नये साल पर मज़दूर साथियों के नाम ‘बिगुल’ का सन्देश
नये वर्ष पर नहीं है हमारे पास आपको देने के लिए
सुन्दर शब्दों में कोई भावविह्वल सन्देश
नये वर्ष पर हम सिर्फ़ आपकी आँखों के सामने
खड़ा करना चाहते हैं
कुछ जलते-चुभते प्रश्नचिह्न
उन सवालों को सोचने के लिए लाना चाहते हैं
आपके सामने
जिनकी ओर पीठ करके आप खड़े हैं।
देखिए! अपने चारों ओर बर्बरता का यह नग्न नृत्य
जड़ता की ताक़त से आपके सीने पर लदी हुई
एक जघन्य मानवद्रोही व्यवस्था
देखिए! अपने आस-पास की इस दुनिया को
जहाँ सामूहिक बलात्कार के शिकार
युवा स्वप्न पड़े हैं सरेआम सड़क पर लथपथ
क्या सचमुच हम बग़ल से होकर
चुपचाप गुज़र सकते हैं?
लोगों को पूँजी की नंगी ग़ुलामी में झोंक देने के लिए
हर विरोध को कमज़ोर और टुकड़े-टुकड़े
कर डालने के लिए
झूठ और नफ़रत की आँधी चलायी जा रही है
ज़हर से भर दिया जा रहा है समाज के
हर ताने-बाने को।
लांछित और कलंकित किया जा रहा है
हमारे अतीत के गौरवशाली संघर्षों और क़ुर्बानियों को,
और सनक और बेवक़ूफ़ी बताया जा रहा है
मुक्ति के हमारे सपनों को
भविष्य की हमारी परियोजनाओं को
हवाई मंसूबा बताया जा रहा है
विद्वानों की सैद्धान्तिक उल्टियों से सड़क-चौराहे
बदबू कर रहे हैं
क्या ये सारी स्थितियाँ आपको सचमुच
क़ाबिले-बर्दाश्त लगती हैं?
कृत्या राक्षसी की तरह हू-हू करती
पूँजी भाग रही है भूमण्डल पर चारों ओर
उठ रहे हैं और लड़ रहे हैं यहाँ-वहाँ
हमारे आपके साथी और भाई-बहन
और एक स्पष्ट दिशा और
अपने जैसों के साथ के अभाव में
टूट जा रही हैं और बिखर जा रही हैं उनकी लड़ाइयाँ।
क्या सचमुच हम और आप
ऐसी लोहे की दीवारों के बीच
क़ैद हो गये हैं जहाँ कोई भी पुकार हमें सुनाई नहीं देती
नये साल पर हम सिर्फ़ आपसे यही पूछना चाहते हैं।
हम आपको एक लम्बी, सुदूर, बीहड़ यात्रा पर
फिर से चल पड़ने के लिए
तैयार हो जाने का न्यौता दे रहे हैं।
हम आपसे फिर उठ खड़े होने के लिए कह रहे हैं
यह दुनिया यूँ ही रेंगती हुई ख़त्म नहीं होने वाली है
और पूँजी के ज़ुल्मी निज़ाम को
दफ़्न करने का इतिहास का जो हुक्म है
उसकी तामील आप ही को करनी है
चाहे आप जितनी भी देर करें
आप अपने इस ऐतिहासिक दायित्व से
मुँह नहीं चुरा सकते।
नये साल पर कहने के लिए हमारे पास
बस यही कुछ असुविधाजनक और
चिन्ता और चुनौतियों से भरी हुई बातें हैं
अगर आप सुन पायें तो इन पर सोचिएगा ज़रूर!
मज़दूर बिगुल, जनवरी 2020
‘मज़दूर बिगुल’ की सदस्यता लें!
वार्षिक सदस्यता - 125 रुपये
पाँच वर्ष की सदस्यता - 625 रुपये
आजीवन सदस्यता - 3000 रुपये
आर्थिक सहयोग भी करें!
बुर्जुआ अख़बार पूँजी की विशाल राशियों के दम पर चलते हैं। मज़दूरों के अख़बार ख़ुद मज़दूरों द्वारा इकट्ठा किये गये पैसे से चलते हैं।
मज़दूरों के महान नेता लेनिन