इलाहाबाद में एक और प्रतियोगी छात्रा की आत्महत्या!

हम चुप क्यों हैं? हम किसका इन्तज़ार कर रहे हैं?

इलाहाबाद में धूमनगंज के कालिन्दीपुरम में रहने वाली प्रतियोगी छात्रा विनीता वर्मा ने कई वर्षों से तैयारी करने के बावजूद चयन न होने पर 4 नवम्बर को फाँसी लगाकर आत्महत्या कर ली। इसके पहले बीते दो-तीन महीनों मे अकेले इलाहाबाद शहर में आठ-नौ प्रतियोगी छात्रों की आत्महत्या की ख़बरें आ चुकी हैं। आत्महत्या करने वाली छात्रा ने अपने सुसाइड नोट में लिखा है कि वह अपने माँ-बाप की उम्मीदों पर खरा न उतर सकी।

इलाहाबाद और कोटा जैसे प्रतियोगी छात्रों के बड़े केन्द्र मौजूदा समय में अवसाद और आत्महत्या के गढ़ बनते जा रहे हैं। आँकड़ों के मुताबिक़ पिछले दस सालों में देश में लगभग एक लाख युवा आत्महत्या कर चुके हैं। बेरोज़गारी दर पिछले पैंतालीस वर्षों के अपने उच्चतम स्तर पर पहुँच चुकी है। ‘सेण्टर फॉर मॉनिटरिंग इण्डियन इकोनाॅमी’ की रिपोर्ट के मुताबिक़ फ़रवरी 2018 में बेरोज़गारी दर 5.9 दर प्रतिशत थी जोकि फ़रवरी 2019 में बढ़कर 7.2 प्रतिशत पहुँच गयी। बेरोज़गारी इस सदी की बहुत बड़ी त्रासदी है। बेरोज़गारी ने बहुत सारे नौजवानों को इतने गहरे अवसाद में धकेल दिया है कि मनोचिकित्सकों की दुकानों पर लम्बी लाइनें लगी हुई हैं। पदों की कम संख्‍या, घूसखोरी, जुगाड़, पर्चा लीक की बाधा-दौड़ के बीच पक्‍की नौकरी आम छात्रों के लिए बहुत दूर की कौड़ी बन चुकी है।

‘सेण्टर फॉर मॉनिटरिंग इण्डियन इकोनाॅमी’ की रिपोर्ट के मुताबिक़ फ़रवरी 2018 से फ़रवरी 2019 के बीच सरकारी और निजी विभागों में काम करने वाले 60 लाख लोग अपनी नौकरी गँवा चुके हैं। देश में शिक्षा, चिकित्सा, सड़क-परिवहन, बिजली, सिंचाई, पुलिस, रेलवे आदि विभागों में लाखों पद ख़ाली पड़े हैं, जिन्हें सरकार ख़त्म करती जा रही है या ठेके या संविदा के हवाले कर रही है। बीएसएनएल लगभग बिकने के कगार पर खड़ा है और देश के सबसे बड़े पब्लिक सेक्टर रेलवे के विभिन्न विभागों में 99 प्रतिशत पद ख़त्म करके एक प्रतिशत तक लाने की योजना अमल में आनी शुरु हो चुकी है। योगी सरकार द्वारा पिछले साल सरकारी आदेश जारी करके चतुर्थ श्रेणी की भर्तियों पर रोक लगायी जा चुकी है।

प्राइवेट सेक्टर में रोज़गार की कोई सुरक्षा नहीं है। पूँजीपति लगातार उन्नत मशीनें लगाकर मेहनतकशों को न केवल बेरोज़गारी की हालत में सड़कों पर ढकेलते रहते हैं बल्कि मेहनताना बहुत कम होने के चलते मज़दूरों को अपना पेट भरने के लिए दो मज़दूरों के बराबर काम करना पड़ता है। सरकार धन की कमी का पाखण्ड रच रही है जबकि कुम्भ, अयोध्या में दीये जलाने, मूर्तियाँ लगवाने जैसे कामों में अरबों-खरबों रुपये ख़र्च कर रही है। आरटीआई से मिली जानकारी के मुताबिक़ पिछले चार वित्तीय वर्षों में सांसदों पर लगभग 20 अरब रुपये ख़र्च किये गये। अगर श्रम क़ानूनों का सही से पालन कराया जाये, आठ घण्टे के काम में उचित वेतन दिया जाये, सरकारी विभागों में ख़ाली पदों को भरा जाये, धन्नासेठों पर टैक्स लगाकर व नेताओं की विलासिता में कटौती करके देशभर में शिक्षा, चिकित्सा, आवास, सड़क, परिवहन, बिजली, पानी आदि की उचित व्यवस्था के लिए निवेश किया जाये तो देश के बेरोज़गारों की संख्या से कई गुना ज़्यादा रोज़गार पैदा किया जा सकता है।

जब तक झूठे नारों के नशे से बाहर आकर उदारीकरण-निजीकरण की नीतियों के विरुद्ध छात्रों-कर्मचारियों-मज़दूरों की व्यापक एकता नहीं क़ायम की जायेगी, तब तक लूट पर टिकी मौजूदा पूँजीवादी व्यवस्था इसी तरह नौजवानों की ज़िन्दगियाँ लीलती रहेगी।

मज़दूर बिगुल, नवम्बर 2019


 

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