महर्षि दयानन्द विश्वविद्यालय रोहतक के सुरक्षा कर्मियों की एक दिन की हड़ताल
ठेका कम्पनी ईगल हण्टर मार रही कर्मियों का हक़ और मदवि प्रशासन का मौन समर्थन!
महर्षि दयानन्द विश्वविद्यालय रोहतक के सुरक्षा कर्मी (सिक्युरिटी गार्ड) 26 अक्टूबर को हड़ताल पर रहे। सुरक्षा कर्मी अपने रुके हुए एरियर और तय वेतनमान की माँग कर रहे थे। मदवि के सुरक्षा कर्मी बेहद कठिन हालात में काम करते हैं। तपती लू हो या कड़कड़ाती ठण्ड हो, बरसात हो या हो आँधी-तूफ़ान सुरक्षा कर्मी अपने काम में मुस्तैदी से डटे रहते हैं। यही नहीं थोड़े से वेतन में जान जोखिम में डालकर भी सुरक्षा कर्मी कम्पनी की नौकरशाही और विश्वविद्यालय के सुरक्षा अधिकारियों की डाँट-डपट भी सुनते हैं। ईगल हण्टर नामक ठेकेदार कम्पनी ने मदवि में जून 2017 में सुरक्षा का टेण्डर लिया था। उस समय सुरक्षा कर्मियों को 10,200 रुपये वेतन मिल रहा था जबकि मार्च 2017 के हरियाणा सरकार के आदेशानुसार डीसी रेट के हिसाब से वेतन 11,700 रुपये होना चाहिए था। किन्तु यह 11,700 वेतन कर्मियों को मिला फ़रवरी 2018 में। अगले ही महीने नये डीसी रेट के अनुसार वेतन हो गया 12,700 रुपये लेकिन यह बढ़ा हुआ वेतन भी कर्मियों को फ़रवरी 2019 में मिलना शुरू हुआ। मार्च 2019 में डीसी रेट हो गया 13,850 रुपये किन्तु श्रमिकों को अब भी मिल रहे हैं 12,700 रुपये ही। ईगल हण्टर कम्पनी के बही खाते एक वर्ष पीछे चल रहे हैं तथा सुरक्षा कर्मियों को पिछले 38 महीने से ही तय वेतन से कम वेतन दिया जा रहा है। हरेक कर्मी के तक़रीबन 50,000 रुपये दबाकर कम्पनी बैठी है। सुरक्षा कर्मियों के ख़ून-पसीने पर पलने वाले कम्पनी के अफ़सर और मालिक मोटे होते जा रहे हैं, दूसरी ओर सुरक्षा कर्मी आठ-आठ घण्टे खड़े रहकर भी न्यूनतम वेतन तक को तरस रहे हैं।
भले ही ठेकेदार कम्पनी बीच में हो किन्तु विश्वविद्यालय प्रशासन प्रधान नियोक्ता होने के कारण अपनी ज़िम्मेदारी से बच नहीं सकता। क्यों इतने बड़े घोटाले की कारगुज़ारी के प्रति विश्वविद्यालय प्रशासन सूचना होने के बावजूद गूँगा-बहरा बना हुआ है? कहीं कोई मिलीभगत तो नहीं है? देश के भविष्य निर्माण के ठेकेदार बनने वाले वीसी, रजिस्ट्रार और सुरक्षा अधिकारियों से क्या यह मामला छुपा हुआ था? पिछले 2 साल से कर्मी तय वेतनमान और एरियर की माँग उठा रहे हैं किन्तु यूनिवर्सिटी प्रशासन सारी ज़िम्मेदारी कम्पनी पर डालकर घोड़े बेचकर सो रहा है। पिछले दिनों छात्र संगठन भी वीसी से इस सम्बन्ध में मिले थे लेकिन वीसी महोदय का आश्वासन जुमला साबित हुआ। इस अँधेरगर्दी के ख़िलाफ़ सड़क पर उतरे सुरक्षा कर्मियों को दिशा छात्र संगठन समेत विभिन्न छात्रों और कर्मचारियों के संगठनों ने अपना समर्थन दिया।
जानलेवा ठेकेदारी प्रथा मतलब श्रमिकों की क़ानूनी लूट
विश्वविद्यालय में निजी कम्पनी के तहत कार्यरत सुरक्षा कर्मचारियों का (बढ़ा हुआ) ऐरियर पिछले ढाई सालों से नहीं मिल रहा है। डीसी रेट का नया वेतनमान भी महीनों बाद विश्वविद्यालय में लागू होता है जैसे नये वेतन की चिट्ठी महीनों बाद कैम्पस में पहुँचती हो। सुरक्षा कर्मचारी बेहद कम वेतन के साथ विश्वविद्यालय में अपनी सेवाएँ दे रहे हैं। जैसाकि भारत सरकार का 1970 का श्रम क़ानून कहता है कि स्थायी प्रकृति के काम पर नौकरी भी स्थायी होनी चाहिए, उस हिसाब से होना तो यह चाहिए कि विश्वविद्यालय के सभी सुरक्षा कर्मचारियों को पक्का करे, किन्तु यहाँ तो उनका एरियर तक रोक लिया जा रहा है। क्या यह श्रम क़ानून काग़ज़ों की शोभा बढ़ाने के लिए ही हैं? वैसे सुप्रीम कोर्ट का निर्देश यह भी है कि समान काम का समान वेतन मिलना चाहिए, किन्तु यह निर्देश भी सिवाय जुमले के कुछ नहीं है। यदि वास्तव में ही सुप्रीम कोर्ट समान काम के समान वेतन के प्रति गम्भीर है तो क्या इस निर्देश की अवहेलना करने वालों की जगह जेल में नहीं होनी चाहिए?
हालाँकि 26 अक्टूबर की रात को मदवि रजिस्ट्रार से मिले आश्वासन के बाद सुरक्षाकर्मियों ने हड़ताल वापस ले ली थी। लेकिन फ़िलहाल तक न तो सभी कर्मियों को वेतन ही मिल सका है तथा न ही एरियर ही मिला है। सुरक्षा कर्मी नये सिरे से अपने संघर्ष की रूपरेखा बना रहे हैं।
मज़दूर बिगुल, नवम्बर 2019
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