्बन तथा तबादले के ख़िलाफ़ व अपना माँगपत्रक लागू करवाने के लिए संघर्ष कर रहे थे। मज़दूरों की एकजुटता के दबाव में मैनेजमेंट को 42 श्रमिकों को वापस लेना पड़ा। लेकिन अन्य समझौतों को लागू करने में कम्पनी आनाकानी करने लगी और यूनियन को कमज़ोर करने और तोड़ने के हथकण्डे अपनाने लगी। अभी कम्पनी ने यूनियन नेतृत्व समेत 15 श्रमिकों का तबादला के नाम पर गेट बन्द कर दिया है। उनके समर्थन में अन्य श्रमिक कारख़ाने में अपनी शिफ़्ट का काम निपटा कर बारी-बारी से धरना स्थल पर बैठते हैं। माँगों का कोई समाधान ना होने से मज़दूरों में गुस्सा बढ़ता जा रहा है। विभिन्न संगठन इनका समर्थन भी कर रहे हैं। ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री कॉन्ट्रैक्ट वर्कर्स यूनियन पिछले कई महीनों से इनके समर्थन में प्रचार भी कर रही है। दो सप्ताह से ज़्यादा बीत जाने पर भी कम्पनी से लेकर श्रम विभाग तक महज़ झूठे आश्वासन ही दिये जा रहे हैं और बहानेबाज़ी कर रहे हैं।
ऑटोनेम कम्पनी में मज़दूरों का संघर्ष
राजस्थान के बहरोड़ (ज़िला अलवर) रीको एरिया में स्थित ऑटोनेम कम्पनी में कैज़ुअल और परमानेंट मज़दूरों के साथ हो रहे शोषण-उत्पीड़न का मामला भी सामने आया है। मारुति के पार्ट्स बनाने वाली इस कम्पनी के स्थायी मज़दूरों ने मैनेजमेंट की कोशिशों को नाकाम करते हुए 11 दिसम्बर को ऑटोनेम कर्मचारी एकता यूनियन पंजीकृत करवायी। नयी यूनियन ने सबसे पहले 2 से 12 साल पुराने कैज़ुअल मज़दूरों के पक्का करने की माँग का समर्थन किया। इस पर कम्पनी ने क़रीब 40 मज़दूरों को मन्दी और शटडाउन का बहाना बनाकर बाहर कर दिया। नयी यूनियन द्वारा इसका विरोध करने पर कम्पनी खुली गुण्डागर्दी पर उतर आयी। कम्पनी में बाउसरों और हथियारबन्द लोगों की भरती की गयी और कैज़ुअल और परमानेंट दोनों मज़दूरों को कम्पनी में बन्दी बनाकर मारपीट तक की गयी। महिला मज़दूरों के साथ भी अभद्र भाषा का इस्तेमाल किया गया। पुलिस पहुँचने के बाद मज़दूरों को जाने दिया गया। अभी मामला एसडीएम के पास है। 6 जनवरी को दोबारा इस मुद्दे पर बात होगी।
शिरोकी टेक्निको (बावल) के मज़दूर संघर्ष की हार
इससे पहले शिरोकी टेक्निको बावल के मजदूरों को अपना संघर्ष हार के साथ खत्म करना पड़ा। पिछली 4 नवम्बर को कम्पनी के साथ लिखित समझौते पर हस्ताक्षर हुए थे। मगर कम्पनी ने कैज़ुअल मज़दूरों के साथ हुए लिखित समझौते को नकार दिया। दिवाली पर छुट्टी से लौटने पर उन्हें काम पर वापस नहीं लिया और ठेका ख़त्म होने का नोटिस लगा दिया गया था। मज़दूर अकेले ज़्यादा दिनों तक संघर्ष नहीं कर पाये और हिसाब लेने के लिए मज़बूर हो गये।
नपीनो (मानेसर) के संघर्षरत मजदूरों की माँगें मानी गयीं
मानेसर में होण्डा के बाद नपीनो के मज़दूर भी माँगों को लेकर धरने पर बैठ गये थे। जून 2019 में पुराना सैटलमेंट ख़त्म होने के तीन महीने पहले ही यूनियन ने नियम के मुताबिक अपना नया माँगपत्र दे दिया था। लेकिन कम्पनी प्रबन्धन ने छह महीने बीत जाने के बाद भी नये माँगपत्र पर कोई कार्रवाई नहीं की। तरह-तरह के बहाने किये जा रहे थे। कभी कहा जा रहा था कि नये मॉडल आने पर तय किया जायेगा तो कभी उच्च अधिकारियों के बाहर होने का बहाना बनाया जा रहा था। जब मामला मीडिया में उछलना शुरू हुआ तो 3 दिन बाद मज़दूरों की माँगें मान ली गयीं और मज़दूर काम पर वापस लौट गये। बगल में होण्डा के कैज़ुअल मजदूरों का आन्दोलन जारी था और कम्पनी को डर था कि दोनों कम्पनियों के मज़दूर मिलकर संघर्ष करने लगे तो आन्दोलन दूसरी कम्पनियों में भी फैल जायेगा और तमाम मालिकों के लिए परेशानी हो जायेगी।
मज़दूर बिगुल, जनवरी 2020
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